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Tuesday 22 January 2013

पहली राष्ट्रवादी सरकार


गुजराल सरकार के गिर जाने के बाद फरवरी 1998 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव हुए। इन चुनावों में तीन प्रमुख मोर्चे थे- एक, कांग्रेस का, जिसमें केवल केरल के दो छोटे दल और शामिल थे-मुस्लिम लीग और केरल कांग्रेस (मणि)। दूसरा, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसमें भाजपा के साथ अन्ना द्रमुक, अकाली दल, समता पार्टी, शिवसेना, बीजू जनता दल, तृणमूल कांग्रेस और कुछ अन्य छोटे-छोटे दल थे। तीसरा था संयुक्त मोर्चा, जिसमें जनता दल, द्रमुक और कम्यूनिस्ट पार्टियों के अलावा कुछ छोटे दल थे। एक चैथा मोर्चा भी था- जन मोर्चा, जिसमें लालू का राष्ट्रीय जनता दल और मायावती की बसपा शामिल थी।

जब चुनाव परिणाम आये, तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सबसे बड़ा गठबंधन बनकर सामने आया, जिसे 254 सीटें प्राप्त हुईं। इनमें भाजपा की अकेले ही 182 सीटें थीं, जो अब तक का उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इस मोर्चे को कुल मिलाकर 46.6 प्रतिशत वोट मिले थे यानी लगभग आधे। इस गठबंधन को इन चुनावों में केवल 25 सीटों का फायदा हुआ, हालांकि वोट लगभग 18 प्रतिशत बढ़े थे। हमारी चुनाव प्रणाली की कमियों के कारण ऐसा हुआ।

कांग्रेस के गठबंधन को केवल 144 सीटें मिलीं, जिनमें कांग्रेस की 141 और बाकी दूसरों की थीं। हालांकि कांग्रेस को इन चुनावों में पहले से 3.5 प्रतिशत वोट कम मिले, लेकिन सीट एक ज्यादा मिली। संयुक्त मोर्चा और जनमोर्चा क्रमशः केवल 64 और 24 सीटें झटक पाये। बाकी 59 सीटें निर्दलीयों और अन्य छोटे-छोटे दलों ने जीत लीं।

इन चुनावों में कांग्रेस गठबंधन के नेता थे सीताराम केसरी, जो स्वयं राज्यसभा के सदस्य थे। उनकी तुलना में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता थे अटल बिहारी वाजपेयी, जिनका व्यक्तित्व सीताराम केसरी की तुलना में अत्यन्त प्रभावशाली था। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि कांग्रेस का मत प्रतिशत इस बार स्वतंत्रता के बाद सबसे कम रहा।

हालांकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को बहुमत से 18 सीटें कम मिली थीं, लेकिन इस बार इतना समर्थन बाहर से प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं हुई, क्योंकि अब भाजपा अन्य दलों के लिए अछूत नहीं रह गयी थी। शीघ्र ही उसके नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्र्रहण कर ली।

यहाँ यह बता देना उचित होगा कि अटल जी की गिनती भारतीय जनसंघ के प्रारम्भ काल से ही प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं में की जाती रही है। वे महान् वक्ता हैं और अपनी विशेष शैली के लच्छेदार भाषण से श्रोताओं को बाँधे रखने में समर्थ हैं। वे दीर्घकाल तक भारतीय जनसंघ के महामंत्री, अध्यक्ष और लोकसभा में संसदीय दल के नेता रहे। जब मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी, तब उस सरकार में अटल जी ने विदेश मंत्री के रूप में अपनी कार्यकुशलता के झंडे गाड़े थे। उनके कार्यकाल को आज भी याद किया जाता है। बाद में वे भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रहे और वर्षों तक लोकसभा में विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता रहे। उनको स्वतंत्रता के बाद देश के महानतम राजनेताओं में गिना जाता है।

अटल जी की इस सरकार को देश की पहली राष्ट्रवादी सरकार कहा जा सकता है, क्योंकि यही ऐसी पहली सरकार थी, जिसने राष्ट्रीय हितों को तमाम क्षुद्र स्वार्थों और वोट-बैंक की राजनीति पर वरीयता दी। पहली बार जब वे प्रधानमंत्री बने थे तो केवल 13 दिन रहे थे और उनको कुछ करने का मौका ही नहीं मिला। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने अपनी राष्ट्रभक्ति का दृढ़ परिचय दिया, जिससे देश का और देशवासियों का सम्मान विश्वभर में बढ़ा।

अटल जी अपने प्रारम्भिक जीवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता और प्रचारक भी रहे थे। राजनीति में आ जाने के बाद भी संघ से उनका सम्पर्क टूटा नहीं, बल्कि दृढ़ से दृढ़तर होता चला गया। प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल ने सामान्य स्वयंसेवक को भी गौरवान्वित किया था। उनके कार्यों की चर्चा अगले लेखों में विस्तार से की जायेगी।

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