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Thursday 12 May 2016

वृद्धावस्था में सुनने की समस्या का समाधान

बढ़ती उम्र के साथ हमारे शरीर के सभी अंग एक सीमा के बाद शिथिल हो जाते हैं। हाथ पैर काँपना, दिखाई कम देना, सुनाई कम देना, वाणी लड़खड़ा जाना, पाचन शक्ति मंद हो जाना, कमर झुक जाना, झुर्रियां पड़ना आदि कुछ अनिवार्य लक्षण हैं जो कम या अधिक मात्रा में प्रत्येक व्यक्ति में उत्पन्न हो जाते हैं। इनको पूरी तरह रोकना तो सम्भव नहीं है किंतु कुछ प्राकृतिक उपायों से इनकी गति को मंद किया जा सकता है और इनके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
कम सुनाई देना वृद्ध लोगों में एक आम शिकायत है। अधेडावस्था के बाद लगभग सभी व्यक्तियों को यह शिकायत हो जाती है। इसको निम्न उपायों से बहुत हद तक ठीक किया जा सकता है-
1. सफ़ाई - प्रति सप्ताह कानों की सफ़ाई किसी तीली पर रुई लगाकर करनी चाहिए। तीली अधिक भीतर तक डालना उचित नहीं है। केवल कान के छेद की दीवारों की सफाई मुलायम हाथ से कर लेनी चाहिए।
2. तेल डालना - सप्ताह में एक बार साधारण सरसों का तेल हल्का गर्म करके दो बूँद डालकर कान की हल्की मालिश बाहर से और कान के पीछे करनी चाहिए।
3. प्राणायाम - श्रवणशक्ति बढ़ाने के लिए कर्णशक्ति विकासक प्राणायाम बहुत उपयोगी है। इसकी विधि यह है कि मुँह में खूब हवा भरकर नाक को दोनों अँगूठों से दबाकर सिर को ज़रा सा झुकाकर कानों से हवा निकालने के लिए ज़ोर लगाना चाहिए। हवा नहीं निकलेगी लेकिन ज़ोर लगाने से कानों पर पर्याप्त दबाव पड़ेगा। यह क्रिया रोज़ तीन से पांच बार करना पर्याप्त है। इसके आलावा भ्रामरी प्राणायाम भी इसमें बहुत उपयोगी होता है. वह भी 5 बार अवश्य करना चाहिए.
4. यदि श्रवणशक्ति बहुत अधिक क्षीण हो गयी है तो कानों की एक दवा इसप्रकार तैयार करें- काले तिलों का तेल लगभग १०० मिली लीटर लीजिए। एक लहसुन को छीलकर कलियों को उस तेल में डाल दीजिए। इसको तब तक गर्म कीजिए या उबालिए जब तक लहसुन की कलियाँ काली न हो जायें। अब इस तेल को उतारकर ठंडा कर लीजिए और छानकर किसी शीशी में भर लीजिए। रोज़ सोते समय इसकी दो दो बूँद गुनगुना करके दोनों कानों में डालकर हल्की मालिश करके रुई लगा लीजिए। इससे कानों को बहुत लाभ होता है।
5. अगर शंख बजा सकें तो रोज़ दो तीन बार बजाइए।
अगर किसी के कान पूरी तरह ख़राब नहीं हुए हैं तो उसकी श्रवणशक्ति इन उपायों से बहुत हद तक वापस आ जाएगी, इसकी गारंटी है।
पुनश्च, ये उपाय सभी के लिए उपयोगी हैं, केवल वृद्धों के लिए ही नहीं।
-- विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ ८, सं. २०७३ वि.

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