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Friday 25 March 2016

अस्थमा

अस्थमा (दमा) की समस्या वास्तव में जुकाम खाँसी आदि से निकलने वाले कफ या बलगम को दवाओं द्वारा रोक देने का परिणाम होती है। जबर्दस्ती रोका गया वह कफ फेंफडों में जम जाता है और साँस लेने में बाधा डालता है। इसी को दमा कहा जाता है।
अत: दमा का उपचार यही है कि फेंफडों में जमे हुए कफ को निकाला जाये और बाहर से कफ का आना रोक दिया जाये।
इसके लिए सबसे पहले तो कफ कारक वस्तुओं का सेवन बंद या बहुत कम कर दिया जाये। दूध और दूध से बनी वस्तुएँ, सभी तरह की मिठाई, पालिश किये हुए चावल, चोकर निकला आटा, मैदा आदि कफ पैदा करते हैं। इनकी जगह चोकर सहित आटा, हाथ से कुटे चावल, फल और हरी सब्ज़ियों का सेवन करना चाहिए।
फेंफडों की सफाई के लिए पर्याप्त शारीरिक श्रम या व्यायाम करने चाहिए जिससे पसीना आ जाये। साथ में धीरे-धीरे बढ़ाते हुए प्रतिदिन कम से कम १० मिनट भस्त्रिका प्राणायाम अवश्य करना चाहिए।
अस्थमा पूरी तरह ठीक होने में काफी समय लगता है इसलिए धैर्यपूर्वक प्रयास करते रहना चाहिए।
-- विजय कुमार सिंघल

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष - 5

प्रारंभ में मैंअपने ब्लॉग पर मुख्यतः गाँधी और नेहरु के बारे में ही लेख लिखा करता था. लेकिन कभी कभी अन्य तात्कालिक विषयों पर भी लिखता था. ऐसे ही 9 फरवरी 2012 को मैंने वेलेंटाइन डे के बारे में एक लेख लिखा जिसमें इस डे को मनाने को शूपनखा संस्कृति कहा गया था.
इस लेख की बहुत चर्चा हुई और कई लोगों ने इस पर कमेंट किये. लगभग सभी कमेंट मेरे विचारों के समर्थन में ही थे.
शुरू के दो-तीन माह मैं गाँधी-नेहरु और देश के स्वाधीनता संग्राम के बारे में ही लिखता था. इन पर आने वाले कमेंटों की संख्या धीरे धीरे बढती जा रही थी. अपने लेख "आजादी कैसे आई?" में मैंने इस प्रचलित धारणा का विरोध किया था जिसमें स्वतंत्रता पाने का श्रेय गाँधी-नेहरु और कांग्रेस को दिया जाता है. मैंने बताया था कि स्वतंत्रता का श्रेय मुख्य रूप से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बनी
अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों और 1946 में भारत में हुए नौसैनिक विद्रोह को दिया जाना चाहिए. कांग्रेस ने तो केवल सौदेबाजी की थी और देश के टुकड़े करवाकर सत्ता पर कब्ज़ा किया था.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%8…
मेरे इस लेख पर भी बहुत कमेंट आये, जिनमें से अधिकांश मेरे समर्थन में थे, लेकिन कुछ विरोध में भी थे. विरोध करने वाले मुख्यतः मुस्लिम पाठक होते थे, जिनमें से कई हिन्दू नाम रखकर कमेंट करते थे. एक सज्जन शीराज मेरे हर विचार के विरोध में लिखते थे वह भी रोमन लिपि में लिखी हिंदी में, जिसको पढना बहुत कठिन होता था. ऐसे ही एक सज्जन शहनाज़ खां केवल 'जग्गी' नाम से लिखा करते थे.
विजय कुमार सिंघल

