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Monday 24 June 2013

गणितीय पहेलियों के उत्तर


उन सभी मित्रों का आभार जिन्होने इन पहेलियों को हल किया अथवा करने की कोशिश की. दूसरी पहेली को कई बन्धुओं ने सही-सही हल कर दिया, लेकिन पहली पहेली को करने में सभी चकरा गये. अब मैं इन दोनों का पूरा हल दे रहा हूँ.

एक-
दिया है कि लड़कियों की उम्रों का गुणनफल 36 है, इसकी ये 7 सम्भावनायें हैं- 1, 1, 36; 1, 2, 18; 1, 3, 12; 1, 4, 9; 1, 6, 6; 2, 2, 9; 2, 3, 6 तथा 3, 3, 4. अब क्योंकि फ्लैट का नम्बर उम्रों के योगफल के बराबर है। यह क्रमशः 38, 21, 16, 14, 13, 13, 11 या 10 हो सकता है। यदि फ्लैट नं. इनमें से 13 के अलावा कुछ होता, तो वह समझ लेता कि उम्र क्या-क्या हैं, परन्तु 13 दो बार आया है, इसलिए वह पक्की तरह नहीं समझ पाया कि उम्र क्या हैं- 1, 6, 6 अथवा 2, 2, 9। परन्तु पहले मामले में सबसे बड़ी लड़की कौन है यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि दो लड़कियों की उम्र बराबर हो जाती है। इसलिए दूसरा मामला ही सही है, जिसमें बड़ी लड़की की उम्र 9 है। अतः लड़कियों की उम्र क्रमशः 9 वर्ष, 2 वर्ष तथा 2 वर्ष हैं।

दो-
मान लीजिए कि पुस्तक में से न पृष्ठ फाडे गये हैं और फाड़े गये पहले पृष्ठ की पृष्ठ संख्या प है। तो फाड़े गये पन्नों की पृष्ठ संख्यायें प से प+न-1 तक हैं। गणितीय फार्मूले के अनुसार इनका योग (2प+न-1)*न/2 होता है। इसमें (2प+न-1) विषम है, क्योंकि न सम है।
अब दिया है कि यह योग 2570 के बराबर है, जिसके गुणनखंड 257*5*2 होते हैं।
इसलिए न/2= या तो 2 या 10. पहले मामले में प का मान 200 से अधिक आता है, इसलिए यह सही नहीं है। अतः न/2=10 अर्थात् न=20 और इसका मान रखने पर प=119 आता है।
अतः पुस्तक से 119 से 138 तक 20 पृष्ठ फाड़े गये हैं।

दो गणितीय पहेलियाँ


एक-

एक छात्र अपने एक शिक्षक से मिलने उनके घर गया। वहाँ उन दोनों में निम्नलिखित वार्तालाप हुआ-
‘सर, मैं समझता हूँ कि आपकी तीन पुत्रियाँ हैं। क्या मैं उनकी उम्र जान सकता हूँ?’
‘जरूर। उन सबकी उम्र पूर्ण वर्षों में हैं और उनकी उम्रों का गुणनफल 36 है।’
‘यह तो काफी नहीं है, कुछ और बताइये।’
‘उनकी उम्रों का योग मेरे फ्लैट नम्बर के बराबर है।’
‘यह भी काफी नहीं है, सर। कुछ और बताइये।’
‘पिछली साल मेरी सबसे बड़ी लड़की अपनी कक्षा में प्रथम आयी थी।’
‘धन्यवाद, सर। मैं समझ गया कि उनकी उम्र कितनी-कितनी है।’
बताइये कि उस शिक्षक की पुत्रियों की उम्र क्या थी?

दो-

एक पुस्तक दो सौ से कम पृष्ठों की है। उस पुस्तक के कुछ लगातार पन्ने किसी ने फाड़ दिये हैं। फटे हुए पन्नों की पृष्ठ संख्याओं का योग 2570 है। बताइए कि कहाँ से कहाँ तक की पृष्ठ संख्याओं वाले पन्ने फटे हुए हैं?

कृपया इनके उत्तर हल सहित बतायें।

संकटों में सुरक्षा के कुछ उपाय


संकटों में कोई नहीं फँसना चाहता, लेकिन अनायास ही संकट आते रहते हैं और हमें वे सब झेलने पड़ते हैं। अधिकांश लोग छोटे-छोटे संकटों में ही हिम्मत हार देते हैं और बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो बड़े-बड़े संकटों में भी हिम्मत नहीं हारते। संकट चाहे छोटा हो या बड़ा, हमें हिम्मत हारे बिना उसका मुकाबला करना चाहिए और उसके कारण होने वाली हानि को न्यूनतम करने की कोशिश करते रहना चाहिए। हिम्मत हार जाने पर छोटे संकट भी भयावह सिद्ध हो जाते हैं, जबकि हिम्मत से मुकाबला करने पर बड़े संकट भी झेले जा सकते हैं। इसलिए ”हारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरि नाम।“ अभी उत्तराखण्ड में जो भयंकर प्राकृतिक आपदा आयी, उससे हजारों व्यक्तियों के प्राण गये। बहुत से लोगों ने हिम्मत के साथ इसका मुकाबला किया और न केवल अपने प्राण बचाने में सफल रहे, बल्कि दूसरों की भी सहायता की।

आपदाओं का आना तो हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हम कुछ उपायों का सहारा लेकर उनकी विभीषिकाओं को कम कर सकते हैं। यहाँ मैं अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर कुछ उपाय बता रहा हूँ, जो सबको समझकर हमेशा याद रखने चाहिए।

