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Sunday 22 May 2016

स्वास्थ्य के लिए भोजन

भोजन जीवन के लिए एक अति आवश्यक वस्तु है। भोजन से हमारे शरीर को पोषण प्राप्त होता है और उसमें होने वाली कमियों की भी पूर्ति होती है। शरीर की शक्ति बनाये रखने और उससे काम लेते रहने के लिए भोजन उसी प्रकार आवश्यक है, जिस प्रकार कार के लिए पेट्रोल या डीजल। हमारा जीवन भोजन पर ही निर्भर है। भोजन के अभाव में शरीर की शक्ति नष्ट हो जाती है और जीवन संकट में पड़ जाता है।
भोजन का स्वास्थ्य से बहुत गहरा सम्बंध है। भोजन करना एक अनिवार्य कार्य है। इसी प्रकार हम अन्य कई अनिवार्य कार्य करते हैं, जैसे साँस लेना, मल त्यागना, मूत्र त्यागना, स्नान करना, नींद लेना आदि। इन कार्यों में हमें कोई आनन्द नहीं आता, परन्तु भोजन करने में हमें आनन्द आता है। यह तो प्रकृति माता की कृपा है कि भोजन करने जैसे अनिवार्य कार्य में भी उसने स्वाद का समावेश कर दिया है, जिससे भोजन करना हमें बोझ नहीं लगता, बल्कि आनन्ददायक अनुभव होता है। लेकिन अधिकांश लोग प्रकृति की इस कृपा का अनुचित उपयोग करते हैं और स्वाद के वशीभूत होकर ऐसी वस्तुएँ खाते-पीते हैं, जो शरीर के लिए कतई आवश्यक नहीं हैं, बल्कि उलटे हानिकारक ही सिद्ध होती हैं। भोजन का उद्देश्य शरीर को क्रियाशील बनाए रखना होना चाहिए। परन्तु अधिकांश लोग जीने के लिए नहीं खाते, बल्कि खाने के लिए ही जीते हैं। ऐसी प्रवृत्ति वाले लोग ही प्रायः बीमार रहते हैं।
हमारे अस्वस्थ रहने का सबसे बड़ा कारण गलत खानपान होता है। यदि हम अपने भोजनअको स्वास्थ्य की दृष्टि से संतुलित करें और हानिकारक वस्तुओं का सेवन न करें, तो बीमार होने का कोई कारण नहीं रहेगा। हानिकारक वस्तुओं का सेवन करने पर ही रोग उत्पन्न होते हैं और उनका सेवन बन्द कर देने पर रोगों से छुटकारा पाना सरल हो जाता है। कई प्राकृतिक तथा अन्य प्रकार के चिकित्सक तो केवल भोजन में सुधार और परिवर्तन करके ही सफलतापूर्वक अधिकांश रोगों की चिकित्सा करते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान में तो खान-पान का सबसे अधिक महत्व है। इसमें किसी दवा आदि का सेवन नहीं किया जाता, बल्कि भोजन को ही दवा के रूप में ग्रहण किया जाता है और इतने से ही व्यक्ति स्वास्थ्य के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है। आयुर्वेद में कहा गया है-
न चाहार समं किंचिद् भैषज्यमुपलभ्यते।
शक्यतेऽप्यन्न मात्रेण नरः कर्तुं निरामयः।।
अर्थात् ”आहार के समान दूसरी कोई औषधि नहीं है। केवल आहार से ही मनुष्य रोगमुक्त हो सकता है।“
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. ७, सं. २०७३ वि.

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष - 9

मैं नभाटा में अपने ब्लॉग पर राजनीति के अलावा अन्य विषयों पर भी बीच बीच में लिखता रहता था. मैं प्रारम्भ से ही प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद का समर्थक हूँ और एलोपैथी से बहुत चिढ़ता हूँ, हालाँकि मेरे घर-परिवार में ही अनेक एलोपैथिक डाक्टर हैं.
ऐसे ही एक अवसर पर मैंने एक लेख लिखा- "झोलाछाप डाक्टर बनाम अटैचीछाप डाक्टर". इस लेख में एलोपैथी के इन दोनों श्रेणियों के डाक्टरों की तुलना की गयी थी और बताया गया था कि दोनों ही प्रकार के डाक्टर समाज की एक जैसी कुसेवा कर रहे हैं.
इस लेख पर बहुत कमेंट आये. कई लोगों ने यह समझा था कि मैं अटैचीछाप डाक्टरों का विरोध करके झोलाछाप डाक्टरों का पक्ष ले रहा हूँ. लेकिन मेरा मतलब ऐसा बिल्कुल नहीं था. मैंने तो दोनों का बराबर विरोध किया था. कई लोगों ने इसबात पर बहुत बहस की, लेकिन अधिकांश ने मेरा समर्थन ही किया.
कई लोगों ने पूछा कि इसका विकल्प क्या है, तो मैंने उनको बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा ही सबसे अच्छी पद्धति है. मैंने इस बारे में एक पुस्तिका भी लिखी है, जिसकी सूचना मैंने अपने एक लेख "स्वास्थ्य के बारे में एक अनुपम पुस्तिका" में दी और लोगों से वह पुस्तिका ईमेल से मंगाने का आग्रह किया.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
इस लेख को पढ़कर सैकड़ों पाठकों ने यह पुस्तिका मंगाई और पढ़कर उसकी बहुत प्रशंसा की.
स्वास्थ्य रहस्य’ नामक इस पुस्तिका में 12 अध्याय हैं, जिनमें ‘स्वास्थ्य क्या है?’ से लेकर प्राकृतिक चिकित्सा, व्यायाम, योगासन, प्राणायाम आदि का विस्तृत परिचय दिया गया है और प्रायः होने वाली शिकायतों की घरेलू प्राकृतिक चिकित्सा भी बतायी गयी है, जिनको कोई भी व्यक्ति बिना किसी खर्च के स्वयं कर सकता है। मेरा दावा है कि इस पुस्तिका में बतायी गयी बातों का पालन करने वाला व्यक्ति कभी बीमार पड़ ही नहीं सकता और यदि पड़ भी जाये तो बिना किसी खर्च के स्वस्थ हो सकता है। स्वास्थ्य पर ऐसी अन्य पुस्तक अभी तक किसी भी भाषा में नहीं लिखी गयी है।
विजय कुमार सिंघल 
आषाढ़ कृ. 1, सं. 2073 वि.