Wednesday 23 March 2016

भोजन पचाने का रामबाण उपाय

कई बार हमें भोजन करने के बाद अपना पेट भारी लगता है। ऐसा प्राय: तब होता है जब हम गरिष्ठ वस्तुएँ खा जाते हैं या स्वाद में अधिक खा जाते हैं। इससे बचने का सर्वश्रेष्ठ उपाय तो यही है कि हम भारी चीज़ों सेवन करने से बचें और भूख से थोड़ा कम खायें।
अगर कभी भोजन के बाद भारीपन अनुभव हो तो भोजन शीघ्र और सरलता से पचाने के लिए पहले ५ से १० मिनट तक वज्रासन में बैठें। फिर किसी जगह लेटकर निम्न क्रियायें करें-
१. चित लेटकर आठ बार गहरी सांसें खींचें और छोड़ें।
२. दायीं करवट लेटकर सोलह बार गहरी सांसें खींचें और छोड़ें।
३. बायीं करवट लेटकर बत्तीस बार गहरी सांसें खींचें और छोड़ें।
४. फिर चित लेटकर आठ बार गहरी सांसें खींचें और छोड़ें।
आखिरी क्रिया करने तक आपका भोजन आधा पच चुका होगा। विश्वास न हो तो करके देख लीजिए। ध्यान रखें कि साँस लेते हुए नींद नहीं आनी चाहिए।
यह क्रिया आप रोज भी कर सकते हैं। इससे धीरे-धीरे पाचन शक्ति बढ़ जाती है।
विजय कुमार सिंघल

Monday 21 March 2016

डायबिटीज़ और उच्च रक्तचाप की प्राकृतिक चिकित्सा

उपचार
* प्रातः काल 6 बजे उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू का रस और एक चम्मच शहद घोलकर पियें। फिर 5 मिनट बाद शौच जायें।
* शौच के बाद 3 मिनट तक पेड़ू (नाभि से नीचे का पेट का आधा भाग) पर खूब ठंडे पानी में तौलिया गीली करके पोंछा लगायें, फिर टहलने जायें। कम से कम डेढ़-दो किमी टहलें। 
* टहलने के बाद कहीं पार्क में या घर पर नीचे दी गयी क्रियाएं करें।
- पवनमुक्तासन 1-2 मिनट (विधि पृष्ठ 51 पर)
- भुजंगासन 1-2 मिनट (विधि पृष्ठ 51 पर)
- रीढ़ के व्यायाम (विधि पृष्ठ 48-49 पर)
- कपालभाति प्राणायाम 100 बार से बढ़ाते हुए 300 बार तक (विधि पृष्ठ 57 पर)
- अनुलोम विलोम प्राणायाम 1 मिनट से बढ़ाते हुए 5 मिनट तक (विधि पृष्ठ 57 पर)
- अग्निसार क्रिया 3 बार (विधि पृष्ठ 59 पर)
- उद्गीत (ओंकार ध्वनि) 3 बार (पृष्ठ 59 पर)

भोजन
* व्यायाम के बाद खाली पेट लहसुन की तीन-चार कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी से निगल लें या चबायें।
* नाश्ता प्रातः 8 बजे - अंकुरित अन्न या दलिया या एक पाव मौसमी फल और एक कप गाय का बिना मक्खन का दूध या छाछ।
* दोपहर भोजन 1 से 2 बजे- रोटी, सब्जी, सलाद, दही (दाल चावल कभी-कभी कम मात्रा में)
* दोपहर बाद 4 बजे - किसी मौसमी फल का एक गिलास जूस या नीबू-पानी-शहद
* रात्रि भोजन 8 से 8.30 बजे - दही छोड़कर दोपहर जैसा। भूख से थोड़ा कम खायें।
* परहेज- चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, चीनी, मिठाई, फास्ट फूड, अंडा, मांस, मछली, शराब, सिगरेट, तम्बाकू बिल्कुल नहीं।
* फ्रिज का पानी न पियें। मिर्च-मसाले तथा नमक कम से कम लें।
* दिन भर में कम से कम तीन लीटर सादा पानी पियें। हर सवा या डेढ़ घंटे पर एक गिलास। जितनी बार पानी पीयेंगे उतनी बार पेशाब आयेगा। उसे रोकना नहीं है। भोजन के बाद पानी न पियें। केवल कुल्ला कर लें। उसके एक घंटे बाद एक गिलास सादा या गुनगुना पानी पियें।
* रात्रि 10-10.30 बजे सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें।
* सभी तरह की दवायें बिल्कुल बंद रहेंगी।
विशेष
* यह कार्यक्रम डायबिटीज़ के सभी रोगियों के लिए है और समान रूप से उपयोगी है। रोगमुक्त होने में रोग के स्तर के अनुसार एक से तीन महीने तक कम या अधिक समय लग सकता है।
* जो लोग इंसुलिन के इंजेक्शन लेते हैं वे इंजेक्शन लेना तुरंत बंद न करें, बल्कि यह कार्यक्रम शुरू करके प्रति सप्ताह शुगर की जाँच करायें और उसके अनुसार धीरे धीरे इंजेक्शन कम करते हुए बंद करें।
* शीघ्र लाभ के लिए सायंकाल भी पेडू पर ठंडे पानी का पोंछा लगाकर टहलने जायें।
विजय कुमार सिंघल