भूख-प्यास से बचाव

बहुत से लोग ऐसी जगह फँस जाते हैं, जहाँ न तो खाने के लिए कोई वस्तु होती है और न पीने के लिए शुद्ध जल ही मिलता है। ऐसी स्थिति में एक विशेष प्रकार का प्राणायाम करके भूख-प्यास पर नियंत्रण किया जा सकता है और हफ्तों तक अपने प्राण बचाये जा सकते हैं। इस प्राणायाम की विधि निम्नप्रकार है- सीधे किसी भी आसन में बैठकर अपनी जीभ को मोड़कर नाली या कौए की चोंच का रूप देना चाहिए और होठों को गोल करके मुँह से हवा खींचनी चाहिए और फिर नाक से निकालनी चाहिए। ऐसा बार-बार कीजिए। हर जगह हवा में नमी होती है। इस तरह मुँह से हवा खींचने पर वह नमी पेट में चली जाती है। लगातार 5 मिनट यह प्राणायाम करने से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे पेट पानी पीने से भर गया है। यदि पीने का पानी बिल्कुल भी उपलब्ध नहीं है तो इस प्राणायाम से कम से कम 2 हफ्ते या अधिक भी अपने प्राण बचाये जा सकते हैं और यदि पीने का पानी मिल जाये, तो बिना कुछ खाये इस प्राणायाम को करके महीनों तक जीवित रहा जा सकता है।

ठंड और गर्मी से बचाव

कई बार हम ऐसी परिस्थिति में फँस जाते हैं कि मौसम बहुत ठंडा होता है और ठंड से बचने के लिए पर्याप्त कपड़े या उपाय नहीं होते। ऐसी हालत में हम सूर्यभेदी प्राणायाम करके अपने शरीर को गर्म रख सकते हैं। इसकी विधि यह है कि बायें नथुने को बायें अँगूठे से बन्द करके केवल दायें नथुने से साँस लेनी और निकालनी चाहिए। कुछ देर ऐसा करने से ही शरीर गर्म हो जाता है। इसका रहस्य यह है कि हमारा दायाँ स्वर सूर्य स्वर है जो गर्म होता है और बायाँ स्वर चन्द्र स्वर है, जो ठंडा होता है। केवल सूर्य स्वर से साँस लेने पर शरीर में गर्मी आ जाती है।

अगर हमें बहुत अधिक गर्मी लग रही है, तो हम दायाँ नथुना बन्द करके केवल बायें नथुने से साँस लेकर अपने शरीर को ठंडा रख सकते हैं।

बस या ट्रेन पलटने पर बचाव

भगवान न करे, यदि कभी आप बस या ट्रेन में जा रहे हों और वह दुर्घटनाग्रस्त होकर पलट रही हो, तो अपने प्राण बचाने का उपाय यह है कि आप बस या ट्रेन के किसी हैंडिल या खम्भे को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लें और उसे किसी भी हालत में न छोड़ें, चाहे बस या ट्रेन कितने भी चक्कर खाकर कितनी भी नीचे गिर रही हो। ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य सिर को टकराने से बचाना है, क्योंकि सिर टकराने से प्राण जा सकते हैं। हाथ-पैर टकरायें तो वे भले ही टूट जायें, लेकिन प्राणों पर संकट नहीं होगा। इसलिए किसी हैंडिल या खम्भे को कसकर पकड़ लेना चाहिए और अपने सिर को टकराने से बचाना चाहिए। यदि दुर्भाग्य से ऐसा कोई हैंडिल या खम्भा पास में न हो, तो दोनों हाथों की उँगलियों को फँसाकर हाथों को मोड़कर कानों के ऊपर से सिर को चारों ओर से इस प्रकार जकड़ लेना चाहिए कि भले ही हाथ टकरायें लेकिन सिर पर चोट न आये। ऐसा करके भी आप बहुत हद तक अपने प्राण बचा सकते हैं। इसके बाद जैसे ही बस या ट्रेन जमीन पर आकर टिक जाये, तो तत्काल उसके किसी दरवाजे या खिड़की से बाहर निकल जाना चाहिए (आवश्यक हो तो काँच को तोड़कर), ताकि आग लगने की स्थिति में आप सुरक्षित रहें।

बाढ़ में फँसने पर बचाव

यदि आप अचानक किसी बाढ़ में फँस गये हैं, तो उससे बचने का उपाय यह है कि किसी पक्के घर की सबसे ऊपरी मंजिल पर चले जायें। यदि ऐसा कोई घर आस-पास न हो, तो किसी बड़े पेड़ के तने से चिपक जायें या उस पर थोड़ा ऊपर चढ़कर बैठ जायें। अगर पेड़ गिरेगा भी तो आप सुरक्षित रहेंगे, क्योंकि पेड़ पानी में डूबता नहीं है। लेकिन ऐसी तरफ चिपकना चाहिए कि आप पेड़ के नीचे न दब जायें। यदि आस-पास पेड़ भी नहीं है, तो बाढ़ से निकलने का एक उपाय यह है कि अपने घर पर प्लास्टिक के 2-4 डिब्बे या बोतलें लेकर उनको खाली करके ढक्कन लगा दें, ताकि उनमें पानी न जाये। फिर उनको अपनी छाती से कसकर बाँध लें। ऐसा करने पर आप डूबेंगे नहीं और खड़े खड़े हाथ चलाकर तैरते हुए कहीं भी जा सकते हैं। ध्यान रखें कि बोतलों को कमर से न बाँधें, नहीं तो आपकी कमर ऊपर आ जायेगी और सिर नीचे हो जाएगा, जिससे आप डूब जायेंगे।