मैं दवायें क्यों बंद कराता हूँ?

कई मित्र मुझसे पूछते हैं कि जब मैं किसी को किसी बीमारी के लिए प्राकृतिक चिकित्सा कार्यक्रम बताता हूँ तो सारी दवायें, विशेष रूप से अंग्रेज़ी दवायें, क्यों बंद करा देता हूँ। यहाँ मैं इसका स्पष्टीकरण दे रहा हूँ।
प्राकृतिक चिकित्सा के साथ सभी दवायें बंद कराने के तीन कारण हैं।
पहला कारण यह है कि दवायें वास्तव में लगभग बेकार होती हैं। वे किसी रोग को ठीक नहीं करतीं बल्कि कुछ लक्षणों को कुछ समय के लिए दबा देती हैं। उदाहरण के लिए, उच्च रक्तचाप और डायबिटीज़ की दवायें केवल इनको बढ़ने से रोक देती हैं, इनको ठीक नहीं करतीं। दवाओं से रोगी को कोई लाभ नहीं होता बल्कि हानि ही होती है। अगर लाभ हो रहा होता तो वे मुझसे चिकित्सा पूछते ही नहीं। इसलिए वे दवायें बंद करना आवश्यक है।
दूसरा कारण यह है कि ये दवायें चिकित्सा कार्य में बाधा डालती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा का मौलिक सिद्धांत शरीर की भीतरी सफाई करना है, जबकि दवायें गंदगी बढ़ाती हैं। अगर दवायें साथ-साथ ली जायेंगी तो प्राकृतिक चिकित्सा से पूरा लाभ नहीं होगा और कई बार हानि भी हो सकती है।
तीसरा और सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारण यह है कि यदि दवाओं के साथ प्राकृतिक चिकित्सा कराने पर लाभ होता है तो मूर्ख रोगी उसका श्रेय दवाओं को देते हैं न कि प्राकृतिक चिकित्सा को। इतना ही नहीं, यदि चिकित्सा से कोई लाभ नहीं होता या हानि होती है तो वे लोग उसका दोष भी प्राकृतिक चिकित्सा पर डाल देते हैं। ऐसा मेरे साथ दो-तीन बार हो चुका है।
इन सब कारणों से मैं किसी को चिकित्सा बताने से पहले सभी दवायें बंद करने की शर्त लगा देता हूँ, अन्यथा कोई सलाह नहीं देता। यह जरूर है कि कई बार दवायें एकदम बंद कराने के बजाय धीरे-धीरे कम करते हुए अधिकतम एक माह में बंद कराता हूँ। लेकिन बंद कराता जरूर हूँ।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. १३, सं. २०७३ वि.

उच्च और निम्न रक्तचाप की प्राकृतिक चिकित्सा

उपचार
* प्रातः काल 6 बजे उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू का रस और एक चम्मच शहद घोलकर पियें। फिर 5 मिनट बाद शौच जायें।
* शौच के बाद 5-7 मिनट तक ठंडा कटिस्नान लें, फिर टहलने जायें। तेज़ चाल से कम से कम डेढ़-दो किमी टहलें। 
* टहलने के बाद कहीं पार्क में या घर पर नीचे दी गयी क्रियाएं करें।
- पवनमुक्तासन 1-2 मिनट
- भुजंगासन 1-2 मिनट
- रीढ़ के व्यायाम
- कपालभाति प्राणीयाम 300 बार
- अनुलोम विलोम प्राणायाम 5 मिनट
- अग्निसार क्रिया 3 बार
- उद्गीत (ओंकार ध्वनि) 3 बार
भोजन
* व्यायाम के बाद खाली पेट लहसुन की तीन-चार कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी से निगल लें या चबायें।
* नाश्ता प्रातः 8 बजे - अंकुरित अन्न या दलिया या एक पाव मौसमी फल और एक कप गाय का बिना मक्खन का दूध या छाछ।
* दोपहर भोजन 1 से 2 बजे- रोटी, सब्जी, सलाद, दही (दाल चावल कभी-कभी कम मात्रा में)
* दोपहर बाद 4 बजे - किसी मौसमी फल का एक गिलास जूस या नीबू-पानी-शहद
* रात्रि भोजन 8 से 8.30 बजे - दही छोड़कर दोपहर जैसा। भूख से थोड़ा कम खायें।
* परहेज- चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, चीनी, मिठाई, फास्ट फूड, अंडा, मांस, मछली, शराब, सिगरेट, तम्बाकू बिल्कुल नहीं।
* फ्रिज का पानी न पियें। घड़े या सुराही का पानी ही पियें।
* मिर्च-मसाले, खटाई तथा नमक कम से कम लें।
* दिन भर में कम से कम तीन-चार लीटर सादा पानी पियें। हर सवा या एक घंटे पर एक गिलास। जितनी बार पानी पीयेंगे उतनी बार पेशाब आयेगा। उसे रोकना नहीं है।
* भोजन के बाद पानी न पियें। केवल कुल्ला कर लें। उसके एक घंटे बाद एक गिलास सादा पानी पियें।
* रात्रि 10-10.30 बजे सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण सादे पानी के साथ लें।
* सभी तरह की दवायें बिल्कुल बंद रहेंगी।
विशेष
* यह कार्यक्रम रक्तचाप के सभी रोगियों के लिए है और समान रूप से उपयोगी है। रोगमुक्त होने में रोग के स्तर के अनुसार एक से तीन महीने तक कम या अधिक समय लग सकता है।
* जो लोग पहले से दवायें खा रहे हैं वे प्रति सप्ताह एक चौथाई दवा कम करते हुए चार सप्ताह यानी एक माह में दवायें बिल्कुल बंद कर दें।
-- विजय कुमार सिंघल
वैशाख पूर्णिमा, सं. २०७३ वि.

