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Tuesday 22 January 2013

क्या मुस्लिम विनाश की ओर बढ़ रहे हैं?


शीर्षक पढ़कर चौंकिये मत! कई इस्लामी और गैर-इस्लामी विद्वानों और भविष्यवेत्ताओं ने बहुत पहले से ही यह भविष्यवाणी कर रखी है कि हिजरी की 14वीं शताब्दी के बाद मुसलमानों का पूर्ण विनाश हो जाएगा और इस्लाम का नामो-निशान मिट जाएगा। यह भविष्यवाणी कोई चंडूखाने की गप्प नहीं है, बल्कि इसकी सत्यता का पूर्वाभास हम हिजरी की 15वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में अभी से करने लगे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कोई अदृश्य शक्ति बलपूर्वक सारे संसार को एक ऐसे टकराव की ओर धकेल रही है, जिसमें एक ओर इस्लाम को मानने वाले होंगे और दूसरी ओर बाकी सब होंगे। इससे लगता है कि यह टकराव निकट भविष्य में अपरिहार्य और अवश्यंभावी है।

इसके लक्षण अभी से नजर आने लगे हैं। संसार में कई जगह विभिन्न समुदायों में संघर्ष चल रहा है, जैसे यूरोप और अफ्रीका के कई देशों में मुस्लिम और ईसाई, अरब देशों में मुस्लिम और यहूदी, म्यांमार, चीन, थाईलैंड आदि देशों में मुस्लिम और बौद्ध, भारत, में मुस्लिम और हिन्दू आदि। कई इस्लामी देशों में तो इस्लाम के विभिन्न सम्प्रदायों और समुदायों के बीच संघर्ष चल रहा है। इन सभी संघर्षों में एक बात समान है कि इनमें कम से कम एक पक्ष मुस्लिम अवश्य है। धीरे-धीरे ये संघर्ष जोर पकड़ रहे हैं और सारी दुनिया जाने-अनजाने इस्लाम के खिलाफ लामबंद होती जा रही है।

विगत कुछ वर्षों की जेहादी आतंकवादी घटनाओं ने विश्व के जनमानस को बरबस ही इस्लाम के खिलाफ मोड़ दिया है। आज अन्य सभी तरह के आतंकवाद समाप्त हो गये हैं, केवल जेहादी अर्थात् इस्लामी आतंकवाद विश्व को पीडि़त कर रहा है। जब भी संसार में कहीं आतंकवाद की बात होती है, तो लोगों के दिमाग में तत्काल ही केवल इस्लामी आतंकवाद की छवि उभरती है। हालांकि बहुत से इस्लामी लेखक इस बात से इनकार करते हैं कि जेहादी आतंकवाद इस्लाम के कारण है, परन्तु यह वास्तविकता से मुँह मोड़ना ही है, क्योंकि जेहादी आतंकवादी संगठन साफ-साफ घोषित करते हैं कि उनकी सारी गतिविधियाँ इस्लाम के मूल सिद्धान्तों के अनुसार हैं।

इस्लामी आतंकवादियों के दावे में दम है, क्योंकि कुरान में दुनिया को दो भागों में बाँटा गया है- ‘दारुल-हरब’ और ‘दारुल-इस्लाम’। ‘दारुल हरब’ दुनिया के वे भाग हैं जिन पर मुसलमानों के अलावा अन्य मतों को मानने वालों का शासन है और जहाँ मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। इसके विपरीत ‘दारुल इस्लाम’ संसार के वे भाग हैं, जहाँ मुस्लिम बहुसंख्या में हैं और जहाँ इस्लाम के अनुसार शासन चलाया जाता है। प्रत्येक मुसलमान का यह धार्मिक कर्तव्य है कि वह ‘दारुल-हरब’ को ‘दारुल-इस्लाम’ में बदले और इसके लिए जो भी किया जा सकता है वह करे। अपने इसी धार्मिक कर्तव्य के अनुसार जेहादी आतंकवादी गैर-मुस्लिमों को मार रहे हैं तथा घुसपैठ, जबरन धर्म-परिवर्तन, लव-जेहाद, अधिक संतानोत्पत्ति आदि सभी सम्भव उपायों से अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं।