आग से बचाव

कई बार आग आदि लग जाने पर हम किसी भवन में फँस जाते हैं। ऐसी स्थिति में हमको या तो तत्काल सीढि़यों से नीचे उतर जाना चाहिए या अगर नीचे का रास्ता बन्द है तो किसी बालकनी में या छत पर चले जाना चाहिए, जहाँ खुली हवा आ रही हो। ऐसा करने से आप धुँए में दम घुटने से बच सकते हैं। बालकनी या छत पर जाकर बाहर निकलने का उपाय करना चाहिए। इसका एक उपाय रस्सी के सहारे उतरना हो सकता है। यदि रस्सी उपलब्ध हो, तो उसको कसकर किसी स्थिर वस्तु से बाँधकर धीरे-धीरे नीचे उतर जाना चाहिए। रस्सी पर्याप्त लम्बी होना आवश्यक है, ताकि आप जमीन तक सुरक्षित पहुँच जायें। यदि रस्सी उपलब्ध नहीं है, तो आप अपने पहने हुए कपड़ों या चादरों आदि से रस्सी बना सकते हैं। इसका तरीका यह है कि जो भी कपड़ा हो उसकी 2 या 3 इंच चैड़ी लम्बी-लम्बी पट्टियाँ फाड़ लें और फिर उनको गोल-गोल बँटकर दोहरी या तिहरी रस्सी बना लेनी चाहिए। उसमें बीच-बीच में गाँठें भी लगा लेनी चाहिए, ताकि उतरने में सुविधा रहे। ऐसी रस्सी एक व्यक्ति का वजन झेलने के लिए पर्याप्त मजबूत होती है। रस्सी बनाने में थोड़ा समय अवश्य लगेगा, लेकिन कोई अन्य उपाय न होने पर ऐसा ही करना चाहिए।

लिफ्ट टूटने पर बचाव

यदि आप किसी लिफ्ट में जा रहे हैं और दुर्भाग्य से वह टूट जाती है और नीचे गिरने लगती है, तो उस हालत में अपने प्राण बचाने का सुनिश्चित उपाय यह है कि आप लिफ्ट में छत की किसी वस्तु जैसे पंखा या दरार को पकड़कर लटक जायें और लिफ्ट नीचे पहुँचने तक लटकें रहें। इससे आप उस झटके से सुरक्षित बच जायेंगे, जो लिफ्ट जमीन से टकराने पर लगता है। यदि संयोग से लिफ्ट में ऐसी कोई वस्तु न हो, जिससे लटका जा सके, तो आपको सीधे खड़े रहकर लगातार कूदते रहना चाहिए, ताकि लिफ्ट नीचे टकराने पर झटका कम से कम लगे।

Friday 14 June 2013

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का एक पृष्ठ


भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में अनेक महान् कार्य किये थे। लेकिन हमें उनकी जानकारी नहीं दी जाती, बल्कि उनके बारे में बहुत से फालतू और काल्पनिक किस्से फैलाये जाते हैं। यहाँ मैं उनके जीवन के बारे में एक अल्पज्ञात घटना का उल्लेख कर रहा हूँ।

कंस के वध के बाद भगवान् कृष्ण ने अपने वास्तविक माता-पिता देवकी और वसुदेव को कंस के कारागार से छुड़ाया था। उस समय तक कृष्ण और बलराम दोनों भाइयों की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी, हालांकि दोनों भाई मल्लयुद्ध में प्रवीण थे। जब वसुदेव को पता चला कि अभी तक उनकी शिक्षा नहीं हुई है, तो शिक्षा के लिए दोनों भाइयों को आजकल की उज्जैन नगरी के पास अवंतिका में ऋषि संदीपन (या संदीपनि)  के आश्रम में भेजा गया। वहाँ उन्होंने गुरु की सेवा करते हुए और सभी नियमों का पालन करते हुए पूरे मनोयोग से शिक्षा प्राप्त की और केवल तीन वर्ष में ही सभी प्रचलित शास्त्रों में निपुण हो गये। इतना ही नहीं उन्होंने धनुर्युद्ध और गदायुद्ध में भी प्रवीणता प्राप्त कर ली।

जब उनकी शिक्षा पूरी हो गयी और उनके जाने का समय आया, तो तत्कालीन परम्परा के अनुसार भगवान कृष्ण ने अपने गुरु को गुरुदक्षिणा देने की इच्छा प्रकट की। गुरुजी ने कहा कि मेरे पास सब कुछ है, इसलिए मुझे कोई सांसारिक वस्तु नहीं चाहिए। यदि तुम गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो, तो मेरे पुत्र को वापस ला दो, जिसे कोई विदेशी शक्ति अपहरण करके ले गयी है। तुम इस कार्य को करने में समर्थ हो। भगवान कृष्ण ने उनको वचन दिया कि मैं अवश्य आपके पुत्र को वापस लाऊँगा, चाहे मुझे अपने प्राण ही क्यों न गँवाने पड़ें।