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष - 8

नभाटा में अपने ब्लॉग पर लेख लिखते हुए उन पर आने वाली टिप्पणियों से मुझे पता चलता था कि अधिकांश लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बहुत सतही जानकारी है और कई बार तो वह भी गलत है. इसलिए मैंने संघ के बारे में लेखों की एक श्रृंखला लिखना तय किया. इन लेखों को अच्छा प्रत्युत्तर मिला. इनमें से कुछ का लिंक दे रहा हूँ.
संघ निर्माता डा. केशव बलीराम हेडगेवार
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
संघ की स्थापना: क्यों और कैसे
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
द्वितीय सरसंघचालक परमपूज्य श्री गुरुजी
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
संघ विचार परिवार
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
संघ की शाखा में क्या होता है?
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
इन सभी लेखों पर बड़ी संख्या में टिप्पणियाँ आई थीं, जिनमें से अधिकांश समर्थन में थीं और कुछ विरोध में भी थीं जिनका मैंने उचित उत्तर दिया.
मैंने संघ के बारे में बहुत से भ्रमों का निराकरण करने का प्रयास किया था. जिसमें में सफल रहा.
वैसे बीच बीच में मैं अन्य सामयिक और सामाजिक विषयों पर भी लिखता रहता था.
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शुक्ल 9, सं. 2073 वि.

एसिडिटी की प्राकृतिक चिकित्सा

उपचार
* प्रातः काल 5:30 या 6 बजे उठते ही एक गिलास सादा पानी में आधा नीबू का रस और एक चम्मच शहद घोलकर पियें। फिर 5 मिनट बाद शौच जायें।
* शौच के बाद 5-10 मिनट तक ठंडा कटिस्नान लें, फिर टहलने जायें। तेज़ चाल से कम से कम डेढ़-दो किमी टहलें।
* टहलने के बाद कहीं पार्क में या घर पर नीचे दी गयी क्रियाएं करें।
- पवन मुक्तासन 1-2 मिनट
- भुजंगासन 1-2 मिनट
- रीढ़ के व्यायाम
- नेत्र, मुख और ग्रीवा व्यायाम
- उंगली, कलाई, कोहनी, कंधों के व्यायाम
- कपालभाति प्राणायाम 300 बार
- अनुलोम विलोम प्राणायाम 5 मिनट
- अग्निसार क्रिया 3 बार
- भ्रामरी 3 बार
- उद्गीत (ओंकार ध्वनि) 3 बार
- तितली व्यायाम एक मिनट
* व्यायाम के बाद खाली पेट लहसुन की तीन-चार कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी से निगल लें या चबायें।
* रात्रि 10-10.30 बजे सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण सादे पानी के साथ लें या एक चम्मच शहद में मिलाकर चाटें।
भोजन
* नाश्ता प्रातः 8 बजे - अंकुरित अन्न या दलिया या एक पाव मौसमी फल और एक कप गाय का बिना मक्खन का दूध या छाछ।
* दोपहर भोजन 1 से 2 बजे- रोटी, सब्जी, सलाद, दही (दाल चावल कभी-कभी कम मात्रा में)
* दोपहर बाद 4 बजे - किसी मौसमी फल का एक गिलास जूस या नीबू-पानी-शहद
* रात्रि भोजन 8 से 8.30 बजे - दही छोड़कर दोपहर जैसा। भूख से थोड़ा कम खायें।
* परहेज- चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, मिर्च, खटाई, मिठाई, फास्ट फूड, अंडा, मांस, मछली, शराब, सिगरेट, तम्बाकू बिल्कुल नहीं।
* सभी तरह की गर्म चीज़ों से बचें। सब्ज़ी भी ठंडी करके खायें।
* फ्रिज का पानी न पियें। मटकी या सुराही का साधारण शीतल जल पियें।
* सब्ज़ी में मसाले तथा नमक कम से कम डालें।
* दिन भर में साढ़े तीन या चार लीटर सादा पानी पियें। हर एक़ या सवा घंटे पर एक गिलास। जितनी बार पानी पीयेंगे उतनी बार पेशाब आयेगा। उसे रोकना नहीं है।
* भोजन के बाद पानी न पियें। केवल कुल्ला कर लें। उसके एक घंटे बाद एक गिलास सादा पानी पियें।
विशेष
* सभी तरह की दवायें बिल्कुल बंद रखें।
* नहाने के साबुन का प्रयोग बंद कर दें। गीली तौलिया से रगड़कर नहायें।
* यदि कभी उल्टी आये, तो कर दें और अगर केवल बेचैनी हो तो आधा कप ठंडा सादा दूध घूँट घूँट करके पियें।
* एक माह बाद अपना हाल बतायें। बीच में कोई समस्या होने पर तत्काल बतायें।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. १२, सं. २०७३ वि.

अंकुरित अन्न

कई प्राकृतिक चिकित्सक इसे ‘अमृतान्न’ कहते हैं। हम इसे भोजन का अंग ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भोजन भी बना सकते हैं। यदि यह सम्भव न हो, तो इसे नाश्ते के रूप में सेवन करना बहुत अच्छा रहेगा। यह पकाये हुए अन्न से अधिक लाभदायक होता है और पचने में अत्यन्त हलका होता है।
अन्न को अंकुरित करने की विधि बहुत सरल है। साबुत अनाजों जैसे चना, गेहूँ, मूँग, उड़द, मैथी दाने आदि को आवश्यक मात्रा में लेकर साफ कर लें और एक दो बार साफ पानी में धो लें। अब इनको किसी कटोरे में रखकर पानी में भिगो दें। 10-12 घंटे भिगोये रखने के बाद उनको किसी कपड़े में लपेटकर उसी कटोरे में रख दें और पानी निकाल दें। कटोरे को अच्छी तरह ढक दें।
ऐसा करने से 24 घंटों या अधिक से अधिक 48 घंटों में उनमें अंकुर निकल आयेंगे। उनको एक बार और धोकर खायें। चाहें तो थोड़ा सैंधा नमक और नीबू भी डाल सकते हैं। स्वाद बढ़ाने के लिए आप उसमें धनिया, टमाटर, प्याज, अदरक और हरी मिर्च के टुकड़े और रातभर भिगोये हुए मूँगफली के दाने मिला सकते हैं।
अंकुरित अन्न खाने से हमारे शरीर के लिए आवश्यक सभी विटामिनों और खनिज पदार्थों की पूर्ति हो जाती है। यह पाचन प्रणाली को सुधारने के लिए भी बहुत लाभदायक है, क्योंकि इन्हें पचाने में शरीर को अधिक श्रम नहीं करना पड़ता। इसके विपरीत आग पर पकाये हुए अन्न को पचाने में आँतों पर बहुत दबाव पड़ता है।
आप चाहें तो पूर्णतः कच्चा खाने अर्थात् आग के सम्पर्क में न आयी हुई वस्तुओं को ही ग्रहण करने का व्रत ले सकते हैं। इसे अपक्वाहार कहा जाता है। अपक्वाहार पुराने और हठी रोगों से मुक्ति प्राप्त करने में बहुत कारगर सिद्ध हुआ है। यदि हम अपने आहार में अन्न और फलों का पर्याप्त अनुपात बनाये रखें और मूँगफली के दानों के रूप में चिकनाई भी लेते रहें, तो अपक्वाहार से किसी भी प्रकार की हानि होने की कोई सम्भावना नहीं है।
-- विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. ११, सं. २०७३ वि.