नभाटा ब्लाॅग पर मेरे दो वर्ष-4

मैंने अगला लेख लिखा था ‘हत्यारे के भाई गांधी’। इस लेख में बताया गया था कि गांधी ने भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को दी जाने वाली फांसी को रोकने के लिए कुछ नहीं किया, लेकिन स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे अब्दुल रशीद को अपना भाई बताया और उसको माफ कर देने की वकालत की। इसका लिंक नीचे है।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
इस लेख को भी नभाटा ने कई दिन तक लाइव नहीं किया, फिर मैंने ईमेल भेजी तो कई दिन बाद उसे लाइव किया गया।
मेरा अगला लेख था- ‘मुस्लिम तुष्टीकरण के जनक गांधी’ जैसा कि इसके शीर्षक से स्पष्ट है, इसमें गांधी और नेहरू की मुस्लिमपरस्त नीतियों का जमकर विरोध किया गया था। जब यह लेख एक सप्ताह से अधिक समय तक भी लाइव नहीं किया गया तो मैंने पूछताछ की। इसके उत्तर में नभाटा के सम्पादक मंडल ने बताया कि इसकी कई पंक्तियों पर आपत्ति की गयी है। उन्होंने यह नहीं बताया कि यह आपत्ति किसने और किन पंक्तियों पर की है।
अभी तक मेरा ईमेल व्यवहार नभाटा के सम्पादकीय टीम के विवेक कुमार के साथ ही हो रहा था। जब मैंने दोबारा पूछा तो नभाटा के प्रधान सम्पादक नीरेन्द्र नागर की ईमेल प्राप्त हुई जिसमें उन्होंने तुष्टीकरण पर अपना ज्ञान बघारा था और मुझे यह समझाने की चेष्टा की कि गांधी ने मुस्लिम तुष्टीकरण नहीं किया था। इसके साथ ही मेरे ऊपर एक प्रकार से यह आरोप भी लगाया कि मैं परधर्मद्वेषी अर्थात् साम्प्रदायिक हूं।
इसके जबाब में मैंने उनको लिखा कि गांधी स्पष्ट रूप से मुसलमानों के प्रति पक्षपातपूर्ण और हिन्दुओं के प्रति उपेक्षापूर्ण थे। यही मेरे ब्लाॅग का मुख्य विषय है। मैंने अपने साम्प्रदायिक होने से भी इन्कार किया। इसके साथ ही मैंने उनसे यह कह दिया कि मेरे लेख के जिन शब्दों या वाक्यों को आप आपत्तिजनक मानते हैं उनको सुधारकर या हटाकर लेख लाइव कीजिए। इसके कई दिन बाद यह लेख लाइव हुआ।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
इसमें से निम्नलिखित वाक्य को हटाया गया था।
"गाँधी यह समझने में असफल रहे कि मुसलमानों को संतुष्ट करना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है. वे तब तक संतुष्ट नहीं हो सकते, जब तक वे पूरी दुनिया को दारुल-इस्लाम न बना लें."
मेरे इस लेख पर बहुत कमेंट आये और उनमें से अधिकांश मेरे समर्थन में ही थे। एकाध विरोध में भी आया परन्तु उनकी बातों में कोई तर्क नहीं था। एक सेकूलर पाठक ‘स्वामी चन्द्रमौली’ ने मुझे गांधी जैसे सच्चे, ईमानदार आदमी की आलोचना के लिए नर्क में जाने का श्राप दिया। इसके जबाब में मैंने लिखा कि ‘स्वामी जी, यदि गाँधी जैसे पाखंडी और नेहरू जैसे गद्दारों की सच्चाई उजागर करने से मुझे नर्क भी प्राप्त होता है, तो मैं सदा सर्वदा के लिए नर्क भोगने के लिए तैयार हूँ। आपका आशीर्वाद सिर-माथे।’
विजय कुमार सिंघल

