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Tuesday 22 January 2013

बाबरी ढाँचे की मातमपुर्सी


6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहने के बाद सेकूलरों की बन आयी। सबने जमकर हिन्दुओं पर अपनी-अपनी भड़ास निकाली। जिनके मुँह से कश्मीर और देश के दूसरे हिस्सों में मन्दिरों के तोड़े जाने पर कभी ‘आह’ तक नहीं निकली थी, वे ही एक आधे-अधूरे और अवांछनीय मस्जिदनुमा ढाँचे के लिए छातियाँ पीट-पीटकर विलाप करने लगे। एक सेकूलर अखबार ‘जनसत्ता’ के महासेकूलर सम्पादक प्रभाष जोशी ने अपने अखबार में तमाम हिन्दू संगठनों को कोसते हुए ऐसा भयंकर और धारावाहिक प्रलाप किया कि मैंने तो उनका नाम ही ‘प्रलाप जोशी’ रख दिया था।

जब बाबरी ढाँचा गिराया जा रहा था, तब मौनी बाबा (नरसिंह राव) दिन भर सोते रहे थे। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि उनको पूरी जानकारी दी जा रही थी और वे जानबूझकर कमरा बन्द करके बैठ गये थे कि जो हो रहा है, उसे हो लेने दो। शाम को लगभग 7 बजे यानी बाबरी मस्जिद का क्रिया-कर्म हो जाने के बाद वे टी.वी. पर प्रकट हुए, बड़ी-बड़ी बातें की, बाबरी ढाँचा फिर से वहीं बनाने की (झूठी) कसम खायी और अन्तर्धान हो गये।

राजनैतिक रूप से भाजपा को इसका बहुत नुकसान हुआ। पहले तो कल्याण सिंह की सरकार चली गयी। बर्खास्तगी के डर से उन्होंने स्वयं ही इस्तीफा दे दिया। उनका अपराध बस इतना था कि उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलवाने से स्पष्ट मना कर दिया था। उत्तर प्रदेश में उसी दिन राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और 16 दिसम्बर को विधानसभा भी भंग कर दी गयी, जिसका कोई औचित्य नहीं था। इतना ही नहीं तीन अन्य राज्यों - मध्यप्रदेश में सुन्दर लाल पटवा, राजस्थान में भैंरों सिंह शेखावत और हिमाचल प्रदेश में डा. शान्ता कुमार की भाजपा सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया, जबकि इसमें उनका कोई दोष नहीं था। बाबरी के विलाप में किसी ने केन्द्रीय सरकार की इस घोर अलोकतांत्रिक कार्यवाही की निन्दा नहीं की।

बाबरी ढाँचा गिरने की प्रतिक्रिया में देश के कई हिस्सों में मुसलमानों ने दंगे प्रारम्भ कर दिये, जिनमें बम्बई, सूरत, अहमदाबाद, कानपुर, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई अन्य शहर शामिल थे। इन दंगों में कम से कम 1500 लोग मारे गये। सबसे भयंकर दंगे मुम्बई में हुए, जहाँ शहर में ही 900 जानें गयीं। वहाँ जनवरी 1993 में माफिया डान दाऊद इब्राहीम के गुर्गों ने सीरियल बम विस्फोट किये, लेकिन फिर उसको वहाँ से भागना पड़ा और कराची में जाकर छिप गया।

भारत से बाहर भी बाबरी ढाँचा गिरने की प्रतिक्रिया हुई। पाकिस्तान और बंगलादेश में व्यापक हिन्दू-विरोधी दंगे हुए, जिनमें मन्दिरों को तोड़ा गया और हिन्दू औरतों पर अत्याचार किये गये। बंगलादेश में सैकड़ों हिन्दू मंदिर तोड़ दिये गये और पाकिस्तान में कम से कम 30 मंदिरों को तोड़ा गया या उनमें आग लगा दी गयी। किसी भी सेकूलर कुबुद्धिजीवी ने इनकी निन्दा नहीं की, बल्कि इसे स्वाभाविक प्रतिक्रिया ही बताया। इस बारे में पाकिस्तान का रवैया हमेशा की तरह दोगला ही रहा। उसने अपने यहाँ तोड़े गये मंदिरों का तो नाम भी नहीं लिया, लेकिन बाबरी मस्जिद के तोड़ने पर भारतीय राजदूत को तलब कर लिया और संयुक्त राष्ट्र संघ ही नहीं इस्लामी देशों के सम्मेलन तक में भारत की शिकायत कर दी।

इस मामले में ईरान के शासक अयातुल्ला अली खमैनी की प्रतिक्रिया अवश्य संतुलित रही। उन्होंने बाबरी मस्जिद तोड़ने की तो निन्दा की, लेकिन साथ में पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार और मंदिर तोड़ने की भी कठोर शब्दों में भर्त्सना की।

केन्द्रीय सरकार ने बाबरी ढाँचा गिरने की घटनाओं की जाँच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन किया। इस आयोग ने पूरे 17 साल बाद यानी 2009 में अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में उसने किसी एक संगठन या व्यक्ति को दोषी नहीं पाया, बल्कि थोड़ा-थोड़ा दोष सब पर डाल दिया। कुल मिलाकर उसकी रिपोर्ट लगभग बेकार ही रही, क्योंकि उसमें कोई नई जानकारी नहीं है और वे सब बातें ही हैं, जो सब लोग 17 साल पहले भी जानते थे।

बाबरी ढाँचा तो ढह गया, लेकिन उसकी जगह भव्य राम मन्दिर आज तक नहीं बना है। आज भी श्री रामलला उसी पुरानी अस्थायी टाट की झोंपड़ी में रह रहे हैं, जिसमें 6 दिसम्बर 1992 को रखे गये थे। हिन्दुओं को लगभग 20 मीटर दूर से ही उनके दर्शन करने का अधिकार है, वह भी घंटों लाइन में लगकर और तीन-तीन बार अपनी खाना तलाशी देने के बाद। राम जन्म भूमि का सारा परिसर सरकारी कब्जे में है, वह भी जिस पर विहिप को निर्विवादित अधिकार प्राप्त था। उसका केस पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट में चला था। उसका फैसला आने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। उसका किस्सा फिर कभी।

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