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Monday 21 January 2013

प्रधानमंत्री निवास में एक विदेशी नागरिक


किसी भी देश के सर्वोच्च कार्यकारी सत्ताधिकारी (राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री) का निवास उस देश की आन्तरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए अति संवेदनशील होता है। ऐसे स्थानों में किसी विदेशी नागरिक को अल्पकालीन प्रवेश भी गहरी छानबीन के बाद ही करने दिया जाता है। लेकिन मेरा भारत महान् इस मामले में बहुत विलक्षण है। यहाँ के एक प्रधानमंत्री के निवास में एक विदेशी नागरिक पूरे 15 साल तक अधिकारपूर्वक रहता रहा। उसे वहाँ से बाहर करना तो दूर किसी ने यह पूछने तक की जुर्रत नहीं की कि इस विदेशी को इतने लम्बे समय तक देश में रहने की अनुमति किसने और किस आधार पर दी है।

जी हाँ, मैं एंटोनिया अल्बीना मैनो उर्फ सोनिया गाँधी की बात कर रहा हूँ। इटली में 9 दिसम्बर 1946 को पैदा हुई एंटोनिया के पिता स्टीफनो मैनो का सम्बंध मुसोलिनी और हिटलर से बताया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध में मुसोलिनी और हिटलर का सफाया होने के बाद उन्होंने भी अपनी निष्ठा बदल ली और रूस की खुफिया एजेंसी के.जी.बी. के लिए कार्य करने लगे। इसी सिलसिले में काफी समय तक वे रूस में कहीं रहे और उससे प्रभावित होकर अपनी पुत्री का प्यार का नाम एंटोनिया के बजाय ‘सोनिया’ रख लिया। 'सोनिया' वास्तव में एक रूसी नाम है।

सोनिया को प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव में ही मिली। उसका अंग्रेजी ज्ञान शून्य था। अतः भविष्य को ध्यान में रखकर उसने 1964 अर्थात् केवल 18 वर्ष की आयु में इंग्लैंड के कैम्ब्रिज कस्बे की एक अंग्रेजी सिखाने वाली दुकान में लगभग 10 सप्ताह का कोर्स किया और इस प्रकार कामचलाऊ अंग्रेजी सीख ली। परिवार गरीब होने के कारण अपना खर्च निकालने के लिए वह सायंकाल के समय एक रेस्टोरेंट में सफाई और वेटर का काम भी करती थी।

उन्हीं दिनों हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के बड़े नाती राजीव गाँधी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से जुड़े ट्रिनिटी कालेज में पढ़ा करते थे। वहीं उस रेस्टोरेंट में सोनिया से उनकी मुलाकात और दोस्ती हुई और शीघ्र ही यह दोस्ती प्यार में बदल गयी। कैम्ब्रिज जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से डिग्री लेने गये वे महाशय सोनिया की आँखों में डूबकर पढ़ाई-लिखाई भूल गये और वार्षिक परीक्षा में फेल हो गये। इसलिए वे डिग्री के बजाय पत्नी लेकर 1966 में भारत लौटे।

1968 में सोनिया का विवाह राजीव गाँधी से हो गया और वे सोनिया गाँधी बन गयीं। तब तक इन्दिरा गाँधी प्रधानमंत्री बन चुकी थीं, अतः उनकी बहू के अधिकार से उनके ही निवास में रहने लगीं। उस समय उनकी नागरिकता इटली की ही थी और एक भारतीय नागरिक से विवाह करने और स्थायी रूप से भारत में रहने के बावजूद उन्होंने कभी भारतीय नागरिकता लेने के बारे में नहीं सोचा।

इतना ही नहीं, बिना भारतीय नागरिकता लिये उन्होंने 1980 के दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची में अपना नाम एक वोटर के रूप में लिखवा लिया, जिसका पता भी प्रधानमंत्री निवास (1, सफदरजंग रोड) था। यह अपने आप में बहुत गैरकानूनी काम था और केवल इसी आधार पर उनको लम्बे समय तक जेल की हवा खानी पड़ सकती थी। जब इस पर बावेला मचा तो वोटर लिस्ट से उनका नाम काट दिया गया, हालांकि भारत की नागरिकता लेने की कोशिश उन्होंने तब भी नहीं की।

जून 1980 में जब संजय गाँधी की दुर्घटना में मृत्यु हो गयी और राजीव गाँधी को उनके स्थान पर राजनीति में लाया गया, तब भी वे इटली की नागरिक थीं। वास्तव में वे इटली की नागरिकता छोड़ना ही नहीं चाहती थीं और इस जुगाड़ में थीं कि उनको इटली और भारत दोनों की नागरिकता एक साथ मिल जाये। परन्तु 1992 से पहले इटली में ऐसी अनुमति  नहीं थी, इसलिए बाध्य होकर उन्होंने 27 अप्रैल 1983 को इटली की नागरिकता छोडी और भारत की नागरिकता ली अर्थात् पूरे 15 वर्ष तक गैरकानूनी तरीके से भारत में रहने के बाद।

इतना ही नहीं, अप्रैल 1983 में भारतीय नागरिकता लेने से पहले ही जनवरी 1983 में वे अपना नाम दिल्ली की मतदाता सूची में लिखवा चुकी थीं, यानी वही अपराध जानबूझकर दूसरी बार किया जो वे 1980 में कर चुकी थीं। इससे स्पष्ट है कि इस देश का कोई कानून इस नेहरू-गाँधी-मैनो परिवार पर लागू नहीं होता और वे मनमाने ढंग से उनका पालन या उल्लंघन कर सकते हैं। अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि 1992 के बाद सोनिया ने फिर से इटली की नागरिकता ली है या नहीं, क्योंकि अब उनके कानून के अनुसार कोई भी इटालियन नागरिक दूसरे देश का नागरिक भी हो सकता है।

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