Sunday 15 May 2016

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष - 8

नभाटा में अपने ब्लॉग पर लेख लिखते हुए उन पर आने वाली टिप्पणियों से मुझे पता चलता था कि अधिकांश लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बहुत सतही जानकारी है और कई बार तो वह भी गलत है. इसलिए मैंने संघ के बारे में लेखों की एक श्रृंखला लिखना तय किया. इन लेखों को अच्छा प्रत्युत्तर मिला. इनमें से कुछ का लिंक दे रहा हूँ.
संघ निर्माता डा. केशव बलीराम हेडगेवार
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
संघ की स्थापना: क्यों और कैसे
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
द्वितीय सरसंघचालक परमपूज्य श्री गुरुजी
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
संघ विचार परिवार
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
संघ की शाखा में क्या होता है?
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
इन सभी लेखों पर बड़ी संख्या में टिप्पणियाँ आई थीं, जिनमें से अधिकांश समर्थन में थीं और कुछ विरोध में भी थीं जिनका मैंने उचित उत्तर दिया.
मैंने संघ के बारे में बहुत से भ्रमों का निराकरण करने का प्रयास किया था. जिसमें में सफल रहा.
वैसे बीच बीच में मैं अन्य सामयिक और सामाजिक विषयों पर भी लिखता रहता था.
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शुक्ल 9, सं. 2073 वि.

Thursday 12 May 2016

नाभि टलने का सरल उपचार

कई बार किसी किसी की नाभि अपनी जगह से हट जाती है जिसे नाभि टलना कहते हैं। जब वह ऊपर की ओर टलती है तो कब्ज, पेट दर्द, बेचैनी आदि होती है और जब वह नीचे की ओर टलती है तो पेट दर्द के साथ दस्त हो जाते हैं। इन दोनों का एक ही सरल उपचार है जिससे मिनटों में बिना किसी दवा के नाभि को सही स्थान पर बैठाया जा सकता है।
सबसे पहले रोगी को ज़मीन पर कोई दरी या चादर बिछाकर पेट के बल लिटा दीजिए। उसके हाथों को सामने इस तरह रखवाइए कि उस पर सिर सीधा टिक जाये और नाक ज़मीन से न टकराये। अब रोगी के बग़ल में इस तरह खड़े हो जाइये कि उसके पैर आपके दायें हाथ ओर रहें।
अब अपना बायाँ पैर रोगी की कमर पर रखिए और ंदायें हाथ से उसका एक पैर उठाइए। पैर से रोगी की कमर को दबाये रखकरश रोगी के पैर को पीछे की ओर दबाइए। पैर लम्बा रखना चाहिए। ऐसा दो तीन बार कीजिए। इसी तरह दूसरे पैर को उठाकर पीछे दबाइए। अंत में दोनों पैरों को एक साथ उठाकर पीछे की ओर दबाइए।
अब रोगी को चित लिटा दीजिए। ऐसा करने से थोडी देर में ही नाभि अपने सही स्थान पर आ जाएगी।
यदि आपकी अपनी नाभि टल गयी है तो भुजंगासन और धनुरासन बारी बारी से कीजिए।
नाभि टलने की पहचान
इससे या तो बहुत तेज़ पतले दस्त होते हैं या पेट में बहुत भयंकर दर्द अचानक होने लगता है। अगर गैस नहीं है तो अवश्य ही नाभि टल गयी होती है।
नाभि के ऊपर अगर हम हाथ का अंगूठा हल्का दबा कर देखेगें तो हमे धडकन के धडकने जैसा महसूस होगा। मगर नाभि टलने पर ये महसूस नही होगा। एवं नाभि जिस तरफ जगह छोडकर गयी है उस जगह पर वही धडकन के जैसा महसूस होगा।
ये भी नाभि टलने का पता लगाने का एक तरीक़ा है।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. ५, सं २०७३ वि

टहलना

यह सर्वोत्तम व्यायाम है। यह हर उम्र के व्यक्तियों द्वारा हर जगह किया जा सकता है और इसका कोई कुप्रभाव भी कभी दृष्टिगोचर नहीं होता। यदि यह नियमित किया जाये तो लाभ ही लाभ मिलता है और यदि कभी-कभी छूट जाये तो भी हानि नहीं होती।
प्रातःकाल का समय टहलने के लिए सर्वोत्तम है, क्योंकि उस समय हवा में आक्सीजन सबसे अधिक होती है, वातावरण शुद्ध और आनन्ददायक होता है और शान्ति भी होती है। सूर्योदय से एक घंटा पहले से लेकर एक घंटा बाद तक का समय टहलने के लिए सर्वश्रेष्ठ है। यदि किसी कारणवश प्रातःकाल न टहल सकते हों, तो सायंकाल सूर्यास्त के समय पर टहला जा सकता है।
टहलना प्रायः हर मौसम में किया जा सकता है, लेकिन यदि अत्यधिक ठंड हो, बारिश हो रही हो, कोहरा हो, तेज हवा या आँधी चल रही हो या अन्य कोई कारण हो, तो टहलने के लिए न निकलना ही अच्छा है। इसके स्थान पर उस दिन जाॅगिंग (एक ही स्थान पर खड़े-खड़े दौड़ना) अथवा अंग व्यायाम कर लेने चाहिए, जिनके बारे में अन्यत्र बताया गया है।
टहलने के लिए कोई पार्क या नदी का किनारा हो, तो बेहतर है। यदि यह उपलब्ध न हो, तो ऐसी चौड़ी सड़कों पर भी टहला जा सकता है, जहाँ पेड़ हों और टैम्पो, मोटरगाड़ियों आदि का प्रदूषण न हो।
टहलते समय कपड़े मौसम के अनुकूल, परन्तु ढीले और हलके होने चाहिए। पैरों में रबड़ की चप्पलें हों तो बेहतर, जाड़ों में कपड़े के जूते पहनकर भी टहला जा सकता है। भारी जूते पहनकर टहलना उचित नहीं। टहलते समय शरीर सीधा रहना चाहिए और चाल तेज होनी चाहिए, जैसे कहीं जाने की जल्दी हो। गहरी साँसें लेना बहुत लाभदायक रहता है।
टहलते समय आप प्राणायाम भी कर सकते हैं। इससे टहलने का लाभ कई गुना बढ़ जाता है। इसकी विधि यह है कि चार कदम चलने तक साँस भरनी चाहिए और फिर छः कदम चलने तक साँस निकालनी चाहिए। इस प्रकार लयपूर्वक साँस लेते रहने से प्राणायाम होता रहता है। इस गिनती को आप अपनी सुविधा और क्षमता के अनुसार कम या अधिक कर सकते हैं। मूल बात यह है कि साँस लेने और छोड़ने में एक लय होनी चाहिए। टहलते समय साँस को कभी-भी रोकना नहीं चाहिए।
टहलना प्रतिदिन एक किलोमीटर से प्रारम्भ करना चाहिए और प्रति सप्ताह आधा किलोमीटर बढ़ाते हुए अपनी शक्ति और सुविधा के अनुसार तीन से पाँच किलोमीटर तक प्रतिदिन टहलना चाहिए।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ १२, सं २०७३ वि.

