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Monday 21 March 2016

नभाटा ब्लाॅग पर मेरे दो वर्ष-4

मैंने अगला लेख लिखा था ‘हत्यारे के भाई गांधी’। इस लेख में बताया गया था कि गांधी ने भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को दी जाने वाली फांसी को रोकने के लिए कुछ नहीं किया, लेकिन स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे अब्दुल रशीद को अपना भाई बताया और उसको माफ कर देने की वकालत की। इसका लिंक नीचे है।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
इस लेख को भी नभाटा ने कई दिन तक लाइव नहीं किया, फिर मैंने ईमेल भेजी तो कई दिन बाद उसे लाइव किया गया।
मेरा अगला लेख था- ‘मुस्लिम तुष्टीकरण के जनक गांधी’ जैसा कि इसके शीर्षक से स्पष्ट है, इसमें गांधी और नेहरू की मुस्लिमपरस्त नीतियों का जमकर विरोध किया गया था। जब यह लेख एक सप्ताह से अधिक समय तक भी लाइव नहीं किया गया तो मैंने पूछताछ की। इसके उत्तर में नभाटा के सम्पादक मंडल ने बताया कि इसकी कई पंक्तियों पर आपत्ति की गयी है। उन्होंने यह नहीं बताया कि यह आपत्ति किसने और किन पंक्तियों पर की है।
अभी तक मेरा ईमेल व्यवहार नभाटा के सम्पादकीय टीम के विवेक कुमार के साथ ही हो रहा था। जब मैंने दोबारा पूछा तो नभाटा के प्रधान सम्पादक नीरेन्द्र नागर की ईमेल प्राप्त हुई जिसमें उन्होंने तुष्टीकरण पर अपना ज्ञान बघारा था और मुझे यह समझाने की चेष्टा की कि गांधी ने मुस्लिम तुष्टीकरण नहीं किया था। इसके साथ ही मेरे ऊपर एक प्रकार से यह आरोप भी लगाया कि मैं परधर्मद्वेषी अर्थात् साम्प्रदायिक हूं।
इसके जबाब में मैंने उनको लिखा कि गांधी स्पष्ट रूप से मुसलमानों के प्रति पक्षपातपूर्ण और हिन्दुओं के प्रति उपेक्षापूर्ण थे। यही मेरे ब्लाॅग का मुख्य विषय है। मैंने अपने साम्प्रदायिक होने से भी इन्कार किया। इसके साथ ही मैंने उनसे यह कह दिया कि मेरे लेख के जिन शब्दों या वाक्यों को आप आपत्तिजनक मानते हैं उनको सुधारकर या हटाकर लेख लाइव कीजिए। इसके कई दिन बाद यह लेख लाइव हुआ।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
इसमें से निम्नलिखित वाक्य को हटाया गया था।
"गाँधी यह समझने में असफल रहे कि मुसलमानों को संतुष्ट करना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है. वे तब तक संतुष्ट नहीं हो सकते, जब तक वे पूरी दुनिया को दारुल-इस्लाम न बना लें."
मेरे इस लेख पर बहुत कमेंट आये और उनमें से अधिकांश मेरे समर्थन में ही थे। एकाध विरोध में भी आया परन्तु उनकी बातों में कोई तर्क नहीं था। एक सेकूलर पाठक ‘स्वामी चन्द्रमौली’ ने मुझे गांधी जैसे सच्चे, ईमानदार आदमी की आलोचना के लिए नर्क में जाने का श्राप दिया। इसके जबाब में मैंने लिखा कि ‘स्वामी जी, यदि गाँधी जैसे पाखंडी और नेहरू जैसे गद्दारों की सच्चाई उजागर करने से मुझे नर्क भी प्राप्त होता है, तो मैं सदा सर्वदा के लिए नर्क भोगने के लिए तैयार हूँ। आपका आशीर्वाद सिर-माथे।’
विजय कुमार सिंघल

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