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Monday 21 January 2013

देश का दुश्मन है सेकूलर सम्प्रदाय - 1


इसमें सन्देह नहीं कि भारत जैसे अनेक धर्म-सम्प्रदायों वाले देश में सभी को समान अधिकार होने चाहिए और किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के प्रति पक्षपात या भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन देश में एक सम्प्रदाय ऐसा है, जो इस देश के बहुसंख्यकों को सभी अधिकारों से वंचित रखने और तथाकथित अल्पसंख्यकों को सभी अधिकारों से पूर्ण करने की वकालत करता है। यह सम्प्रदाय है स्वयं को सेकूलर कहने वाले कुबुद्धिजीवियों, पत्रकारों, नेताओं और मानवाधिकारवादियों का। ये यह मानते हैं कि इनको इस देश के बहुसंख्यकों की हर बात का विरोध करने का जन्मसिद्ध अधिकार है। बहुसंख्यकों अर्थात् हिन्दुओं के पक्ष में कोई बात कहना इनकी दृष्टि में साम्प्रदायिकता है और उनके विरोध में छातियाँ पीटना इनकी नजर में महान् धर्मनिरपेक्षता या सेकूलरिटी है। अपनी सोच में ये इतने कट्टर हैं कि देश के हित और अनहित की चिन्ता किये बिना अपने कठमुल्लेपन पर अड़े रहते हैं। इसलिए मैं इनको सेकूलर सम्प्रदाय कहता हूँ।

यह सेकूलर सम्प्रदाय ही देश का असली दुश्मन है। ये इस बात को महसूस नहीं करते, और यदि करते हैं तो उसकी चिन्ता नहीं करते, कि इनकी एकपक्षीय सोच और हठधर्मिता के कारण देश को कितनी हानि पहुँच रही है। वास्तव में कई बार तो ऐसा लगता है कि इनकी अधिकांश हरकतें देश को नुकसान पहुँचाने के इरादे से ही होती हैं। आज देश में साम्प्रदायिक भेदभाव, अविश्वास और घृणा की हद तक का जो वातावरण फैला हुआ है, उसको फैलाने में ये सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। इसलिए मैं इनको देश का असली दुश्मन मानता हूँ। अपने इस निष्कर्ष की पुष्टि करने के लिए मैं एक नहीं अनेक उदाहरण दे सकता हूँ। यहाँ मैं एक-एक करके उन घटनाओं और मामलों की चर्चा करूँगा, जिनमें इस सम्प्रदाय की जहरीली और दोगली भूमिका स्पष्ट है।

1. सबसे पहले लीजिए रामजन्मभूमि का मामला। यह एक माना हुआ तथ्य है कि विदेशी हमलावर बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने वहाँ पर बने हुए भगवान राम के मन्दिर को तोड़कर उसी के मलबे से मस्जिदनुमा ढाँचा बनवाया था। इसको मुक्त कराने के लिए तभी से हिन्दू संघर्ष कर रहे थे और बीच-बीच में सभी मुगल बादशाहों तथा अंग्रेजों के युग में भी यह संघर्ष चलता रहा था। स्वतंत्र भारत में हिन्दू इस स्थान को वापस माँग रहे थे और इसके बदले किसी अन्य स्थान पर भव्य मस्जिद बनाकर मुसलमानों को भेंट करने को भी तैयार थे, लेकिन देश का सेकूलर सम्प्रदाय प्रारम्भ से ही हिन्दू समाज की इस माँग के खिलाफ रहा और मुसलमानों को भड़काता रहा कि यदि बाबरी मस्जिद हाथ से निकल गयी तो कयामत आ जाएगी। इसके लिए मुलायम सिंह जैसे मुस्लिम परस्त मुख्यमंत्री को निहत्थे हिन्दुओं पर गोली वर्षा करने में भी शर्म नहीं आयी और सेकूलर सम्प्रदाय ने उनकी इस नीच करतूत को भी सही ठहराया। अन्ततः जब हिन्दू समाज का धैर्य जबाब दे गया, तो हिन्दुओं ने उस अवांछनीय ढाँचे को गिरा डाला और वहाँ श्रीराम का मन्दिर बना दिया। उस मस्जिद नुमा ढाँचे सियापा करने में सेकूलर सम्प्रदाय सबसे आगे रहा। इनका दोगलापन इस बात से स्पष्ट है कि कश्मीर तथा देश के सैकड़ों स्थानों पर हजारों मन्दिरों को मुसलमानों द्वारा गिराये जाने और वहाँ जबर्दस्ती मस्जिद बनाये जाने पर उनके मुँह से निन्दा का एक शब्द भी नहीं निकला। सेकूलर सम्प्रदाय का यह दोगलापन केवल इस मामले में ही नहीं अन्य अनेक मामलों में भी बेनकाब हुआ है, जैसा कि हम आगे देखेंगे।

2. कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ बहुसंख्यक  मुसलमानों ने जो सलूक किया है, वह जग जाहिर है। 4 लाख से भी अधिक कश्मीरी हिन्दुओं को बहुसंख्यक मुसलमानों और उनके द्वारा पोषित-समर्थित आतंकवादियों के डर से कश्मीर छोड़कर बाहर आना पड़ा और उनमें से अधिकांश आज भी शरणार्थी शिविरों में दयनीय दशा में रह रहे हैं। लेकिन सभी जगह अल्पसंख्यकों अर्थात् मुसलमानों की तरफदारी करने वाले हमारे सेकूलर कुबुद्धिजीवियों के मुँह कश्मीरी हिन्दुओं के मामले में सुई-तागे से सिले हुए हैं। फिलस्तीन विस्थापितों तक के लिए छातियाँ पीटने वाले ये निर्लज्ज मानवाधिकारवादी कश्मीरी हिन्दू विस्थापितों के लिए एक शब्द भी नहीं बोलते और उन पर कश्मीरी इस्लामी आतंकवादियों द्वारा किये गये अमानुषिक अत्याचारों को देखकर भी आँखें बन्द कर लेते हैं। उलटे वे कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को दिल्ली में बुला-बुलाकर उनका प्रचार करते हैं। ऐसा करते हुए उन्हें कोई शर्म महसूस नहीं होती। उनकी दृष्टि में मानवाधिकार केवल इस्लामी आतंकवादियों के होते हैं, हिन्दुओं को वे मानव नहीं मानते। मैं सेकूलर सम्प्रदायवालों से पूछना चाहता हूँ कि जैसा सलूक कश्मीर के मुस्लिम बहुसंख्यकों ने वहाँ के हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ किया है, यदि वैसा ही सलूक देश भर के हिन्दू बहुसंख्यक यहाँ के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ करें, तो उसको वे किस आधार पर गलत ठहरायेंगे?

3. सेकूलर सम्प्रदाय का एक और शौक है- नक्सलवादी हिंसा का समर्थन करना और नक्सलवादियों के मानवाधिकारों की पैरवी करना। बड़े-बड़े सेकूलर कुबुद्धिजीवी नक्सलवादियों की हिंसा का समर्थन यह कहकर करते हैं कि वे वंचित या आदिवासी समुदाय की लड़ाई लड़ रहे हैं, क्योंकि वहाँ पर्याप्त विकास नहीं हुआ है। परन्तु वे यह नहीं बताते कि सरकारी विकास योजनाओं को रोककर और सरकारी कर्मचारियों का अपहरण और हत्या करने से यह विकास कैसे होगा? यदि नक्सलवादियों की हिंसा उचित है, तो वे सरकारी हिंसा को गलत कैसे ठहरा सकते हैं। जब भी कोई नक्सलवादी हत्यारा नेता किसी पुलिस कार्यवाही में मारा जाता है, तो तथाकथित मानवाधिकार संगठन उसकी पैरवी में जमीन-आसमान एक कर देते हैं। लेकिन जब नक्सलवादियों द्वारा किये गये हमलों में या उनकी बारूदी सुरंगों के फटने से दर्जनों पुलिसवाले या सैनिक मारे जाते हैं, तो इनके मुँह से सांत्वना का एक शब्द भी नहीं निकलता। वास्तव में ये तथाकथित मानवाधिकारवादी अपनी करतूतों में इतना दोगलापन दिखाते हैं कि अब कोई भी इनकी बात को गंभीरता से नहीं लेता। अपनी इस दयनीय छवि के लिए यह सेकूलर सम्प्रदाय स्वयं ही जिम्मेदार है।

(जारी)

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