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Monday 21 January 2013

नेहरू की आर्थिक नीतियां : विनाश व भ्रष्टाचार के बीज


जवाहरलाल नेहरू स्वयं को गाँधी का उत्तराधिकारी कहते थे। वैसा था भी क्योंकि गाँधी ने अनेक योग्य नेताओं की उपेक्षा करके नेहरू को देश का प्रधानमंत्री बनवाया था। जैसा कि मैं पहले भी लिख चुका हूँ, नेहरू एक छद्म कम्यूनिस्ट थे और रूस तथा चीन की लाल क्रांतियों से प्रभावित थे। फिर भी यदि वे स्वयं को गाँधी का अनुयायी कहते थे, जिनका साम्यवाद से दूर का भी सम्बंध नहीं था, तो यह भी उनकी एक चाल थी।

प्रधानमंत्री बनने के बाद नेहरू ने गाँधी के मुस्लिमपरस्त राजनैतिक विचारों, जिनके कारण देश को बहुत हानि पहुँची, का तो पूरी निष्ठा से पालन किया, परन्तु गाँधी के आर्थिक विचारों को पूरी तरह भूल गये, जिनसे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती। यह सर्वविदित है कि गाँधी के आर्थिक विचार, जो उन्होंने अपनी पुस्तक ‘ग्राम स्वराज्य’ में व्यक्त किये हैं, बहुत ही अच्छे हैं और देश की परिस्थितियों के अनुरूप हैं। वे गाँवों को अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। इस हेतु उन्होंने ग्राम पंचायत को एक स्वतंत्र इकाई माना था। प्रत्येक ग्राम पंचायत की अर्थव्यवस्था कृषि और उससे सम्बंधित कुटीर उद्योगों पर आधारित होती, जिससे बेरोजगारी की समस्या का नाम भी नहीं होता और देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर होता।

अत्यन्त खेद है कि हर बात में गाँधी का नाम जपने वाले नेहरू ने गाँधी के इन अत्यन्त उपयोगी विचारों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया और अपनी साम्यवादी मानसिकता के अनुसार बिल्कुल विपरीत नीतियों पर चले। नेहरू का जोर भारी उद्योगों और बड़े बाँधों पर था, जिनसे उत्पादन भले ही अधिक होता हो, लेकिन रोजगारों में कमी होती है। इससे जनसंख्या का एक बड़ा भाग रोजगार से वंचित रह जाता है और अर्थव्यवस्था पर बोझ बनता है। नेहरू ने कुटीर उद्योगों को बिल्कुल भी प्रोत्साहन नहीं दिया, उलटे उन पर तमाम सरकारी बंदिशें लगाकर उन्हें हतोत्साहित किया। इसका परिणाम सबके सामने है। भारी बेरोजगारी और भयंकर गरीबी आज भी देश के लिए अभिशाप बनी हुई है।

नेहरू ने साम्यवाद का एक संस्करण ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ के नाम से लागू करने की कोशिश की। इसके अन्तर्गत हर काम में सरकारी हस्तक्षेप और अर्थव्यवस्था में सरकारी नियंत्रणों की भरमार थी। इसका कुपरिणाम घोर भ्रष्टाचार के रूप में देश को भुगतना पड़ा और आज भी भुगत रहा है। विकास के तमाम दावों के बावजूद यह एक तथ्य है कि नेहरू के राज में भारत की आर्थिक विकास दर मात्र 2.5 प्रतिशत वार्षिक रही, जो अत्यन्त ही असंतोषजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है। नेहरू के समय में खाद्यान्न का संकट हमेशा बना रहा। वे साम्यवादी देशों के कम्यूनों की तर्ज पर देश में सहकारी खेती भी कराना चाहते थे। वह तो भला हो चैधरी चरणसिंह का, जिन्होंने नेहरू को यह मूर्खता करने से रोक दिया, वरना देश आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाता।

नेहरू अच्छी तरह जानते थे कि उनकी तथाकथित समाजवादी आर्थिक नीतियों के कारण देश में इंस्पेक्टर राज और भ्रष्टाचार बढ़ेगा, परन्तु अपने पूर्वाग्रहों के कारण वे नीतियाँ बदलने को तैयार नहीं हुए। उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों द्वारा भ्रष्टाचार करने की समस्या उनके सामने ही प्रकट हो गयी थी, परन्तु वे आँखें मूँदे रहे। आज हम जिस अरबों-खरबों के भ्रष्टाचार को भुगत रहे हैं, उसके बीज नेहरू की नीतियों में ही छिपे थे। वास्तव में भारत के तमाम आर्थिक संकटों का कारण नेहरू की गलत आर्थिक नीतियाँ ही हैं।

कई लोग कहेंगे कि नेहरू की आर्थिक नीतियाँ 1950-60 के दशक की परिस्थितियों के अनुरूप थीं। परन्तु यह सच नहीं है। उनकी नीतियाँ जितनी असंगत आज हैं, उतनी ही उस समय भी थीं। भारत की आजादी के आसपास कई देश स्वतंत्र हुए थे। उनमें से जो नियंत्रणमुक्त अर्थव्यवस्था के रास्ते पर चले वे कहाँ के कहाँ पहुँच गये। जापान, इसरायल, मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे देश शून्य से उठकर खड़े हो गये और दौड़ में हमसे बहुत आगे निकल गये। दूसरी ओर भारत आज भी अविकसित देशों की कतार में खड़ा है।

नरसिंह राव की सरकार को इस बात का श्रेय देना होगा कि उन्होंने नेहरूवादी आर्थिक नीतियों में छिपे विनाश के बीजों को पहचाना और अर्थव्यवस्था को उदार करने का कार्य प्रारम्भ किया, जिसे उनके बाद बनने वाली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अधिक तेज किया। इन परिवर्तनों का सुखद परिणाम भी दिखाई देने लगा और भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होने लगी। 1998 में पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका आदि देशों ने भारत पर अनेक पाबंदियाँ लगा दी थीं, लेकिन मजबूत अर्थव्यवस्था के कारण भारत इस स्थिति को झेल गया और सफलता से प्रगति के पथ पर चलता रहा। हालांकि बाद में मनमोहन सिंह की सरकार बनने पर कम्यूनिस्टों के दबाब के कारण उदारीकरण धीमा हो गया, लेकिन अर्थव्यवस्था आज भी विकास की ओर अग्रसर है और भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर है।

काश अपनी आर्थिक नीतियों के खोखलेपन का अहसास नेहरू को हो गया होता, तो हमारा देश आज सम्पूर्ण विश्व का सिरमौर होता।

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