वृद्धावस्था में सुनने की समस्या का समाधान

बढ़ती उम्र के साथ हमारे शरीर के सभी अंग एक सीमा के बाद शिथिल हो जाते हैं। हाथ पैर काँपना, दिखाई कम देना, सुनाई कम देना, वाणी लड़खड़ा जाना, पाचन शक्ति मंद हो जाना, कमर झुक जाना, झुर्रियां पड़ना आदि कुछ अनिवार्य लक्षण हैं जो कम या अधिक मात्रा में प्रत्येक व्यक्ति में उत्पन्न हो जाते हैं। इनको पूरी तरह रोकना तो सम्भव नहीं है किंतु कुछ प्राकृतिक उपायों से इनकी गति को मंद किया जा सकता है और इनके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
कम सुनाई देना वृद्ध लोगों में एक आम शिकायत है। अधेडावस्था के बाद लगभग सभी व्यक्तियों को यह शिकायत हो जाती है। इसको निम्न उपायों से बहुत हद तक ठीक किया जा सकता है-
1. सफ़ाई - प्रति सप्ताह कानों की सफ़ाई किसी तीली पर रुई लगाकर करनी चाहिए। तीली अधिक भीतर तक डालना उचित नहीं है। केवल कान के छेद की दीवारों की सफाई मुलायम हाथ से कर लेनी चाहिए।
2. तेल डालना - सप्ताह में एक बार साधारण सरसों का तेल हल्का गर्म करके दो बूँद डालकर कान की हल्की मालिश बाहर से और कान के पीछे करनी चाहिए।
3. प्राणायाम - श्रवणशक्ति बढ़ाने के लिए कर्णशक्ति विकासक प्राणायाम बहुत उपयोगी है। इसकी विधि यह है कि मुँह में खूब हवा भरकर नाक को दोनों अँगूठों से दबाकर सिर को ज़रा सा झुकाकर कानों से हवा निकालने के लिए ज़ोर लगाना चाहिए। हवा नहीं निकलेगी लेकिन ज़ोर लगाने से कानों पर पर्याप्त दबाव पड़ेगा। यह क्रिया रोज़ तीन से पांच बार करना पर्याप्त है। इसके आलावा भ्रामरी प्राणायाम भी इसमें बहुत उपयोगी होता है. वह भी 5 बार अवश्य करना चाहिए.
4. यदि श्रवणशक्ति बहुत अधिक क्षीण हो गयी है तो कानों की एक दवा इसप्रकार तैयार करें- काले तिलों का तेल लगभग १०० मिली लीटर लीजिए। एक लहसुन को छीलकर कलियों को उस तेल में डाल दीजिए। इसको तब तक गर्म कीजिए या उबालिए जब तक लहसुन की कलियाँ काली न हो जायें। अब इस तेल को उतारकर ठंडा कर लीजिए और छानकर किसी शीशी में भर लीजिए। रोज़ सोते समय इसकी दो दो बूँद गुनगुना करके दोनों कानों में डालकर हल्की मालिश करके रुई लगा लीजिए। इससे कानों को बहुत लाभ होता है।
5. अगर शंख बजा सकें तो रोज़ दो तीन बार बजाइए।
अगर किसी के कान पूरी तरह ख़राब नहीं हुए हैं तो उसकी श्रवणशक्ति इन उपायों से बहुत हद तक वापस आ जाएगी, इसकी गारंटी है।
पुनश्च, ये उपाय सभी के लिए उपयोगी हैं, केवल वृद्धों के लिए ही नहीं।
-- विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ ८, सं. २०७३ वि.