Sunday 20 March 2016

नभाटा ब्लाॅग पर मेरे दो वर्ष-3

मैंने अगला लेख लिखा था ‘हिंदू मुस्लिम एकता का दिवा स्वप्न’। इसका लिंक अपने दूसरे ब्लाॅग से दे रहा हूँ क्योंकि उसमें यह लेख पूरा है। 
यहां यह स्पष्ट कर दूं कि मैं अपने लेखों की एक प्रति अपने अन्य ब्लाॅग पर लगाता था, जो ब्लाॅग स्पाॅट पर खट्ठा-मीठा नाम से ही खोला था। हालांकि उस पर अधिक लोग नहीं आते थे, लेकिन लेखों का संदर्भ लेने और उनको सुरक्षित रखने के लिए यह ब्लाॅग बहुत उपयोगी था।
उक्त लेख को नभाटा ने कई दिन तक लाइव नहीं किया, जबकि दूसरों के दो-दो लेख लाइव हो गये थे। तो मैंने नभाटा को लिखा कि इसको लाइव करें। उत्तर में उन्होंने बताया कि कई लोगों ने इस लेख की कुछ पंक्तियों पर आपत्ति की है, इसलिए इसे लाइव नहीं किया जा रहा है। मैंने उत्तर दिया कि किसको किन पंक्तियों पर आपत्ति है मु्झे बतायें ताकि लेख को सुधारकर लगाया जा सके। इसका मुझे कोई उत्तर नहीं मिला और लगभग 7 दिन बाद सम्पादक मंडल ने स्वयं ही लेख को सुधारकर तथा शीर्षक बदलकर लाइव कर दिया। उसका लिंक नीचे है। नया शीर्षक था- "खिलाफत आन्दोलन और गाँधी"
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%9…
दोनों लेखों की तुलना करके आप देख सकते हैं कि नभाटा के सम्पादक मंडल ने किस तरह मेरे लेख की मजबूत पंक्तियों पर चाकू चलाया है। खैर, ब्लाॅग जारी रखने के लिए मैं इसको सहन कर गया।
मेरे इस लेख पर गिने-चुने कमेंट ही आये और मुसलमान पाठक इससे दूर ही रहे, क्योंकि उनके पास कहने को कुछ था ही नहीं।
विजय कुमार सिंघल