उस समय गोवा या सौराष्ट्र के तट से कुछ दूर एक द्वीप में एक रानी का शासन था। वहाँ मातृ-सत्तात्मक प्रणाली थी अर्थात् पुरुषों को उनकी पत्नियों का दास बनाकर रखा जाता था। सारा कार्य महिलायें ही करती थीं। उस रानी के महिला सैनिक कभी-कभी भारत की मुख्य भूमि पर आ जाते थे और उनको जो पुरुष पसन्द आता था, उसका अपहरण कर ले जाते थे। ऐसे ही किसी दिन वे ऋषि संदीपन के युवा पुत्र पुनर्दत्त को उठा ले गये। द्वीप में जाने पर रानी ने उसका द्वन्द्व युद्ध अपने पति से करा दिया और इस युद्ध में उस पति के मर जाने पर  पुनर्दत्त को अपना नया पति बना लिया।

उसको छुड़ाने के लिए कृष्ण अपने 5-6 साथियों के साथ एक नाव में सवार होकर उस द्वीप पर पहुँच गये। साथियों को उन्होंने नाव में ही छोड़ दिया और अकेले ही उस रानी के दरबार में गये। रानी उनको देखते ही मोहित हो गयी और उसने कृष्ण से कहा कि तुम मेरे पति से द्वन्द्व युद्ध करो। अगर तुम जीत गये तो मैं तुम्हें अपना पति बना लूँगी, फिर तुम खूब आनन्द से रहना। कृष्ण ने संदीपन के पुत्र को देखते ही पहचान लिया, क्योंकि उसका हुलिया उनको बताया जा चुका था। वे उसके साथ तलवार से द्वन्द्व युद्ध करने लगे।

युद्ध के बीच में ही उन्होंने धीमी आवाज में पुनर्दत्त को समझा दिया कि मैं तुम्हें छुड़ाने आया हूँ। फिर उससे कहा कि लड़ने का अभिनय करते हुए समुद्र तट की ओर चलो। इस प्रकार दोनों लड़ते-लड़ते समुद्र के किनारे आ गये। रानी के सैनिक उनकी चाल नहीं समझ पाये। फिर कृष्ण ने तट के बिल्कुल पास आकर इशारा किया, तो दोनों दौड़कर अपनी नौका में चढ़ गये। नौका में उनके साथी पहले से तैयार थे, वे तेजी से नौका दौड़ा ले गये। जब रानी के सैनिकों की समझ में यह चाल आयी, तो वे उनको पकड़ने दौड़े, लेकिन नौका पर सवार लोगों ने तीरों की बौछार छोड़कर उनको पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। इस तरह वे गुरु पुत्र को सुरक्षित लौटाकर ले आये।

आश्रम में आकर जब उन्होंने पुनर्दत्त को उसके माता-पिता को सौंपा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। कृतज्ञता भाव से गुरु की पत्नी ने कृष्ण से कहा कि तुम कोई वरदान माँग लो। मैं अपने समस्त पुण्यों को देकर भी वह वरदान पूरा करूँगी। कृष्ण कोई वरदान चाहते नहीं थे, लेकिन गुरुमाँ के आग्रह पर उन्होंने वरदान माँगा- ‘मातृ हस्ते भोजनम्’ अर्थात् मैं आजीवन माता के हाथ का भोजन करता रहूँ। गुरुमाँ ने तत्काल ‘तथास्तु’ कह दिया।

उनका यह वरदान फलीभूत हुआ। भगवान कृष्ण ने बड़ी लम्बी आयु पायी थी। महाभारत के युद्ध के समय कहा जाता है कि वे 75 वर्ष के थे। उसके बाद भी 25-30 वर्ष तक वे जीवित रहे। उनकी माता देवकी उनसे भी 25 वर्ष बड़ी थीं। लेकिन इस वरदान के प्रभाव से कृष्ण के देहावसान के बाद ही देवकी का देहान्त हुआ था।

गुरु-पुत्र को वापस लाने की इस कहानी को पुराणकारों द्वारा कई रूपों में प्रचारित किया गया है, परन्तु वे कहानियाँ विश्वसनीय नहीं हैं।

अंकुरित अन्न


कई प्राकृतिक चिकित्सक इसे ‘अमृतान्न’ कहते हैं। हम इसे भोजन का अंग ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भोजन भी बना सकते हैं। यदि यह सम्भव न हो, तो इसे नाश्ते के रूप में सेवन करना बहुत अच्छा रहेगा। यह पकाये हुए अन्न से अधिक लाभदायक होता है और पचने में अत्यन्त हलका होता है। अन्न को अंकुरित करने की विधि बहुत सरल है। साबुत अनाजों जैसे चना, गेहूँ, मूँग, उड़द, मैथी दाने आदि को आवश्यक मात्रा में लेकर साफ कर लें और एक दो बार साफ पानी में धो लें। अब इनको किसी कटोरे में रखकर पानी में भिगो दें। 10-12 घंटे भिगोये रखने के बाद उनको किसी कपड़े में लपेटकर उसी कटोरे में रख दें और पानी निकाल दें। कटोरे को अच्छी तरह ढक दें। ऐसा करने से 24 घंटों या अधिक से अधिक 48 घंटों में उनमें अंकुर निकल आयेंगे। उनको एक बार और धोकर खायें। चाहें तो थोड़ा सैंधा नमक और नीबू भी डाल सकते हैं। स्वाद बढ़ाने के लिए आप उसमें धनिया, टमाटर, प्याज, अदरक और हरी मिर्च के टुकड़े और जाड़े के दिनों में रातभर भिगोये हुए मूँगफली के दाने भी मिला सकते हैं।