इसके साथ-साथ मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों के बीच मानसिक और भावनात्मक खाई दिन-प्रतिदिन चौड़ी होती जा रही है और यह विभाजन स्पष्ट होता जा रहा है। संसार के किसी भी कोने में घटने वाली प्रत्येक आतंकवादी घटना इस प्रक्रिया को तेज ही करती है। उदाहरण के लिए, अभी भारत में असम में बंगलादेशी घुसपैठियों ने वहाँ के मूल निवासियों पर हिंसक आक्रमण किये, जिसके कारण लाखों लोगों को अपने घरों से निर्वासित होकर शरणार्थी शिविरों में शरण लेनी पड़ी। जब बाद में उन्होंने भी संगठित होकर घुसपैठियों  को मारा और  खदेड़ा, तोसारे  संसार ने आश्चर्य से देखा कि पूरे भारत के मुसलमान लगभग सभी जगह बंगलादेशी घुसपैठियों के समर्थन में सड़कों पर आ गये, सिर्फ इसलिए कि वे मुसलमान हैं। इससे भारत के सभी नागरिकों के सामने यह बात फिर स्पष्ट हो गयी कि मुसलमानों की पहली और एकमात्र निष्ठा केवल इस्लाम और मुसलमानों के प्रति है। किसी देश के संविधान, कानून, संस्कृति आदि का उनके लिए कोई महत्व नहीं है। वरना कोई कारण नहीं था कि घुसपैठियों का समर्थन करने वाले मुसलमान भारत के शहीदों का अपमान करते।

इसी तरह अभी तालिबानियों ने ब्रिटेन के राजकुमार हैरी को मारने या अपहरण करने की धमकी दी है, जो अफगानिस्तान में एक सैनिक के रूप में कार्य कर रहे हैं। यह धमकी देने से पहले किसी ‘तालिबानी विचारक’ ने यह नहीं सोचा कि यदि ऐसी कोई घटना घटती है, तो ब्रिटेन और सारा संसार उस पर क्या प्रतिक्रिया करेगा। क्या वह अपने सम्मानित राजपरिवार के एक प्रमुख सदस्य की आतंकवादियों द्वारा हत्या को एक साधारण दुर्घटना मानकर सहन कर लेगा? इसका स्पष्ट उत्तर ‘नहीं’ में है। 11 सितम्बर की घटना के कारण संसार का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका पहले से ही इस्लामी आतंकवाद से परेशान है और उनके खून का प्यासा बना हुआ है। अब ब्रिटिश राजकुमार की जान लेकर तालिबानी सम्पूर्ण इस्लामी जगत के विनाश की प्रक्रिया को उसके अन्तिम चरण में धकेल देंगे। यह ‘आ बैल मुझे मार’ का उदाहरण है।

भयंकर संघर्ष और विनाश की ओर बढ़ने की इस प्रक्रिया को इस्लामी विचारक अभी भी रोक या धीमी कर सकते हैं, बशर्ते वे सभी प्रकार के जेहादी आतंकवाद के विरोध में कमर कसकर और जान हथेली पर रखकर खड़े हो जायें। यह कार्य अति शीघ्र ही नहीं, तत्काल करना होगा, क्योंकि पहले ही काफी देर हो चुकी है। यदि इस्लाम के झंडाबरदार ऐसा करने में असफल रहते हैं, तो फिर उन्हें अपने सम्पूर्ण विनाश के लिए तैयार रहना होगा।

अन्त में, डा. मुहम्मद इकबाल की पंक्तियों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ-
वतन (कौम) की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है,
तेरी बरबादियों के मशविरे हैं आसमानों में।
न सँभलोगे तो मिट जाओगे, ऐ हिन्दोस्तां वालो,
तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में।।

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