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Tuesday 22 January 2013

राजीव गाँधी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या


वी.पी. सिंह की सरकार गिर जाने के बाद देश के राजनैतिक हालात बहुत विचित्र हो गये थे। देश में ऐसी बातें फैल रही थीं कि जल्दी ही राजीव गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस फिर सत्ता में आ जायेगी। वे चन्द्रशेखर की सरकार को पीछे से समर्थन दे ही रहे थे। उधर श्रीलंका के तमिल चीते राजीव गाँधी के खून के प्यासे बने हुए थे, क्योंकि उन्होंने भारतीय शान्ति सेना को श्रीलंका भेजकर उनको खत्म करवाया था। वे किसी भी कीमत पर राजीव गाँधी की हत्या करना चाहते थे। भारत के कुछ तमिल संगठन जैसे डी.एम.के. और डी.के. भी खुलकर उनका समर्थन करते थे और कांग्रेस का विरोध करते थे।

उन सबने सोचा कि अगर राजीव गाँधी फिर से प्रधानमंत्री बन गये, तो फिर 5 साल तक उनकी हत्या करना असम्भव हो जाएगा। इसलिए वे जल्दी से जल्दी यह काम कर डालना चाहते थे। चन्द्रशेखर की सरकार भी गिर जाने और नये चुनाव घोषित हो जाने पर उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान इस काम को करना अधिक सरल समझा, क्योंकि इसमें कार्यकर्ताओं को नेताओं के पास जाने का मौका आसानी से मिल जाता है। तमिल आतंकवादियों ने इस हेतु योजना तैयार कर ली। उनको मानव बम बनने के लिए दो लड़कियाँ भी मिल गयीं।

21 मई 1991 के उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन राजीव गाँधी कांग्रेस के एक लोकसभा उम्मीदवार एम. चन्द्रशेखर के पक्ष में प्रचार के लिए श्रीपेरुम्बदूर नामक शहर में गये थे। वहाँ रात आठ बजे उनकी सभा होनी थी। रास्ते में देर हो जाने के कारण वे लगभग 10 बजे वहाँ पहुँचे। उनको माला पहनाने के लिए कई लोग लाइन में लगे हुए थे, उन्हीं में ‘धनु’ नाम की वह औरत भी थी, जो अपनी कमर में बम बाँधकर हत्या करने आयी थी। माला पहनाने के बाद वह उनके पैर छूने के बहाने नीचे झुकी और अपनी कमर में लगा हुआ बटन दबा दिया, जिससे बम फट गया। इसके साथ ही वह खुद और राजीव गाँधी सहित आस-पास खड़े 15-20 लोग मारे गये। जब तक कोई कुछ समझ पाता तब तक यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घट गयी।

हालांकि बाद में षडयंत्रकारी पकड़े गये और उन्हें उचित सजा भी मिली, लेकिन इस जघन्य हत्याकांड के कारण देश को बहुत हानि हुई। इस मामले में कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने अनजाने में ही आतंकवादियों को सहयोग दिया और उनका काम आसान कर दिया। पहले तो उन्हें राजीव गाँधी की सभा वहाँ रखनी ही नहीं चाहिए थी और अगर रखी भी थी, तो सुरक्षा जाँच का पूरा इंतजाम करना चाहिए था। पर यह सब नहीं किया गया। घोर लापरवाही के कारण ही यह हत्या हो गयी। यह ईश्वर की विचित्र लीला ही कही जायेगी कि नेहरू-गाँधी परिवार के अधिकांश सदस्यों की अप्राकृतिक मृत्यु ही हुई है।

उस लोकसभा चुनाव में मतदान तीन चरणों में पूर्ण होना था। एक दिन पहले 20 मई को ही पहले चरण का मतदान हो चुका था और 2 दिन बाद दूसरे चरण का मतदान किया जाना था, परन्तु ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। राजीव गाँधी की हत्या होते ही तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने आगे के चरणों का मतदान एक माह के लिए टाल दिया। इसका कोई औचित्य नहीं था, क्योंकि शेष देश में ऐसा कोई कारण नहीं था। अधिक से अधिक अमेठी में चुनाव प्रक्रिया रद्द की जानी चाहिए थी। परन्तु शेषन ने इस पर कोई विचार नहीं किया और पूरे देश के चुनाव स्थगित कर दिये, जो बाद में 12 और 15 जून को सम्पन्न हुए।

इस हत्या से पहले जिस एक चरण का मतदान पूर्ण हो चुका था, उसके नतीजों के विश्लेषणों से पता चलता था कि उसमें भारतीय जनता पार्टी की स्थिति बहुत मजबूत थी और अगर उसी तरह अन्य दो चरणों का मतदान होता, तो निश्चित ही भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ा दल बनकर उभरती, हालाँकि  उसे बहुमत नहीं मिल पाता। परन्तु राजीव गाँधी की हत्या हो जाने पर वातावरण एकदम बदल गया और कांग्रेस के पक्ष में हवा बहने लगी। मतदान स्थगित हो जाने के बीस दिन के समय का पूरा लाभ कांग्रेस को मिला और जब अन्तिम नतीजे आये, तो कांग्रेस 244 सीटें पाकर सबसे बड़ा दल बनकर उभरी, जिसकी उम्मीद पहले किसी ने नहीं की थी।

इसके बाद नरसिंह राव किस प्रकार प्रधानमंत्री बने और उन्होंने क्या-क्या किया, यह एक अलग लेख का विषय है। उसके बारे में फिर कभी।

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