अंकुरित अन्न खाने से हमारे शरीर के लिए आवश्यक सभी विटामिनों और खनिज पदार्थों की पूर्ति हो जाती है। यह पाचन प्रणाली को सुधारने के लिए भी बहुत लाभदायक है, क्योंकि इन्हें पचाने में शरीर को अधिक श्रम नहीं करना पड़ता। इसके विपरीत आग पर पकाये हुए अन्न को पचाने में आँतों पर बहुत दबाव पड़ता है। आप चाहें तो पूर्णतः कच्चा खाने अर्थात् आग के सम्पर्क में न आयी हुई वस्तुओं को ही ग्रहण करने का व्रत ले सकते हैं। इसे अपक्वाहार कहा जाता है। अपक्वाहार पुराने और हठी रोगों से मुक्ति प्राप्त करने में बहुत कारगर सिद्ध हुआ है। यदि हम अपने आहार में अन्न और फलों का पर्याप्त अनुपात बनाये रखें और मूँगफली के दानों के रूप में चिकनाई भी लेते रहें, तो अपक्वाहार से किसी भी प्रकार की हानि होने की कोई सम्भावना नहीं है।

अंकुरित अन्न के बारे में मैंने एक तुकबंदी की है, जो यहाँ दे रहा हूँ-

                                  अमृतान्न
सूखे देशी चने लाइए। साबुत मूँग मैथी मिलाइए।।
छान बीनकर साफ कीजिए। रगड़-रगड़ कर धो लीजिए।।
बारह घंटे जल में भिगोइए। फिर कपड़े में बाँध दीजिए।।
फिर उसको रख देना ढककर। जिससे निकल आयेंगे अंकुर।।
अंकुर आने पर निकालिए। एक बार फिर धो डालिए।।
धनिया अदरक प्याज टमाटर। डालो छोटे-छोटे टुकड़े कर।।
सेंधा नमक जरा सा डालो। नीबू की कुछ बूँद मिला लो।।
चबा-चबाकर प्रेम से खाओ। अमृत सा आनन्द उठाओ।।

Saturday 8 June 2013

यह इस्लाम का कौन सा रूप है?

आये दिन समाचार आते हैं कि मुस्लिम इमाम, काझी, शेख, उलेमा, पीर, मौलवी हर दिन मुस्लिम लड़कियों को हवस का निशाना बना रहे हैं।

दक्षिण भारत के शहर हैदराबाद में खाड़ी के अरबवासियों के गलत आचरण की लगातार पोल खुल रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया समाचार पत्र में मोहम्मद वाजिहुद्दीन ने “One minor girl many of Arabs.” शीर्षक से तथा आर.अखिलेश्वरी ने डेक्कन हेराल्ड में “Fly by night bridegroom” शीर्षक से लेख लिखे हैं. वाहिजुद्दीन ने इस चर्चा को आरंभ करते हुए कहा कि नई ऊर्जा वाले ये पुराने शिकारी हैं. प्राय: दाढ़ी रखने वाले और लहराते चोंगे के साथ पगड़ी पहनने वाले ये अरब बूढ़े हैदराबाद की गलियों में मध्यकाल के हरम में चलने वाले राजाओं-नवाबों की याद दिलाते हैं, जिसे हम इतिहास का हिस्सा मान बैठे हैं. वियाग्रा का सेवन करने वाले ये अरब इस्लामी विवाह के नियम “निकाह ” की आड़ में शर्मनाक अपराध को अंजाम देते हैं. वाजिहुद्दीन इस समस्या को और स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि ये लोग उस परिपाटी का दुरुपयोग करते हैं जिसके द्वारा एक मुस्लिम एक साथ चार पत्नियां रख सकता है. अनेक बूढ़े अरबवासी न केवल अधिकांश नाबालिग हैदराबादी लड़कियों से विवाह करते हैं, वरन् एक बार में ही एक से अधिक नाबालिग लड़कियों से विवाह कर डालते हैं. इस घटिया काम के विरुद्ध युवतियों को सलाह देने वाली तथा उन्हें जागरुक करने वाली जमीला निशात के अनुसार ये अरबवासी कम उम्र की कुंवारी लड़कियों को प्राथमिकता देते हैं.

ये अरबवासी सामान्यत: इन लड़कियों से थोड़े समय के लिए विवाह करते हैं और कभी–कभी तो केवल एक रात के लिए. अर्थात रात भर उसके शरीर से खेलकर और अपनी हवस पूरा करके वे सुबह होते ही केवल तीन शब्द बोलकर उनको तलाक दे देते हैं और अपने रस्ते चले जाते हैं. वाजिहुद्दीन की रिपोर्ट के अनुसार विवाह और तलाक की औपचारिकता एक साथ पूरी कर ली जाती है.

http://hi.danielpipes.org/article/3061

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/05/130525_hyderabad_contract_marriage_vr.shtml

इधर कश्मीर घाटी के बडगाम जिले में बच्चियों को अश्लील फ़िल्में दिखाकर उनके साथ बलात्कार करने वाले मौलवी द्वारा पीड़ित  लड़कियों को धमकाए जाने का मामला सामने आया है. गौरतलब है कि मौलवी सैयद गुलजार अहमद भट को 5 लड़कियों के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है और उसपर आऱोप है कि उसने लड़कियों को शिक्षा देने के बहाने उनका शोषण किया.

