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Sunday 20 March 2016

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष-1

नव भारत टाइम्स अखबार की वेबसाइट का 'अपना ब्लॉग' स्तम्भ काफी लोकप्रिय रहा है. मैं इसको पढता था, तो सोचता था कि मुझे भी अपना ब्लाॅग लिखना चाहिए और नियमित रूप से उस पर अपने विचार प्रकट करने चाहिए। उससे पहले मैं केवल विश्व संवाद केन्द्र लखनऊ के साप्ताहिक बुलेटिन या पत्रिका में कभी-कभी लेख, व्यंग्य आदि लिखा करता था और प्रायः उनको फेसबुक पर भी डाल देता था। लेकिन मैंने अनुभव किया कि ब्लाॅग स्तम्भ का लाभ उठाना चाहिए, ताकि मेरी बात अधिक लोगों तक तथा प्रबुद्ध लोगों तक भी पहुँचे।
काफी सोच-विचार के बाद मैंने ब्लाॅग लिखना प्रारम्भ किया। इसके पूर्व मैंने ब्लाॅगर के रूप में नभाटा पर अपना पंजीकरण करा लिया और वहाँ से मुझे पासवर्ड भी मिल गया, जिससे मैं अपने ब्लाॅग पर कार्य कर सकता था। मैं संवाद केन्द्र पत्रिका में ‘खट्ठा-मीठा’ नाम से व्यंग्य लेख लिखा करता था, इसलिए मैंने अपने ब्लाॅग का नाम भी ‘खट्ठा-मीठा’ ही रखा।
मैं जनवरी 2012 से दिसम्बर 2013 तक पूरे दो साल इस ब्लाॅग पर सक्रिय रहा और मेरे ब्लाॅग के पाठकों की संख्या भी बहुत हो गयी। इस अवधि में मुझे ब्लाॅग लिखते हुए अनेक खट्ठे-मीठे-तीखे-चरपरे अनुभव हुए और नभाटा के प्रधान सम्पादक नीरेन्द्र नागर के साथ मेरा कई बार टकराव हुआ। अन्ततः उन्होंने मुझे ब्लाॅग लिखने से रोक दिया और मेरा पासवर्ड ब्लाॅक कर दिया।
इस लेखमाला में मैं नभाटा के ब्लाॅगर के रूप में अपने अनुभवों को सभी के साथ साझा करना चाहता हूँ और यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दम भरने वाले ये तथाकथित पत्रकार किस तरह एक स्वतंत्र लेखक का गला घोंटने पर उतारू हो जाते हैं।
विजय कुमार सिंघल

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