गुर्दे तथा मूत्र रोगों का प्रमुख कारण

मेरे पास चिकित्सा परामर्श के लिए जो मामले आते हैं उनमें बड़ी संख्या ऐसे मामलों की है जिनका संबंध गुर्दों और मूत्राशय की बीमारियों से होता है, जैसे गुर्दे या मूत्राशय में पथरी, पेशाब नली में रुकावट या सूजन, पेशाब सही न आना, दर्द या संक्रमण होना, मूत्रांग में जलन होना, मूत्र में पस या खून आना आदि आदि। मेरी जानकारी में ऐसे लोगों को भी ये शिकायतें हुई हैं जिनका आहार विहार सात्विक है और जिन्हें कोई व्यसन भी नहीं है।
जब मैंने इनके कारणों पर विचार किया तो मेरी समझ में आया कि इन शिकायतों का मुख्य कारण तीन ग़लतियाँ हैं जो हम लोग जाने-अनजाने करते रहते हैं। इन ग़लतियों का कुप्रभाव जल्दी नज़र नहीं आता, परंतु होता जरूर है। मैं यहाँ इन ग़लतियों की चर्चा करना चाहता हूँ।
पहली ग़लती जो हम लोग करते हैं वह है पानी कम पीना। लोग प्राय: पानी पीना भूल जाते हैं और बहुत प्यास लगने पर ही पानी पीते हैं। कई लोग जानबूझकर पानी इसलिए कम पीते हैं कि उन्हें टॉयलेट न जाना पड़े। यह बहुत बड़ी ग़लती है जिसका कुपरिणाम आगे चलकर भुगतना पड़ता है।
टॉयलेट जाने में शर्माने का कोई कारण नहीं है। जितनी बार पानी पीते हैं उतनी बार टॉयलेट जाना पड़े तो भी उचित है। इसलिए हमें जाड़ों में प्रतिदिन कम से कम तीन लीटर और गर्मियों में चार लीटर पानी अवश्य पी लेना चाहिए। शीतल पेय, चाय आदि पानी का विकल्प नहीं हैं। इनसे हमारे गुर्दों पर बोझ बहुत बढ़ जाता है।
दूसरी ग़लती जो हम लोग करते हैं वह है मूत्र के वेग को रोकना। यदि आसपास टॉयलेट न हो तो कुछ समय तक इसे रोकने का कारण समझ में आता है परंतु सामान्य स्थिति में पेशाब रोकने का कोई कारण नहीं है। आयुर्वेद में कहा गया है कि मल, मूत्र, छींक, जँभाई आदि तेरह प्रकार के वेगों को कभी रोकना नहीं चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। मूत्र के वेग को रोकने पर मूत्राशय पर बहुत दबाव पड़ता है और गुर्दों का कार्य भी बाधित होता है। इसलिए ऐसी ग़लती कभी नहीं करनी चाहिए।
तीसरी ग़लती जो अधिकांश लोग करते हैं वह है मूत्र विसर्जन करते समय ज़ोर लगाना। लोग अपना समय बचाने के लिए ऐसा करते हैं परंतु इसके बदले में उन्हें कई गुना समय उन रोगों को देना पड़ता है जो इसके कारण उत्पन्न हो जाते हैं। पेशाब नली में सूजन आना, जलन होना, पथरी बन जाना, मूत्र में पस आना आदि इन्हीं कारणों से होता है। इसलिए भूलकर भी मूत्र विसर्जन करते समय बिल्कुल ज़ोर मत लगाइए और मूत्र को अपने आप निकलने दीजिए, भले ही इसमें एक मिनट अधिक लग जाये।
यदि आप इन तीनों ग़लतियों से बचे रहेंगे तो गुर्दे और मूत्राशय की ही नहीं, बल्कि और भी बहुत सी बीमारियों से बचे रहेंगे। इतना ही नहीं, यदि ये बीमारियाँ हो गयी हों तो इन ग़लतियों को सुधारकर उनसे सरलता से छुटकारा भी पा सकेंगे।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ. १५, सं. २०७३ वि.

सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस का उपचार

इसमें कंधों के आसपास दर्द उठता है और कई बार सिर को इधर-उधर घुमाना भी कष्टदायक हो जाता है। यह कोई रोग नहीं है बल्कि ग्रीवा के जोड़ों में विकार आ जाने के कारण ऐसा होता है। गलत तरीके से उठने-बैठने तथा कम्प्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल आदि पर सिर के बजाय पीठ झुकाकर काम करने से यह समस्या उत्पन्न होती है। इसलिए इसमें कोई दवा काम नहीं करती। केवल उचित व्यायाम और सही तरीके से उठना बैठना ही इसका उपचार है।
निम्नलिखित व्यायामों को दिन में 4-5 बार नियमित रूप से करने पर स्पोंडिलाइटिस और सर्वाइकल का कष्ट केवल 5-7 दिन में अवश्य ही समाप्त हो जाता है।
ग्रीवा- (1) गर्दन को धीरे-धीरे बायीं ओर जितना हो सके उतना ले जाइए। गर्दन में थोड़ा तनाव आना चाहिए। इस स्थिति में 2-3 सेकेंड रुक कर वापस सामने ले आइए। अब गर्दन को दायीं ओर जितना हो सके उतना ले जाइए और फिर 2-3 सेकेंड रुक कर वापस लाइए। यही क्रिया 8-8 बार कीजिए। यह क्रिया करते समय कंधे बिल्कुल नहीं घूमने चाहिए। (2) यही क्रिया ऊपर और नीचे 8-8 बार कीजिए। (3) यही क्रिया अगल-बगल 8-8 बार कीजिए। इसमें गर्दन घूमेगी नहीं, केवल बायें या दायें झुकेगी। गर्दन को बगल में झुकाते हुए कानों को कंधे से छुआने का प्रयास कीजिए। अभ्यास के बाद इसमें सफलता मिलेगी। तब तक जितना हो सके उतना झुकाइए। (4) गर्दन को झुकाए रखकर चारों ओर घुमाइए- 8 बार सीधे और 8 बार उल्टे। अन्त में, एक-दो मिनट गर्दन की चारों ओर हल्के-हल्के मालिश कीजिए।
कंधों के विशेष व्यायाम- (1) वज्रासन में बैठ जाइए। दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़कर सारी उँगलियों को मिलाकर कंधों पर रख लीजिए। अब हाथों को गोलाई में धीरे-धीरे घुमाइए। ऐसा 10 बार कीजिए। (2) यही क्रिया हाथों को उल्टा घुमाते हुए 10 बार कीजिए। (3) वज्रासन में ही हाथों को दायें-बायें तान लीजिए और कोहनियों से मोड़कर उँगलियों को मिलाकर कंधों पर रख लीजिए। कोहनी तक हाथ दायें-बायें उठे और तने रहेंगे। अब सिर को सामने की ओर सीधा रखते हुए केवल धड़ को दायें बायें पेंडुलम की तरह झुलाइए। ऐसा 20 से 25 बार तक कीजिए।
यह तीसरा व्यायाम सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। हमारी रीढ़ के ऊपरी सिरे पर यानी गरदन के पास 5 मुख्य जोड़ हैं और निचले सिरे पर यानी कमर के पास 3 मुख्य जोड़ होते हैं। इस व्यायाम से ये सभी 8 जोड़ ढीले हो जाते हैं। इस व्यायाम को ठीक से समझने के लिए संलग्न वीडियो देखिए।
सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस से बचने के लिए अपनी रीढ की हड्डी को हमेशा सीधा रखना चाहिए, चाहे बैठे हों, खड़े हों, लेटे हों या चल रहे हों
विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ. ११, सं. २०७३ वि.
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दैनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम

यहाँ मैं ऐसा कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसका पालन हर व्यक्ति हर जगह और हर मौसम में कर सकता है और सदा स्वस्थ बना रह सकता है। यदि किसी व्यक्ति को साधारण स्वास्थ्य सम्बंधी समस्यायें हों तो वे भी इससे दूर हो जाएँगी। लेकिन यदि किसी को कोई विशेष रोग है तो कुछ परिवर्तन या परिवर्द्धन करना पड़ सकता है।
योग-व्यायाम
* प्रातः काल 6 बजे उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू का रस और एक चम्मच शहद घोलकर पियें। फिर 5 मिनट बाद शौच जायें।
* यदि पेट ठीक से साफ न हुआ हो तो शौच के बाद 3 मिनट तक पेड़ू (नाभि से नीचे का पेट का आधा भाग) पर खूब ठंडे पानी में तौलिया गीली करके पोंछा लगायें।
* मौसम सहन करने योग्य हो तो टहलने जायें। तेज़ चाल से कम से कम डेढ़-दो किमी टहलें।
* टहलने के बाद कहीं पार्क में या घर पर नीचे दी गयी क्रियाएं करें।
- पवन मुक्तासन 1-2 मिनट
- भुजंगासन 1-2 मिनट
- रीढ़ के व्यायाम
- नेत्र, मुख और ग्रीवा व्यायाम
- उंगली, कलाई, कोहनी और कंधों के व्यायाम
- भस्त्रिका प्राणायाम प्रतिदिन 5 चक्र
- कपालभाति प्राणायाम प्रतिदिन 300 बार
- अनुलोम विलोम प्राणायाम प्रतिदिन 5 मिनट
- अग्निसार क्रिया 3 बार
- भ्रामरी 3 बार
- उद्गीत (ओंकार ध्वनि) 3 बार
- तितली व्यायाम 1 मिनट
भोजन
* व्यायाम के बाद खाली पेट लहसुन की तीन-चार कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी से निगल लें या चबायें।
* नाश्ता प्रातः 8 बजे - अंकुरित अन्न या दलिया या एक पाव मौसमी फल और एक कप गाय का दूध या छाछ।
* दोपहर भोजन 1 से 2 बजे- रोटी, सब्जी, सलाद, दही, इच्छानुसार दाल चावल भी ले सकते हैं।
* दोपहर बाद 4 बजे - किसी मौसमी फल का एक गिलास जूस या नीबू-पानी-शहद
* रात्रि भोजन 8 से 8.30 बजे - दही छोड़कर दोपहर जैसा। भूख से थोड़ा कम खायें।
* परहेज- चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, अंडा, मांस, मछली, शराब, सिगरेट, तम्बाकू बिल्कुल नहीं। बिस्कुट, मिठाई, फास्ट फूड, नमकीन कभी-कभी कम मात्रा में ले सकते हैं।
* यदि चाय पूरी तरह न छोड़ सकें, तो दिन में केवल दो बार आधा-आधा कप लें या इसकी जगह ग्रीन टी लिया करें।
* फ्रिज का पानी न पियें। नमक कम से कम लें।
* दिन में कम से कम तीन या साढ़े तीन लीटर सादा पानी पियें। हर एक़ या सवा घंटे पर एक गिलास। जितनी बार पानी पीयेंगे उतनी बार पेशाब आयेगा। उसे रोकना नहीं है।
* भोजन के बाद पानी न पियें। केवल कुल्ला कर लें। उसके एक घंटे बाद एक गिलास गुनगुना पानी पियें।
* रात्रि 10-10.30 बजे सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें।
विशेष
* सभी तरह की दवायें बिल्कुल बंद रखें।
* नहाने के साबुन का प्रयोग बंद कर दें। गीली तौलिया से रगड़कर नहायें।
* सिर को मुल्तानी मिट्टी से सप्ताह में दो बार धोयें। सिर में केवल शुद्ध नारियल का तेल डालें।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ. ३, सं. २०७३ वि.

याददाश्त बढ़ाने के उपाय

सबसे पहले तो यह समझ लेना चाहिए कि ऐसी कोई वस्तु या जादू की पुडिया नहीं होती, जिसको खा लेने से याददाश्त एकदम बढ़ जाये। मानसिक ताक़त देने वाली कुछ वस्तुएँ अवश्य हैं जैसे अखरोट, बादाम, किशमिश और गाय का घी-दूध, जिनके सेवन से मनुष्य अधिक मानसिक श्रम करने के योग्य बनता है।
याददाश्त बढ़ाने के लिए एकाग्रता का अभ्यास करना आवश्यक होता है। जितनी अधिक एकाग्रता होगी याददाश्त उतनी ही अधिक अच्छी होगी। किसी बात को बहुत ध्यानपूर्वक पढ़ने या सुनने से वह बात याद होने की संभावना अधिक होती है। इसलिए जिस बात को हम याद करना और याद रखना चाहते हैं उसे ध्यानपूर्वक समझ लेना चाहिए और दो तीन बार दोहरा लेना चाहिए।
एकाग्रता बढ़ाने के लिए अनुलोम-विलोम प्राणायाम और त्राटक क्रिया बहुत उपयोगी हैं। कमज़ोर स्मरणशक्ति वालों को इनका अभ्यास अवश्य करना चाहिए।
विजय कुमार सिंघल
चैत्र पूर्णिमा, सं. २०७३ वि.

हृदय रोगों से बचाव

आजकल हृदय रोग बहुत फैल रहे हैं। पहले यह रोग प्राय: बड़ी उम्र वाले पुरुषों को ही हुआ करते थे, परंतु अब तो बच्चे-बूढ़े-जवान स्त्री-पुरुष सभी को हो जाते हैं। गलत जीवन शैली और भारी प्रदूषण ही इसका प्रमुख कारण है।
हृदय रोग अपने आप में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है बल्कि अन्य कई रोगों का सम्मिलित परिणाम होता है। इसी कारण केवल हृदय बदलने से या बाईपास सर्जरी करने से कुछ समय बाद फिर पहले जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
हृदय रोगों के साथ बुरी बात यह है कि किसी को हृदयाघात होने से पहले इसके कोई लक्षण कहीं नज़र नहीं आते। इस कारण लोग इससे बचाव का प्रबंध नहीं कर पाते। फिर भी कुछ उपाय हैं जिनके द्वारा हृदय दुर्बलता और उससे उत्पन्न होने वाले हृदयाघात से बचकर रहा जा सकता है।
हृदय रोग उत्पन्न होने के कई कारण होते हैं। कुछ रोग जैसे रक्तचाप, मोटापा, मधुमेह, मूत्र विकार, चिंताग्रस्त रहना आदि मिलकर हृदय पर बहुत बोझ डालते हैं। इससे हृदय धीरे-धीरे दुर्बल हो जाता है। इसलिए हृदय को स्वस्थ रखने के लिए इन सभी रोगों से बचे रहना अावश्यक है।
इन विभिन्न रोगों से बचने के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है। संक्षेप में इतना ही समझ लीजिए कि यदि आप हृदय रोगों से बचना चाहते हैं तो आपको खूब पानी पीना चाहिए, अधिक से अधिक पैदल चलना चाहिए, पर्याप्त शारीरिक श्रम या व्यायाम करना चाहिए, गहरी सांसें लेनी चाहिए, सात्विक वस्तुएँ उचित मात्रा में खानी चाहिए तथा सबसे बढ़कर हमेशा प्रसन्नचित्त रहना चाहिए।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ. १, सं. २०७३ वि.

