संघ का प्रारम्भ दशहरे के दिन सन् 1925 में किया गया। नागपुर के एक उपेक्षित से मैदान में 10-12 किशोर बालकों के साथ खेलकूद और व्यायाम करके डाक्टर साहब ने संघ प्रारम्भ किया। उस समय तक संघ का कोई नाम भी नहीं रखा गया था। संघ का नाम ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ काफी बाद में सन् 1928 में रखा गया था और तभी डाक्टर साहब को उनके सहयोगियों द्वारा संघ का पहला सरसंघचालक नियुक्त किया गया। मात्र 10-12 बालकों से प्रारम्भ हुआ संघ आज विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है और बीबीसी द्वारा संसार का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना गया है। इस समय भारत भर में 35 हजार से अधिक स्थानों पर संघ की दैनिक शाखायें और 10 हजार से अधिक स्थानों पर साप्ताहिक शाखाएँ लगती हैं। संघ का मूल स्वरूप दैनिक शाखाओं का है, लेकिन साप्ताहिक शाखाएँ ऐसे लोगों के लिए चलायी जाती हैं, जो संघ से जुड़ना तो चाहते हैं, पर प्रतिदिन नहीं आ सकते। इसी प्रकार कहीं-कहीं मासिक एकत्रीकरण भी होते हैं।
संघ में आने वालों को स्वयंसेवक कहा जाता है। इसका अर्थ है- अपनी ही प्रेरणा से समाज की निःस्वार्थ सेवा करने वाला। संघ की कोई सदस्यता नहीं होती। जैसे दूसरे संगठनों में लोग वार्षिक चन्दा देकर पर्ची कटवाकर सदस्य बन जाते हैं, वैसा संघ में नहीं होता। शाखा में आना ही इसकी सदस्यता है। शाखायें सबके लिए खुली हुई हैं। जो भी व्यक्ति इस देश को प्यार करता है और यहाँ की संस्कृति और महापुरुषों का सम्मान करता है, वह संघ की शाखाओं में आ सकता है। संघ में सभी जातियों के हिन्दू और बहुत से मुसलमान-ईसाई भी आते हैं। लेकिन संघ में एक-दूसरे की जाति पूछना या बताना मना है। सभी हिन्दू हैं, इतना ही हमारे लिए पर्याप्त है। इस देश से प्यार करने वाले मुसलमानों और ईसाइयों को भी हम क्रमशः मुहम्मदपंथी और ईसापंथी हिन्दू मानते हैं। इसलिए उन सबका स्वागत है।
जो स्वयंसेवक संघ में जितना अधिक नियमित होता है और जितना अधिक समय देता है, वह उतना ही अच्छा स्वयंसेवक माना जाता है। पारिवारिक दायित्वों से मुक्त रहकर अपना पूरा जीवन संघ के कार्य में लगा देने वाले हजारों व्यक्ति भी हैं, जिन्हें प्रचारक कहा जाता है। संघ के खर्च के लिए किसी से चन्दा नहीं लिया जाता, बल्कि साल में एक बार सभी स्वयंसेवक अपनी-अपनी सामथ्र्य के अनुसार गुरुदक्षिणा देते हैं। उसी से संघ का काम चलता है। संघ में किसी व्यक्ति विशेष को गुरु नहीं माना जाता, बल्कि परम पवित्र भगवा ध्वज ही हमारा गुरु है। गुरु दक्षिणा भी उसी को समर्पित की जाती है।
संघ में महिलायें नहीं आतीं। वास्तव में महिलाओं के लिए संघ जैसा ही एक अलग संगठन है, जिसका नाम है राष्ट्र सेविका समिति। उसकी भी तमाम स्थानों पर दैनिक और साप्ताहिक शाखायें लगती हैं।
डाक्टर साहब संघ को एक बिजलीघर कहा करते थे, जहाँ बिजली पैदा की जाती है। वह बिजली अलग-अलग जगह जाकर तमाम कार्य करती है। इसी प्रकार संघ के स्वयंसेवक विभिन्न क्षेत्रों में जाकर देश हित में कार्य करते हैं। इसके बारे में अगले लेख में।
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