तनावमुक्त होने के उपाय

अपने एक लेख में मैंने बताया था तनावग्रस्त रहने से कोई समस्या हल नहीं होती, बल्कि नई समस्याएं पैदा हो जाती हैं। कई सज्जनों ने इस पर सहमति व्यक्त करते हुए पूछा है कि तनावमुक्त रहने का क्या उपाय है। उनकी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए यहां मैं तनावमुक्त रहने के अनुभवजन्य उपाय बता रहा हूं।
सबसे पहले तो यह समझ लेना चाहिए कि तनावग्रस्त रहना एक मानसिक बीमारी है और इसका उपचार मानसिक उपायों से ही किया जा सकता है। ऐसी कोई दवा, गोली, कैप्सूल, काढ़ा नहीं होता कि आप उसे खा लें और तनावमुक्त हो जायें। तनावमुक्त होने के लिए अपने तनाव या चिंता के कारणों को दूर करना चाहिए।
हमें तनाव या चिंता प्रायः किसी समस्या के कारण होती है। हालांकि कुछ ऐसे भावुक लोग भी होते हैं जो किसी के द्वारा एक शब्द या वाक्य गलत या अवांछनीय बोल देने पर ही तनावग्रस्त हो जाते हैं। ऐसी भावुकता उचित नहीं। अगर किसी ने आपके प्रति कोई गलत कार्य किया है या गलत बोला है, तो उसके प्रभाव से निपटने के दो तरीके हैं- या तो आप उसको उपेक्षित कर दें, या फिर उसकी ईंट का जबाब पत्थर से दें। इनमें से पहला तरीका ही सबसे अधिक सुरक्षित है। यदि किसी के गलत कार्य या वाक्य से आपको सीधे कोई हानि नहीं हो रही है, तो उसको मूर्खता मानकर उपेक्षित कर देना चाहिए। ऐसा करने से आप तत्काल तनावमुक्त हो जायेंगे।
दूसरा तरीका, ईंट का जबाब पत्थर से देने का भी है। इसको प्रायः तभी काम में लिया जाना चाहिए, जब आपको प्रत्यक्ष हानि हो तथा उसका उचित उत्तर दिये बिना काम न चल रहा हो। ऐसा करने से पहले अपनी शक्ति का आकलन अवश्य कर लेना चाहिए, क्योंकि ईंट का उत्तर पत्थर से देने पर अनेक नई समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जिनसे नये तनाव उत्पन्न हो सकते हैं।
यदि हमें तनाव या चिंता अपनी ही किसी वर्तमान समस्या के कारण है, तो उस समस्या का समाधान हुए बिना हम तनावमुक्त नहीं हो सकते। इसलिए सबसे पहले हमें उस समस्या का समाधान खोजना चाहिए। किसी समस्या का समाधान उसकी चिंता करने से नहीं बल्कि उसके बारे में चिंतन करने से हो सकता है कि इसका क्या समाधान किया जाये।
किसी समस्या को किस प्रकार हल किया जाये, यह एक अलग विषय है। इसके बारे में अलग से लिखूंगा। यहां इतना ही समझ लीजिए कि यदि किसी समस्या का समाधान सम्भव है तो हमें अपनी शक्ति भर उसका समाधान करना चाहिए और यदि उस समस्या का समाधान सम्भव ही नहीं है, तो उसे वास्तविकता या नियति मानकर संतोष कर लेना चाहिए।
तनावमुक्त रहने के दो अन्य सरल उपाय भी हैं- एक, अपने ऊपर विश्वास रखना और दो, अपने आराध्य प्रभु के ऊपर विश्वास रखना। बहुत से लोगों को अपने ऊपर विश्वास नहीं होता, इसलिए कोई जरा सी समस्या आ जाने पर या उसका संकेत मात्र मिलने पर ही तनावग्रस्त हो जाते हैं और हाय-हाय करने लगते हैं। ऐसा करना स्पष्ट रूप से मूर्खता है। हमें अपने ऊपर कम से कम इतना विश्वास अवश्य होना चाहिए कि कोई समस्या या संकट आने पर हम उसका अपनी शक्ति भर मुकाबला करेंगे। जिनको अपने ऊपर इतना विश्वास होता है, वे कभी तनावग्रस्त हो ही नहीं सकते।
लेकिन बहुत सी ऐसी समस्याएं होती हैं, जिनसे निपटने में हमारी अपनी शक्ति सफल नहीं रहती। ऐसी स्थिति में हमें अपने आराध्य देव पर विश्वास रखना चाहिए कि कोई भयंकर संकट आने पर वह निश्चय ही हमें उस संकट से निकलने का मार्ग दिखायेगा। ऐसा विश्वास बहुत से संकटों से हमारी रक्षा करता है और तनावग्रस्त होने से रोकता है।
कैसी बिडम्बना है कि हम स्वयं को आस्तिक कहते हैं और अपने दैनिक जीवन का काफी समय पूजा-पाठ और मंदिरों में लगाते हैं, लेकिन जरा सा संकट या समस्या आ जाने पर ही घबड़ा जाते हैं और अपने भाग्य या ईश्वर को ही दोष देने लगते हैं। ऐसी मानसिकता बहुत हानिकारक हैं। यदि हम अपने आराध्य को मानते हैं तो यह भी मानना चाहिए कि वह हमेशा हमारे साथ है और सभी संकटों से हमारी रक्षा करेगा।
अपने ऊपर और अपने प्रभु के ऊपर विश्वास बढ़ाने का एक प्रभावी उपाय जप या ध्यान करना है। आप अपनी सुविधानुसार कभी भी कहीं भी किसी आसन पर शांति से बैठ जाइए और या तो गायत्री मंत्र का अर्थ सहित मानसिक जप कीजिए या अपने हृदय, नासाग्र या भ्रूमध्य में ध्यान लगाते हुए ओम् का मानसिक जप कीजिए। ऐसा करने से निश्चय ही आपको नया आत्मविश्वास प्राप्त होगा और हर प्रकार के तनाव से मुक्ति मिलेगी। ओंकार ध्वनि (उद्गीत) और भ्रामरी प्राणायाम भी इसमें आपकी बहुत सहायता कर सकते हैं।
विजय कुमार सिंघल

