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Thursday 12 May 2016

टहलना

यह सर्वोत्तम व्यायाम है। यह हर उम्र के व्यक्तियों द्वारा हर जगह किया जा सकता है और इसका कोई कुप्रभाव भी कभी दृष्टिगोचर नहीं होता। यदि यह नियमित किया जाये तो लाभ ही लाभ मिलता है और यदि कभी-कभी छूट जाये तो भी हानि नहीं होती।
प्रातःकाल का समय टहलने के लिए सर्वोत्तम है, क्योंकि उस समय हवा में आक्सीजन सबसे अधिक होती है, वातावरण शुद्ध और आनन्ददायक होता है और शान्ति भी होती है। सूर्योदय से एक घंटा पहले से लेकर एक घंटा बाद तक का समय टहलने के लिए सर्वश्रेष्ठ है। यदि किसी कारणवश प्रातःकाल न टहल सकते हों, तो सायंकाल सूर्यास्त के समय पर टहला जा सकता है।
टहलना प्रायः हर मौसम में किया जा सकता है, लेकिन यदि अत्यधिक ठंड हो, बारिश हो रही हो, कोहरा हो, तेज हवा या आँधी चल रही हो या अन्य कोई कारण हो, तो टहलने के लिए न निकलना ही अच्छा है। इसके स्थान पर उस दिन जाॅगिंग (एक ही स्थान पर खड़े-खड़े दौड़ना) अथवा अंग व्यायाम कर लेने चाहिए, जिनके बारे में अन्यत्र बताया गया है।
टहलने के लिए कोई पार्क या नदी का किनारा हो, तो बेहतर है। यदि यह उपलब्ध न हो, तो ऐसी चौड़ी सड़कों पर भी टहला जा सकता है, जहाँ पेड़ हों और टैम्पो, मोटरगाड़ियों आदि का प्रदूषण न हो।
टहलते समय कपड़े मौसम के अनुकूल, परन्तु ढीले और हलके होने चाहिए। पैरों में रबड़ की चप्पलें हों तो बेहतर, जाड़ों में कपड़े के जूते पहनकर भी टहला जा सकता है। भारी जूते पहनकर टहलना उचित नहीं। टहलते समय शरीर सीधा रहना चाहिए और चाल तेज होनी चाहिए, जैसे कहीं जाने की जल्दी हो। गहरी साँसें लेना बहुत लाभदायक रहता है।
टहलते समय आप प्राणायाम भी कर सकते हैं। इससे टहलने का लाभ कई गुना बढ़ जाता है। इसकी विधि यह है कि चार कदम चलने तक साँस भरनी चाहिए और फिर छः कदम चलने तक साँस निकालनी चाहिए। इस प्रकार लयपूर्वक साँस लेते रहने से प्राणायाम होता रहता है। इस गिनती को आप अपनी सुविधा और क्षमता के अनुसार कम या अधिक कर सकते हैं। मूल बात यह है कि साँस लेने और छोड़ने में एक लय होनी चाहिए। टहलते समय साँस को कभी-भी रोकना नहीं चाहिए।
टहलना प्रतिदिन एक किलोमीटर से प्रारम्भ करना चाहिए और प्रति सप्ताह आधा किलोमीटर बढ़ाते हुए अपनी शक्ति और सुविधा के अनुसार तीन से पाँच किलोमीटर तक प्रतिदिन टहलना चाहिए।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ १२, सं २०७३ वि.

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