पुलिस ने गुलजार अहमद को 15 दिनों की हिरासत में रखा है, लेकिन उसके समर्थक पीड़ित लड़कियों को धमका रहे हैं. इस घटना के सामने आने के बाद स्थानीय लोगों में जबरदस्त गुस्सा है. वहीं मौलवी के समर्थक भी सड़कों पर उतर आये हैं.

http://luciferschildren.files.wordpress.com/2013/02/liers.png

http://aajtak.intoday.in/story/rape-by-maulavi-now-victims-being-threatened-1-732148.html

ऐसी घटनाएँ इस्लाम की छवि को तार-तार कर रही हैं, लेकिन इस्लाम के झंडाबरदारों को इसकी कोई चिंता नहीं है. क्यों? 

मूर्खता का होम वर्क

सब जानते हैं कि हमारे स्कूलों में बच्चों को ढेर सारा होम वर्क दिया जाता है, जिसको करने में बच्चे घबराते हैं और मजबूर होकर उनके माता-पिता को उनका होम वर्क खुद करना या कराना पड़ता है. माँ-बाप की इस मजबूरी का फायदा मास्टर और मास्टरनी जमकर उठाते हैं.

अभी कुछ दिन पहले मेरी भतीजी की गर्मी की छुट्टियाँ हुईं, तो उसको मास्टरनी ने एक लम्बा सा परचा पकड़ा दिया, जिसमें ढेर सारा होम वर्क करने के लिए कहा गया था. उसमें एक वाक्य देखकर मुझे बहुत हँसी आयी-

Make a file on your "Dream Invention" and write its working method.

कक्षा ९ में आये बच्चों से नया आविष्कार करने की कल्पना करने की आशा करना मूर्खता नहीं तो क्या है. मेरी भतीजी ने परेशान होकर मुझसे सहायता माँगी. तब मैंने कुछ सोचकर एक छोटा सा आर्टिकल तैयार किया, जिसमें होम वर्क करने वाली मशीन का आविष्कार करने की कल्पना की गयी है. यह आर्टिकल यहाँ दे रहा हूँ, ताकि आप भी मजा ले सकें- 

My Dream Invention

Doing a heavy and tiring homework has always been a problem for me. Teachers give us a lot of home work to do on holidays, without realising that it will be very irritating to do homework on holidays when everybody enjoys them. I wanted to make a machine which could automatically do the homework, so that we could play with my friends. I decided to invent such a machine when I become big. This was my dream invention.

On a Saturday night I was thinking of the load of homework which our useless teachers had given us to do on Sunday. I fell a sleep worrying about my homework only.

In the night I saw a dream that I have been successful in making the machine which could do homework of any class. Soon this machine was famous in the school and neighbourhood. All students were coming to see it and wanted to use it to do their own homework. They were ready to pay any price for this machine. They asked me to show the working of the machine. 

I prepared some slips of the homework to be done. Fed those slips in the machine with blank notebooks. Suddenly notebooks came out of the machine in which the homework was done as per the slips. Everybody was very happy to see the homework being done successfully by the machine.

Now everybody wanted to purchase the machine. There were many students who wanted to buy it. They started announcing the price they were ready to pay for it, as if it was being auctioned. They also started pushing each other and pulling the machine towards them. They also pushed me aside and I fell on the ground and cried. 

With this my dream was broken and my mother was asking me why I was crying. I did not tell her anything, otherwise she would laugh at me.

Wednesday 5 June 2013

दलों के दलदल में सूचना अधिकार

मुख्य सूचना आयुक्त ने राजनैतिक दलों को सूचना अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत लाने की घोषणा क्या की कि तमाम राजनैतिक दलों में खलबली मच गयी। जो कांग्रेस अब तक अपनी पीठ इसलिए थपथपा रही थी कि उसने यह अधिकार जनता को उपलब्ध कराया है, वही इस अधिकार के खिलाफ हायतौबा मचाने में सबसे आगे हैं और उसके स्वर में स्वर मिला रहे हैं वे सब दल जो स्वयं को भ्रष्टाचार से मुक्त और आम जनता का दल बताते हैं।

जो दल इस आदेश पर सबसे ज्यादा छातियाँ पीट रहे हैं वे ऐसे दल हैं जो काले धन के बल पर चलते हैं। कई नेताओं ने अपने काले धन से अपनी जेबी पार्टियाँ बना रखी हैं और उन पार्टियों का उपयोग सौदेबाजी में और काले धन को बढ़ाने में करते हैं। उनको डर है कि अभी जो कानून केवल 6 राष्ट्रीय मान्यताप्राप्त दलों पर लगाया जा रहा है, वह देर सबेर उनके ऊपर भी लगाया जाएगा और उनके लिए काले धन से राजनीति करना कठिन हो जाएगा।

हालांकि भाजपा भी इस आदेश का विरोध कर रही है, लेकिन उसके कारण दूसरे हैं। उसे कोई सूचना देने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उसे दल में ही सूचना अधिकारी नियुक्त करने की अनिवार्यता पर आपत्ति है। उसका कहना है कि वे सारी सूचनायें चुनाव आयोग को उपलब्ध करा देते हैं, इसलिए यदि किसी को कोई सूचना चाहिए तो वह चुनाव आयोग से ले सकता है। भाजपा की इस बात में दम है, लेकिन इस बात पर आश्चर्य है कि जो दल दर्जनों की संख्या में उपाध्यक्ष, महासचिव और सचिव नियुक्त कर सकते हैं, वे एक सूचना अधिकारी नियुक्त नहीं कर सकते। इससे तो यह अच्छा होगा कि वे अपने एक प्रवक्ता को सूचना अधिकारी का दायित्व भी दे दें।