नभाटा ब्लाॅग पर मेरे दो वर्ष-2

सम्पादक मंडल की पहली आपत्ति
मैंने अपना पहली पोस्ट 4 जनवरी 2012 को ‘श्रीगणेशाय नमः’ शीर्षक से लिखी, जो एक भूमिका के रूप में थी। नभाटा में तीन दिनों में एक पोस्ट लिखने की अनुमति है, हालांकि चालू विषयों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होता। इसलिए मैं प्रायः तीन-चार दिनों में ही एक पोस्ट लिखता था और उसे ब्लाॅग पर डाल देता था।
मेरी अगली पोस्ट थी- ‘मूर्खात्मा गाँधी और पोंगा पंडित नेहरू’।
शीर्षक से स्पष्ट है कि इसमें गाँधी और नेहरू के हिन्दुत्व विरोधी और मुस्लिम परस्त कार्यों और विचारों की आलोचना की गयी थी। इसमें मैंने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि मैं भी पहले गांधी का भक्त था, लेकिन जैसे जैसे मुझे गांधी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी मिली, वैसे वैसे उनके प्रति मेरे विचार बदलते गये।
इस पोस्ट पर मुझे अपने समर्थन में कई टिप्पणियां मिलीं और केवल एक व्यक्ति ने मेरे विचारों का विरोध किया। इस प्रतिक्रिया से मेरा हौसला बढ़ा।
मेरा अगला लेख था ‘इस्लाम से बेखबर गाँधी'
इसमें मैंने बताया था कि गांधी को इस्लाम की पूरी और सही जानकारी नहीं थी नहीं तो उनके विचार कुछ अलग होते। कुरान में एक-दो नहीं बल्कि 24 आयतें ऐसी हैं जिनमें काफिरों अर्थात् गैर-मुसलमानों के प्रति घृणा और हिंसा की प्रेरणा दी गयी है। इस लेख को ब्लाॅग पर लाइव करने से पहले मुझे नभाटा के सम्पादक मंडल का ईमेल मिला कि इस लेख की निम्नलिखित पंक्तियां हटाने के बाद ही लेख प्रकाशित किया जाएगा-
"वास्तव में जिन मुहम्मद के माध्यम से ये आयतें आई बताई जाती हैं, वे पढ़े-लिखे नहीं थे, बल्कि पूरी तरह अनपढ़ थे. इसलिए इन आयतों में कोई अर्थ छिपा होने की कोई संभावना नहीं है और ये सीधे-सपाट शब्दों में ठीक वही कहती हैं जो वे कहना चाहती हैं. इन आयतों के आदेशों को मानने वाला व्यक्ति केवल आतंकवादी और अत्याचारी ही बनेगा. वह शांति-पसंद व्यक्ति तो कदापि नहीं बन सकता."
हालांकि मैं इन पंक्तियों में कुछ भी अनुचित नहीं समझता, क्योंकि इसमें एक सर्वमान्य तथ्य को ही व्यक्त किया गया है कि मुहम्मद अनपढ़ थे। लेकिन नभाटा के सम्पादक को संतुष्ट करने के लिए मैंने इनको हटाने की स्वीकृति दे दी और तब यह लेख लाइव हुआ।
जैसा कि स्वाभाविक है, इस लेख पर कई मुस्लमान भाइयों ने बहुत विरोधात्मक टिप्पणियाँ कीं. मैंने अपने मत के अनुसार उनका उत्तर दिया और कई अन्य विचारकों जिनमें राज हैदराबादी प्रमुख थे ने भी उनके उत्तर दिए. इस लेख पर हुई बहस को आप लिंक खोलकर पढ़ सकते हैं.
विजय कुमार सिंघल

नींद क्यों रात भर नहीं आती!

