Monday 21 January 2013
लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मृत्यु
लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसे कांग्रेसी नेता थे, जो अत्यन्त साधारण परिवार में पैदा हुए थे। शिशुपन में ही उनके पिता का देहान्त हो गया था, लेकिन अपने परिश्रम और योग्यता के बल पर वे भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुँच गये थे। कांग्रेस के जिन गिने-चुने नेताओं का मैं अत्यन्त आदर करता हूँ, उनमें डा. राजेन्द्र प्रसाद के बाद शास्त्री जी का ही नाम आता है। नेहरू की मृत्यु के बाद जब 9 जून 1964 को शास्त्री जी को भारत का प्रधानमंत्री चुना गया, तो शीघ्र ही उन्हें पाकिस्तान के आक्रमण का सामना करना पड़ा।
भारत 1962 में चीन से युद्ध लड़ चुका था और नेहरू की पंचशीली मूर्खता के कारण बुरी तरह पराजित और अपमानित हुआ था। जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने तो पाकिस्तान ने सोचा कि इस समय भारत कमजोर है और उसे सरलता से पराजित किया जा सकता है। इसलिए सितम्बर 1965 में उसने भारत पर आक्रमण कर दिया। लेकिन उस समय देश को नेहरू जैसा अयोग्य प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि शास्त्री जी जैसा योग्य और प्रखर देशभक्त प्रधानमंत्री मिला हुआ था। शास्त्री जी ने उचित रूप में अपने देश और सेना का मार्गदर्शन किया, ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया और उनके द्वारा दी गयी प्रेरणा के बल पर ही भारत ने पाकिस्तान को दूसरी बार धूल चटा दी।
इस युद्ध के बाद शान्ति और समझौते की बातें होने लगीं। रूस नेहरू के समय से ही भारत का मित्र था और उस समय रूस में अलेक्सेई कोसीगिन का शासन था। रूस ने अपनी मित्रता का फायदा उठाते हुए भारत पर पाकिस्तान के साथ शान्ति समझौता करने का सुझाव दिया। प्रारम्भ में शास्त्री जी इसके लिए अनिच्छुक थे, लेकिन कांग्रेस के कई वामपंथी नेताओं द्वारा दबाब डालने पर वे शान्ति समझौते के लिए सहमत हो गये। रूस ने अपने शहर ताशकन्द में शास्त्री जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खाँ की मुलाकात की व्यवस्था की। 10 जनवरी 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुए। अगली ही सुबह अर्थात् 11 जनवरी को शास्त्री जी अपने बिस्तर पर मृत पाये गये। कहा गया कि देर रात्रि को उन्हें हृदयाघात हुआ, जो घातक सिद्ध हुआ।
लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने कभी इस बात पर विश्वास नहीं किया। मृत्यु के बाद शास्त्री जी का शरीर नीला पड़ गया था, जिससे इस बात का स्पष्ट पता चलता है कि उनको जहर दिया गया था। वास्तव में एक रूसी रसोइये को इस आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन शीघ्र ही उसे रहस्यमय तरीके से रिहा कर दिया गया। शास्त्री जी के शव का रूस में पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया, जो कि एक अनिवार्य प्रक्रिया है।
सन् 2009 में एक पत्रकार अनुज धर ने सूचना के अधिकार के अन्तर्गत प्रधानमंत्री कार्यालय से शास्त्री जी की मृत्यु का कारण सार्वजनिक करने का अनुरोध किया था। इसके उत्तर में प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्वीकार किया कि उनके पास शास्त्री जी की मृत्यु से सम्बंधित एक दस्तावेज है, परन्तु उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, क्योंकि उससे भारत के विदेशों से सम्बंध खराब हो सकते हैं। सरकार ने यह तो स्वीकार किया कि रूस में शास्त्री जी का पोस्टमार्टम नहीं किया गया था, परन्तु इस बात का जबाब आज तक नहीं मिला है कि भारत में शास्त्री जी के शव का पोस्टमार्टम हुआ था कि नहीं।
अब सवाल उठता है कि शास्त्रीजी की मृत्यु को इतना रहस्यमय क्यों बनाया गया है। यदि वास्तव में उनका देहान्त दिल के दौरे से हुआ था, तो उसमें छिपाने की क्या बात है? वह कौन सी बात है जिसके सामने आने से भारत के सम्बंध किसी मित्र देश से बिगड़ सकते हैं? लाख टके का सवाल यह है कि शास्त्री जी की मृत्यु में किसकी रुचि हो सकती है? पाकिस्तान को तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन उसके अलावा ताशकन्द में केवल रूस ही उपस्थित था। तो क्या रूस चाहता था कि शास्त्री जी अपने देश जीवित न लौट सकें? यदि हाँ, तो क्यों? ये ऐसे सवाल हैं जिनके उत्तर देशवासी आज भी चाहते हैं।
कई लोगों का कहना है कि शास्त्रीजी प्रखर देशभक्त होने के कारण रूस की धोंस में नहीं आते थे, जैसा कि नेहरू आया करते थे। इसलिए रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी ने किसी भारतीय नेता या परिवार के इशारे पर शास्त्री जी को रास्ते से हटा दिया और उस नेता या परिवार के शासन के लिए रास्ता खोल दिया। इन आरोपों की सच्चाई तो गहरी जाँच के बाद ही सामने आ सकती है। परन्तु खेद है कि हमारी सरकार उन दस्तावेजों पर कुंडली मारकर बैठी है, जिनसे शास्त्री जी की मृत्यु की सच्चाई का पता लग सकता है।
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