चुनाव आयोग को चाहिए कि वह राजनैतिक दलों के विरोध की चिन्ता किये बिना सूचना अधिकार अधिनियम को लागू कराये। इसको लागू करने के लिए निम्नलिखित नियम बनाये जा सकते हैं-

1. चुनाव आयोग में एक सूचना अधिकारी नियुक्त हो, जो सभी मान्यताप्राप्त और पंजीकृत राजनैतिक दलों की सूचनाओं को एकत्र करे और माँगने पर उपलब्ध कराये। ये सूचनाएँ निम्नलिखित हो सकती हैं- दल के सभी पदाधिकारियों की सूची, सक्रिय सदस्यों की सूची, विधानसभा या लोकसभा चुनाव क्षेत्र के अनुसार दल के प्राथमिक सदस्यों की संख्या, दल को प्राप्त चन्दे आदि का विवरण, खर्चों का ब्यौरा आदि। ऐसा अधिकारी प्रत्येक राज्य के चुनाव आयोग में नियुक्त किया जाना चाहिए।

2. इन सूचनाओं को प्रत्येक वर्ष एक निश्चित तिथि तक अद्यतन करना अनिवार्य हो। यदि कोई दल निर्धारित तिथि तक सूचना उपलब्ध कराने में असफल रहे या आना-कानी करे, तो उसकी मान्यता और पंजीकरण निरस्त अथवा निलम्बित कर दी जाये और उसके पदाधिकारियों पर 6 साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया जाए।

3. यदि कोई ऐसी सूचना मांगी जाती है, जो चुनाव आयोग के पास नहीं है, परन्तु जनहित में आवश्यक है, तो सम्बंधित राजनीतिक दल या दलों से वह सूचना मंगवानी चाहिए और उपलब्ध करानी चाहिए.

यदि राजनैतिक दलों पर सूचना अधिकार अधिनियम को विधिपूर्वक लागू किया जाएगा, तो यह निश्चित है कि राजनीति में और चुनावों में काले धन का प्रभाव घटेगा और सही उम्मीदवारों के आगे आने की सम्भावना बढ़ जाएगी।

Tuesday 4 June 2013

अत्यंत लाभदायक "सलाद"

कुछ दिन पहले मैंने अपने लेखों में तीन हानिकारक वस्तुओं – चाय, चीनी और नमक - की चर्चा की थी. इनके साथ दो अत्यन्त लाभदायक वस्तुओं की चर्चा करना आवश्यक है, जो हमारे भोजन का आवश्यक अंग होनी चाहिए। ये वस्तुएँ हैं- सलाद और अंकुरित अन्न। यहाँ मैं सलाद की चर्चा कर रहा हूँ, अंकुरित अन्न के बारे में अगली बार.

सलाद को कच्ची खायी जाने वाली सब्जियों, जैसे खीरा, ककड़ी, गाजर, मूली, टमाटर, प्याज, चुकंदर, पालक, पातगोभी, गाँठगोभी आदि तथा फलों जैसे पपीता, तरबूज, खरबूज, सेब, अमरूद, केला आदि के टुकड़ों द्वारा तैयार किया जाता है. किसी भी मौसम में इनमें से जो भी वस्तुएं उपलब्ध हों, उनको धोकर और आवश्यक होने पर छिलका उतारकर छोटे-छोटे टुकड़े काट लें। फिर उन पर जरा सा सैंधा नमक और पिसी हुई काली मिर्च बुरक लें। ऊपर से थोड़ा नीबू का रस निचोड़ लें। इसी को सलाद कहते हैं। इसके विशिष्ट स्वाद की कल्पना बिना खाये नहीं की जा सकती। यदि सैंधा नमक, काली मिर्च तथा नीबू नहीं भी हो, तो भी चलेगा।

सलाद हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। इसमें पाचन क्रिया को सुधारने और पेट साफ रखने में सहायता करने वाले रेशे होते हैं। इसलिए इसे भोजन का अनिवार्य अंग होना चाहिए। यदि हम एक-दो रोटी कम करके उसके स्थान पर सलाद लें, तो स्वास्थ्य में चमत्कारी सुधार मालूम होगा। प्रमुख प्राकृतिक और सत्व चिकित्सक मेरठ के स्वामी जगदीश्वरानन्द जी सलाद को ‘साल्हाद’ कहते हैं, क्योंकि इसे प्रसन्नता के साथ खाया जाता है। इसको खाने का सही तरीका यह है कि सलाद को भोजन में सबसे पहले खा लेना चाहिए और उसके बाद ही अन्य वस्तुएँ खानी चाहिए।

Saturday 1 June 2013

कुछ दिमागी व्यायाम

मेरे ब्लाग पढ़ने वाले पाठक बंधुओं को शायद यह पता नहीं है कि मैं मूलतः गणितज्ञ हूँ। गणित मेरा प्रिय विषय रहा है। मैंने सांख्यिकी में स्नातकोत्तर किया है, जो गणित की ही एक शाखा है। कम्प्यूटर विज्ञान भी गणित की एक विशेष शाखा है। गणितीय पहेलियों में बचपन से ही मेरी गहरी रुचि रही है। इसलिए इस बार के ब्लाग में मैं तीन साधारण पहेलियाँ दे रहा हूँ। सभी से निवेदन है कि इनका हल भेजने की कृपा करें।

1. एक सब्जी वाले के पास नीबुओं की दो ढेरियाँ हैं। एक ढेरी के नीबू लगभग 4 सेमी व्यास के हैं और दूसरी ढेरी के नीबू लगभग 5 सेमी व्यास के हैं। वह छोटे नीबू 10 रुपये के 6 और बड़े नीबू 10 रुपये के 4 बेच रहा है। लीला बहिन जी सोच रही हैं कि उनको कौन से नीबू खरीदने चाहिए कि अधिक से अधिक रस निकले। आप उनको क्या सलाह देंगे और क्यों?