अनेक लोगों को नींद न आने की शिकायत होती है। वे देर तक करवट बदलते रहते हैं, पर तमाम कोशिशों के बाद भी सो नहीं पाते। बहुत बाद में जब नींद आती भी है तो अधूरी रहती है और उसका पूरा लाभ नहीं मिलता। लम्बे समय तक यह स्थिति रहने पर वे अनिद्रा रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। इससे अनेक समस्यायें पैदा होती हैं।
नींद न आने के कई कारण हो सकते हैं। सबसे बड़ा कारण है अनावश्यक रूप से चिंतित रहना। इसका समाधान यह है कि सोने जाते समय अपनी सारी चिंताओं और समस्याओं को शयन कक्ष के बाहर ही छोड देना चाहिए और उनसे कहना चाहिए कि सुबह मुलाक़ात करेंगे। आप देखेंगे कि सुबह तक उनमें से आधी चिन्तायें और समस्यायें ग़ायब हो जायेंगी। फिर भी यदि कोई विकट समस्या हो तो उसके समाधान के लिए दिन में ही विचार या चिंतन करना चाहिये। उसके लिए रातों की नींद ख़राब करना व्यर्थ है।
अनिद्रा का दूसरा कारण पर्याप्त मेहनत न करना होता है। यदि हम दिनभर परिश्रम करेंगे तो रात्रि को अपने तय समय पर हमें नींद अवश्य आयेगी और ऐसी नींद गहरी भी होती है, जिससे प्रात:काल शरीर एकदम तरोताज़ा होता है।
बहुत से लोग नींद की गोलियाँ खाकर सोते हैं। यह बहुत खतरनाक है। नींद की गोलियों से ऐसा नशा आता है जो हमारे पूरे शरीर को शिथिल कर देता है। वह नींद नहीं है बल्कि एक प्रकार की बेहोशी होती है। इससे आगे चलकर बहुत कुपरिणाम मिलते हैं।
योग चिकित्सा में एक आसन ऐसा है जिसको यदि सोते समय कर लिया जाये तो बहुत गहरी नींद आती है। इसका नाम है 'ब्रह्मचर्यासन'। यह वज्रासन से मिलता जुलता है लेकिन इसमें पैर के पंजों को भीतर के बजाय बाहर की तरफ मोड़ा जाता है और नितम्बों को ज़मीन पर टिकाया जाता है जैसा कि साथ के चित्रों में दिखाया गया है।
इस आसन से डरावना सपने आने तथा स्वप्नदोष की शिकायत भी दूर होती है। सोने से ठीक पहले लघुशंका से निवृत्त होकर बिस्तर पर ही इसे ३ से ५ मिनट तक करना चाहिए।
 

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष-1

नव भारत टाइम्स अखबार की वेबसाइट का 'अपना ब्लॉग' स्तम्भ काफी लोकप्रिय रहा है. मैं इसको पढता था, तो सोचता था कि मुझे भी अपना ब्लाॅग लिखना चाहिए और नियमित रूप से उस पर अपने विचार प्रकट करने चाहिए। उससे पहले मैं केवल विश्व संवाद केन्द्र लखनऊ के साप्ताहिक बुलेटिन या पत्रिका में कभी-कभी लेख, व्यंग्य आदि लिखा करता था और प्रायः उनको फेसबुक पर भी डाल देता था। लेकिन मैंने अनुभव किया कि ब्लाॅग स्तम्भ का लाभ उठाना चाहिए, ताकि मेरी बात अधिक लोगों तक तथा प्रबुद्ध लोगों तक भी पहुँचे।
काफी सोच-विचार के बाद मैंने ब्लाॅग लिखना प्रारम्भ किया। इसके पूर्व मैंने ब्लाॅगर के रूप में नभाटा पर अपना पंजीकरण करा लिया और वहाँ से मुझे पासवर्ड भी मिल गया, जिससे मैं अपने ब्लाॅग पर कार्य कर सकता था। मैं संवाद केन्द्र पत्रिका में ‘खट्ठा-मीठा’ नाम से व्यंग्य लेख लिखा करता था, इसलिए मैंने अपने ब्लाॅग का नाम भी ‘खट्ठा-मीठा’ ही रखा।
मैं जनवरी 2012 से दिसम्बर 2013 तक पूरे दो साल इस ब्लाॅग पर सक्रिय रहा और मेरे ब्लाॅग के पाठकों की संख्या भी बहुत हो गयी। इस अवधि में मुझे ब्लाॅग लिखते हुए अनेक खट्ठे-मीठे-तीखे-चरपरे अनुभव हुए और नभाटा के प्रधान सम्पादक नीरेन्द्र नागर के साथ मेरा कई बार टकराव हुआ। अन्ततः उन्होंने मुझे ब्लाॅग लिखने से रोक दिया और मेरा पासवर्ड ब्लाॅक कर दिया।
इस लेखमाला में मैं नभाटा के ब्लाॅगर के रूप में अपने अनुभवों को सभी के साथ साझा करना चाहता हूँ और यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दम भरने वाले ये तथाकथित पत्रकार किस तरह एक स्वतंत्र लेखक का गला घोंटने पर उतारू हो जाते हैं।
विजय कुमार सिंघल