खाँसी की प्राकृतिक चिकित्सा

सूखी या गीली दोनों तरह की खाँसी का कारण है पुराना क़ब्ज़ और फेंफडों में विकार एकत्र होना। इनको दूर करने के लिए निम्नलिखित कार्य करें-
१. सुबह उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नींबू निचोड़कर और एक चम्मच शहद मिलाकर पियें। फिर ५ मिनट बाद शौच जायें।
२. शौच के बाद ५-७ मिनट का ठंडा कटिस्नान लें अथवा २-३ मिनट पेडू पर खूब ठंडे पानी में तौलिया भिगोकर पोंछा लगायें और उसके बाद डेढ़ दो किमी या आधा-पौन घंटा तेज़ चाल से टहलें।
३. टहलने के बाद फेंफडों को साफ़ करने के लिए ५ मिनट भस्त्रिका, ५ मिनट कपालभाति और ५ मिनट अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें।
४. दिन भर में साढ़े तीन-चार लीटर सादा पानी पियें। यानी हर घंटे पर एक पाव। जितनी बार पानी पियेंगे उतनी बार पेशाब आयेगा। उसे रोकना नहीं है।
५. रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी से लें।
६. परहेज़- फ्रिज का ठंडा पानी, चिकनाई, चीनी तथा कफ कारक वस्तुएँ। अगर चाय छोड़ सकें तो बेहतर, नहीं तो उसके स्थान पर ग्रीन टी पियें।
इस कार्यक्रम का पालन करने से कैसी भी खाँसी हो केवल एक-दो सप्ताह में जड़ से समाप्त हो जायेगी।
-- विजय कुमार सिंघल
चैत्र शुक्ल १४, सं. २०७३ वि.

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष - 7

मैं प्रायः हर तीन दिन में एक लेख लिखकर अपने ब्लॉग में भेज देता था और वह लाइव हो जाता था. उन पर पर्याप्त संख्या में टिप्पणियाँ भी आ जाती थीं. मेरे विचारों को पढ़कर अनेक व्यक्ति जिनमें से अधिकांश स्वयं भी ब्लॉग लिखते थे, मेरे प्रशंसक बन गए थे. उनमें से कुछ के नाम दे रहा हूँ- सर्वश्री चोको, केशव, सचिन सोनी, विजय बाल्याण, रंजन माहेश्वरी, आलू प्रसाद, अभिषेक, सौरभ श्रीवास्तव, बिजेंद्र, राज हैदराबादी, हुकम शर्मा, मदनलाल, अपलम चपलम, श्रीमती कांता उज्जैन, श्रीमती लीला तिवानी आदि. इनमें से कई आज भी मेरे घनिष्ट मित्र हैं. श्री अपलम चपलम का किसी बीमारी से अल्पायु में ही स्वर्गवास हो गया था.
हालाँकि कई अन्य लोग जिनमें मुसलमान सज्जन अधिक थे मेरे आलोचक भी बन गए थे. उनमें से कुछ के नाम हैं- बिरजू अकेला, सचिन परदेशी, शीराज़, स्वामी चंद्रमौली आदि. इनमें से प्रथम दो आज मेरे घनिष्ट मित्र हैं, हालाँकि मतभेद अभी भी बहुत हैं. शीराज़ हमेशा हर बात पर मेरी आलोचना ही करते थे. मैं यथासंभव उनको उत्तर देता था. लेकिन वे हमेशा रोमनलिपि में ही हिंदी लिखा करते थे, जिसको पढने और समझने में बहुत समय नष्ट होता था. इसलिए बाद में मैंने उनकी टिप्पणियों का उत्तर देना प्रायः बंद कर दिया था. हालाँकि कभी-कभी उत्तर दे देता था.
प्रारंभ में मेरे लेख केवल गाँधी-नेहरु-कांग्रेस की आलोचना में ही होते थे. इस बात पर मेरे कई मित्रों को शिकायत होती थी. इसलिए मैंने यह निश्चय किया कि बीच बीच में अन्य विषयों पर भी लिखा करूँगा. इसी के अनुसार मैंने एक लेख लिखा, जिसमें पोलीथिन की समस्या का व्यावहारिक समाधान बताया गया था. इसका लिंक नीचे दे रहा हूँ.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
इस लेख पर अनेक कमेंट आये. अधिकांश ने प्रशंसा की. कुछ ने शंकाएं कीं और एकाध सज्जन ने खुली आलोचना भी की. मैंने यथायोग्य उनका उत्तरदिया.
मैंने प्रचलित "गीता सार" का विरोध करते हुए एक लेख बहुत पहले लिखा था, जो मथुरा से प्रकाशित आर्यसमाज की पत्रिका 'तपोभूमि' में भी छपा था. उसे खोजकर मैंने अपने ब्लॉग पर लगाया. उसका लिंक नीचे है-
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%9…
इस लेख में मैंने प्रचलित "गीता सार" के एक-एक बिंदु की क्रमशः समीक्षा की थी और स्पष्ट किया था कि किस प्रकार उसमें गीता के उपदेशों का सत्यानाश किया गया है. इसके अलावा मैंने अपना वास्तविक गीता सार भी दिया था.
मेरे इस लेख के समर्थन में कई कमेंट आये थे. एकाध ने कुछ प्रश्न पूछे थे, जिनका उत्तर देने की कोशिश मैंने की थी.
-- विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ. 1, सं. २०७३ वि.