2. दो भाइयों में 100 मीटर की दौड़ हो रही है। पहली दौड़ में बड़ा भाई जीत गया। जब वह जीत की रेखा तक पहुँचा था, तो छोटा भाई उससे तीन मीटर पीछे रह गया था। दूसरी दौड़ में बड़े भाई ने तीन मीटर पीछे से दौड़ना शुरू किया। अगर वे दोनों पहले जैसी चाल से ही दौड़ें, तो इस बार उनमें से कौन जीतेगा या दोनों बराबर रहेंगे और क्यों?

3. एक डाक्टर को तत्काल ही तीन जरूरी आपरेशन करने हैं। उसके पास दस्तानों के केवल दो जोड़े हैं। दस्तानों की तीसरी जोड़ी उस समय मिलना सम्भव नहीं है। क्या आप बता सकते हैं कि वह किस तरह आपरेशन करे कि किसी भी मरीज का खून न तो किसी अन्य मरीज को छू पाये और न डाक्टर के हाथों पर लग पाये?

इन पहेलियों के जो उत्तर मिलेंगे, उनको 24 घण्टे तक रोककर रखूँगा और फिर अपने उत्तर के साथ सबको एक साथ दिखाऊँगा। देखना है कि कौन-कौन सही जबाब देते हैं।

भगवा ध्वज

भगवा ध्वज हिन्दू संस्कृति और धर्म का शाश्वत प्रतीक है। यह हिन्दू धर्म के प्रत्येक आश्रम, मन्दिर पर फहराया जाता है। यही श्रीराम, श्रीकृष्ण और अर्जुन के रथों पर फहराया जाता था और छत्रपति शिवाजी सहित सभी मराठों की सेनाओं का भी यही ध्वज था। यह धर्म, समृद्धि, विकास, अस्मिता, ज्ञान और विशिष्टता का प्रतीक है। इन अनेक गुणों या वस्तुओं का सम्मिलित द्योतक है अपना यह भगवा ध्वज।

भगवा ध्वज का रंग केसरिया है। यह उगते हुए सूर्य का रंग है। इसका रंग अधर्म के अंधकार को दूर करके धर्म का प्रकाश फैलाने का संदेश देता है। यह हमें आलस्य और निद्रा को त्यागकर उठ खड़े होने और अपने कर्तव्य में लग जाने की भी प्रेरणा देता है। यह हमें यह भी सिखाता है कि जिस प्रकार सूर्य स्वयं दिनभर जलकर सबको प्रकाश देता है, इसी प्रकार हम भी निस्वार्थ भाव से सभी प्राणियों की नित्य और अखंड सेवा करें।

यह यज्ञ की ज्वाला का भी रंग है। यज्ञ सभी कर्मों में श्रेष्ठतम कर्म बताया गया है। यह आन्तरिक और बाह्य पवित्रता, त्याग, वीरता, बलिदान और समस्त मानवीय मूल्यों का प्रतीक है, जो कि हिन्दू धर्म के आधार हैं। यह केसरिया रंग हमें यह भी याद दिलाता है कि केसर की तरह ही हम इस संसार को महकायें।

भगवा ध्वज में दो त्रिभुज हैं, जो यज्ञ की ज्वालाओं के प्रतीक हैं। ऊपर वाला त्रिभुज नीचे वाले त्रिभुज से कुछ छोटा है। ये त्रिभुज संसार में विविधता, सहिष्णुता, भिन्नता, असमानता और सांमजस्य के प्रतीक हैं। ये हमें सिखाते हैं कि संसार में शान्ति बनाये रखने के लिए एक दूसरे के प्रति सांमजस्य, सहअस्तित्व, सहकार, सद्भाव और सहयोग भावना होना आवश्यक है।

भगवा ध्वज दीर्घकाल से हमारे इतिहास का मूक साक्षी रहा है। इसमें हमारे पूर्वजों, ऋषियों और माताओं के तप की कहानियां छिपी हुई हैं। यही हमारा सबसे बड़ा गुरु, मार्गदर्शक और प्रेरक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किसी व्यक्ति विशेष को अपना गुरु नहीं माना है, बल्कि अपने परम पवित्र भगवा ध्वज को ही गुरु के रूप में स्वीकार और अंगीकार किया है। साल में एक बार हम सभी स्वयंसेवक अपने गुरु भगवा ध्वज के सामने ही अपनी गुरु दक्षिणा समर्पित करते हैं.

मौलिक भगवा ध्वज में कुछ भी लिखा नहीं जाता। लेकिन मंदिरों पर लगाये जाने वाले ध्वजों में ओउम् आदि लिखा जा सकता है। इसी प्रकार संगठन या व्यक्ति विशेष के ध्वज में अन्य चिह्न हो सकते हैं, जैसे अर्जुन के ध्वज में हनुमान का चिह्न था। लेकिन किसी भी स्थिति में उनका रंग भगवा ही होना चाहिए।