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Tuesday 22 January 2013

हिन्दू संस्कृति की महानता : करवा चौथ


आज करवा चौथ है। आज करोड़ों माताओं और बहनों ने अपने-अपने पति, मंगेतर अथवा प्रेमी के कल्याण और दीर्घ जीवन के लिए निर्जल व्रत रखा है। वे रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन करके और उसको अघ्र्य देकर ही अन्न-जल ग्रहण करेंगी। इस पर्व में हमें भारतीय या हिन्दू संस्कृति की महानता की चरमसीमा दृष्टिगोचर होती है। जो महिला अपना पूरा जीवन पति और उसके परिवार की सेवा में होम कर देती है, वह उसी के कल्याण के लिए यह कष्ट भी सहन करती है। दूसरी संस्कृतियों में ऐसी परम्पराएँ नहीं हैं।

कई आलोचक कह सकते हैं कि यह अन्धविश्वास है कि निर्जल व्रत रखने से किसी की आयु बढ़ जाती है। मेरा कहना है कि भले ही यह अन्धविश्वास हो, लेकिन इसके पीछे जो भावना और श्रद्धा है, वह सच्ची है। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि यह व्रत वे अपने पति के लिए नहीं बल्कि अपने कल्याण के लिए रखती हैं, क्योंकि पति के जीवन पर ही उसका जीवन टिका हुआ है। हो सकता है, यह बात सत्य हो, लेकिन यह तो सभी समुदायों और संस्कृतियों के लिए सत्य है, फिर वे सब क्यों नहीं ऐसा व्रत रखतीं?

पाश्चात्य संस्कृति में ऐसी किसी भावना के दर्शन नहीं होते। जो भारतीय परिवार पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हैं वे भी इस व्रत को या तो रखते ही नहीं या तोड़-मरोड़कर अपनी ही मर्जी से रखते हैं। उनके लिए ‘पतिव्रता’ का अर्थ यह है- जो पति से व्रत करवाये। काका हाथरसी ने भी अपने एक हास्य दोहे में कहा है-
पति बेचारा व्रत करे, आप ठूँसकर खाय।
पतिव्रता वह नारि है, पति से पहले खाय।।

यहाँ मुझे करवा चौथ के बारे में एक दोहा याद आ रहा है, जो हमें हमारे जूनियर हाईस्कूल के प्रधानाचार्य स्व. श्री रती राम शर्मा ने हिन्दी अपठित के रूप में तब पढ़ाया था, जब मैं कक्षा 7 में पढ़ा करता था। वह दोहा इस प्रकार है-
तू रहि री हौं ही लखौं, चढ़नि अटा ससि बाल।
बिन ही ऊगे ससि समुझि दइहैं अर्घ अकाल।।

यह दोहा ब्रजभाषा में है। इसका अर्थ इस प्रकार है- "करवा चौथ के दिन एक महिला दूसरी महिला से कह रही है कि अरी, तू रहने दे, मैं ही छत पर चढ़कर देख लूँगी कि चन्द्रमा निकल आया कि नहीं, क्योंकि अगर तू चढ़ेगी और चन्द्रमा नहीं निकला होगा, तो दूसरी महिलायें तेरे चेहरे को ही चन्द्रमा समझकर असमय ही अर्घ्य दे डालेंगी और उनका व्रत खंडित हो जाएगा।"

देख लीजिए, कितनी सुन्दर भावना है, सौंदर्य का कितना निर्दोष वर्णन है। कोई काव्य मर्मज्ञ बता सकता है कि इस अकेले दोहे में कितने अलंकार एक साथ उपस्थित हैं। आश्चर्य है कि 40 वर्ष बाद आज भी मुझे यह दोहा पूरी तरह कंठस्थ है।

मैं करवा चौथ का व्रत रखने वाली माताओं और बहनों को करबद्ध प्रणाम करता हूँ और उनकी मनोकामनापूर्ण करने के लिए प्रभु से प्रार्थना करता हूँ।

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