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Monday 21 January 2013

देश का दुश्मन है सेकूलर सम्प्रदाय - 3


सेकूलर सम्प्रदाय का एक अन्य आपत्तिजनक प्रयास यह रहता है कि बहुसंख्यक अर्थात् हिन्दू समाज का अधिक से अधिक अपमान किया जाये और अल्पसंख्यक अर्थात् मुस्लिम समाज का अधिक से अधिक तुष्टीकरण किया जाये, ताकि देश के ये दोनों समुदाय कभी मिलकर एक साथ न आयें। इसके लिए वे तमाम ऐसे कार्य करते हैं, जिनसे या तो हिन्दू समाज में क्षोभ की लहर फैल जाये या मुस्लिम समाज में असन्तोष पैदा हो जाए। इसके लिए वे समय-समय पर दोनों समुदायों को उकसाते रहते हैं या उकसाने वाली हरकतें करते रहते हैं।
अगर कोई व्यक्ति या संगठन इन दोनों समाजों में परस्पर सद्भावना बनाने का प्रयास भी करता है, तो उस प्रयास को पलीता लगाने के लिए सेकूलर सम्प्रदाय के लोग एक दम सक्रिय हो जाते हैं। वे यह जानते हैं कि यदि देश के ये दो प्रमुख समुदाय एक साथ आ गये और इनमें परस्पर सद्भाव पैदा हो गया, तो उनकी सेकूलर दुकान एक दम ठप्प ही हो जाएगी और सेकूलरटी के नाम पर उनको मिलने वाली मलाई रुक जाएगी। कभी गोहत्या करके तो कभी किसी कब्र या मजार के बहाने, कभी उर्दू तो कभी आरक्षण के नाम पर ये दोनों समुदायों को लड़ाते रहते हैं और अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं।
इतना ही नहीं वे इस्लामी आतंकवादियों को महिमामंडित भी करते हैं और उनको मासूम साबित करने की कोशिश करते हैं। इससे आतंकवाद से पीड़ित समाज क्षुब्ध होता है। अपनी करतूतों से धीरे-धीरे वे दोनों समुदायों के बीच की खाई को इतना चैड़ा कर देते हैं कि किसी दिन मामूली बात पर गुबार फूट पड़ता है और दंगा हो जाता है। उदाहरण के लिए, अभी हाल ही में कोसीकलां में मामूली बात पर दंगा हो गया। केवल हाथ धोने पर बर्तनों पर कुछ छींटे पड़ जाने पर ही दोनों समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे बनकर सड़कों पर आ गये। कई जानें गयीं और दर्जनों लोग घायल हुए। इस तरह के उदाहरण बिरले नहीं बल्कि आम हैं। प्रत्येक दंगे के मूल में एक मामूली बात ही होती है, जिसके बहाने लम्बे समय से दबे हुए गुबार फूट जाते हैं।
इन दंगों में सेकूलर सम्प्रदाय के लोग सीधे भले ही भाग न लेते हों, परन्तु भूमिका उन्हीं की बनायी हुई होती है। जिन दिनों दंगे नहीं होते, उन दिनों वे ऐसी हरकतें करते रहते हैं कि दंगों का आधार तैयार हो जाये और किसी दिन उपद्रव फूट पड़े। इस प्रकार सेकूलर सम्प्रदाय को ”शान्तिकाल के दंगाई“ कहा जा सकता है। ये दंगाई चाहते ही नहीं कि इस देश में सभी समुदाय शान्तिपूर्वक रहें। इसीलिए मैं इनको देश के दुश्मन कहता हूँ।
दुःख की बात तो यह है कि देश का अधिकांश मुस्लिम समाज इन तत्वों की बातों में आ जाता है। वे हिन्दू समाज का अपमान होने पर खुश होते हैं और यह नहीं सोचते कि बहुसंख्यक समाज का अपमान करने पर प्रसन्न होने वाला अल्पसंख्यक समाज कभी उनकी सद्भावना नहीं जीत सकता। एक बार संघ की अ.भा. कार्यकारिणी ने एक प्रस्ताव पास करके कहा था कि अल्पसंख्यक समाज की सुरक्षा बहुसंख्यक समाज के साथ उसकी सद्भावना पर ही निर्भर है। यह एक ध्रुव सत्य है। परन्तु सेकूलर सम्प्रदाय के लोगों ने इस पर सबसे अधिक हायतौबा मचाई थी और इसे मुस्लिम समुदाय के सामने इस प्रकार प्रस्तुत किया था, मानो संघ ने उनको धमकाया हो।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जब तक देश का अल्पसंख्यक समुदाय उनको भड़काकर अपना उल्लू सीधा करने वाले सेकूलर सम्प्रदाय से बचकर नहीं रहेगा, तब तक इस देश का पूर्ण विकास नहीं होगा और देश साम्प्रदायिकता की समस्या से पीड़ित बना रहेगा।

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