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Tuesday 12 April 2016

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष - 6

मैं प्रारंभ में अपने ब्लॉग पर गाँधी और नेहरू की देशघातक नीतियों के बारे में अधिक लिखा करता था. ऐसे कई लेख एक के बाद एक प्रकाशित हुए. मेरे इन विचारों को अधिकांश पाठक मानते थे और समर्थन करते थे, हालाँकि कुछ विरोधी भी थे. लेकिन मेरे तर्क इतने मजबूत होते थे कि आलोचक उनका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाते थे. उनका प्रमुख तर्क यह होता था कि सारे संसार में गाँधी और नेहरू की बड़ी उज्ज्वल छवि है और इसलिए हमें उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए.
इस बात का उत्तर देते हुए मैंने एक लम्बा लेख 23 मार्च 2012 को "संसार में गाँधी-नेहरू की उज्ज्वल छवि क्यों?" शीर्षक से लिखा. इस लेख में मैंने एक जगह नेहरु के लिए "क्रूर और चरित्रहीन" शब्दों का प्रयोग किया था. यह लेख संपादक मंडल के पास पहुँचते ही मुझे नभाटा के प्रधान सम्पादक नीरेंद्र नागर जी का ईमेल मिला कि मैंने नेहरू के लिए इन शब्दों का प्रयोग क्यों किया है? मैं चाहता तो इसका उत्तर कारण सहित दे सकता था, लेकिन इसके बजाय मैंने लेख को संशोधित करना उचित समझा. इन शब्दों को हटाकर और शीर्षक भी संशोधित करके मैंने लेख फिर भेज दिया, जिसका लिंक नीचे है-
http://khattha-meetha.blogspot.in/2013/…/blog-post_2889.html
मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि संशोधन के बाद भी यह लेख लाइव नहीं किया गया, हालाँकि अब इसमें कोई आपत्तिजनक बात नहीं है. मैंने उनको ईमेल भी भेजी कि इसे लाइव कीजिये. परन्तु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया और न लेख को लाइव किया.
तब मैंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सभी संस्करणों के प्रधान संपादक को ईमेल भेजी, जिसमें ससारे तथ्य रखते हुए लेख लाइव करने की प्रार्थना की गयी थी. इसकी कॉपी में नागर जी के पास भी भेजी थी.
मुझे प्रधान संपादक की ओर से तो कोई उत्तर नहीं मिला लेकिन नागर जी का ईमेल प्राप्त हुआ कि कारण बताओ कि मैंने गाँधी-नेहरू के बारे में ऐसा क्यों लिखा. मैंने उत्तर दिया तो वे संतुष्ट नहीं हुए और लेख भी लाइव नहीं किया. इसके बजाय उन्होंने मुझसे कहा कि पहले नेहरू पर फिर गाँधी पर लिखो.
इसके उत्तर में मैंने एक लेख लिखा- "मैंने नेहरू को क्रूर और चरित्रहीन क्यों कहा?" यह लेख उन्होंने लाइव कर दिया.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
फिर मैंने गाँधी पर भी लिखा- "मैं गाँधी को पाखंडी क्यों कहता हूँ?" यह लेख भी उन्होंने लाइव कर दिया.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
लगता है कि मेरे इन लेखों का नागर जी पर सही प्रभाव पड़ा और फिर उन्होंने मेरा वह लेख लाइव कर दिया जो दो हफ्ते से रोक रखा था.
इन तीनों लेखों को पढ़कर आप समझ सकते हैं कि गाँधी और नेहरू के बारे में मेरी धारणाएँ सुदृढ़ तर्कों पर आधारित हैं, कोरी भावनाएं नहीं हैं.
विजय कुमार सिंघल
चैत्र शुक्ल 7, सं. 2073 वि.