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Monday 21 January 2013

नाम में क्या रखा है?


अपना और अपने पूर्वजों का नाम सबको प्रिय होता है। हमें अपने महापुरुषों और बलिदानियों के नाम के प्रति भी मोह होता है। सभी चाहते हैं कि हमारे पूर्वजों की स्मृति चिरस्थायी हो। इसलिए हमारी सरकारें विभिन्न वस्तुओं, जैसे संस्थानों, सड़कों, पार्कों, मोहल्लों, जिलों आदि का नामकरण महापुरुषों के नाम पर करती हैं। ऐसा करना पूरी तरह उचित है, लेकिन खेद है कि नामकरण करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि जनसामान्य के लिए उस नाम का उच्चारण करना सम्भव भी होगा या नहीं और कहीं उसका भ्रष्ट उच्चारण तो नहीं किया जाएगा। इसको समझने के लिए कुछ उदाहरण देना उचित होगा-
1. भोपाल में एक प्रसिद्ध मोहल्ला है, जिसका पूरा नाम है तात्या टोपे नगर। अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है कि इस नगर का नामकरण महान् स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के नाम पर किया गया है। वहाँ संक्षेप में इसे टी.टी. नगर कहा जाता है। साधारण लोग समझते हैं कि उसमें रेलवे के टीटीई रहते होंगे। यह गलती सरकार की मूर्खता के कारण होती है। यदि नगर का नाम केवल ‘तात्या नगर’ या केवल ‘टोपे नगर’ किया गया होता, तो यह गलती न होती।
2. पंजाब सरकार ने कुछ समय पूर्व मोहाली को पटियाला जिले से अलग करके एक नया जिला बनाया है। उसका नाम रखा गया है ‘साहबजादा अजित सिंह नगर’। इसका संक्षेप होता है ‘एस.ए.एस. नगर’। सभी सरकारी कार्यालयों में जिले के पूरे नाम के बजाय ये संक्षेपाक्षर ही लिखे जाते हैं। इसको गलती से ‘सास नगर’ पढ़ा जाता है, जो कि स्वाभाविक ही है। यदि सरकार ने इस जिले का नाम केवल ‘अजित नगर’ रखा होता, तो यह अनर्थ न होता।
3. मायावती की सरकार ने आगरा विश्वविद्यालय का नाम बदलकर ‘भीम राव अम्बेडकर विश्वविद्यालय’ रखा था। इसके संक्षेपाक्षर ‘बी.आर.ए.’ बनते हैं। इसे व्यंग्यपूर्वक ‘ब्रा’ पढ़ा जाता है, जो महिलाओं के एक अन्तःवस्त्र का नाम है। सारे छात्र इस वि.वि. को बोलचाल में ‘ब्रा यूनीवर्सिटी’ कहते हैं, जो अत्यन्त अशोभनीय लगता है। यदि वि.वि. का नाम केवल ‘भीमराव विश्वविद्यालय’ किया गया होता, तो यह स्थिति उत्पन्न न होती।
4. कानपुर में चिकित्सा महाविद्यालय से जुड़ा हुआ एक प्रसिद्ध अस्पताल है, जिसका सरकारी नाम है लाला लाजपत राय अस्पताल। लेकिन यह नाम बहुत लम्बा होने के कारण जनसामान्य की जीभ पर नहीं चढ़ सका और आज भी उस अस्पताल को इसके पुराने ‘हैलट अस्पताल’ के नाम से पुकारा जाता है। यदि इसका नाम केवल ‘लाजपत अस्पताल’ होता, तो पुराना नाम कोई नहीं लेता। इस अस्पताल के पास ही एक ‘लाजपत भवन’ नामक प्रसिद्ध सभागार है। उसको सभी लोग लाजपत भवन ही कहते हैं, कोई हैलट भवन नहीं कहता।
5. मायावती की सरकार ने कई पार्कों आदि का नामकरण बसपा संस्थापक कांशीराम के नाम पर किया है। उन्होंने सरकारी तौर पर इन सभी के नाम ‘मान्यवर श्री कांशीराम जी’ शब्दों से प्रारम्भ किये हैं। आश्चर्य है कि ऐसा नामकरण करने वाले मूर्खाधिराजों को यह पता नहीं है कि कोई भी व्यक्ति इतने लम्बे नाम का उच्चारण नहीं कर सकता। वे अधिक से अधिक केवल एक शब्द का उच्चारण कर सकते हैं- ‘कांशीराम’ और ऐसा करते भी हैं।
ये उदाहरण बिरले नहीं हैं, बल्कि ऐसे अनेक उदाहरण रोज ही नजर आते हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि किसी सार्वजनिक स्थल का नामकरण करते समय हमें बहुत सावधानी रखने की आवश्यकता है। नाम जितना छोटा हो, उतना ही अच्छा रहता है।

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