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Tuesday 22 January 2013

गड़रियों के गीतों का रहस्य


वेदों में एक जगह कुछ इस प्रकार की ऋचायें हैं, जिनमें कहा गया है- ‘मेंढ़क देवता हमें समृद्धि प्रदान करें।’, ‘मेंढ़कों की आवाजें हमारे कानों में मधुर रस घोलें।’, ‘मेंढ़क देवताओं के दर्शनों से हमारे मन प्रफुल्लित हों।’ आदि-आदि। इनमें मेंढ़कों को देवता मानकर उनकी वन्दना की गयी है।

कई विदेशी विद्वानों ने इस ऋचाओं का बहुत मजाक बनाया है। वे कहते हैं कि आर्य लोग गड़रिये थे और वेदों में गड़रियों के गीत हैं। वे गाय चराने जंगलों में जाया करते थे। वहीं किसी तालाब के किनारे बैठकर गप्पें मारते होंगे। तालाब में टर्राने वाले मेंढ़कों की टर्राहट में ही उन्हें संगीत का आनन्द आता होगा। इसलिए ऐसे गीत बना दिये हैं। हा.....हा.....हा.....

बहुत से पश्चिमपरस्त भारतीय विद्वान भी इन बातों से सहमत हो जाते थे, क्योंकि उन्हें इन गीतों का रहस्य मालूम नहीं था। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन गीतों का रहस्य खुला।

हुआ यह कि एक बार अमेरिका की सरकार ने केरल प्रान्त की सरकार से कहा कि हमें अपनी प्रयोगशालाओं के लिए मेंढ़कों की बहुत आवश्यकता होती है और आपके यहाँ मेंढ़क बहुत हैं। इसलिए आप हमें मेंढ़क सप्लाई कीजिए, हम आपको इसके बदले में विदेशी मुद्रा देंगे। केरल की सरकार इस बात से तुरन्त सहमत हो गयी और मेंढ़कों का निर्यात शुरू कर दिया।

लेकिन जिस वर्ष मेंढ़कों का निर्यात किया गया, उसके अगले वर्ष धान आदि की फसल कम हुई। सरकार समझ नहीं पायी कि फसलों में उत्पादन कम क्यों हुआ है। इसलिए मेंढ़कों का निर्यात जारी रहा और उसके अगले वर्ष फसलों में उत्पादन और भी कम हुआ। जब लगातार तीसरे वर्ष उत्पादन और अधिक गिर गया, जबकि मौसम आदि सभी परिस्थितियाँ अनुकूल थीं, तो सरकार का माथा ठनका। उसने अन्न उत्पादन कम होने के कारणों का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन कर दिया।

जब उस समिति की रिपोर्ट आयी, तो सबकी आँखें आश्चर्य से फटी रह गयीं। रिपोर्ट में बताया गया था कि मेंढ़कों के निर्यात के कारण ही फसलों में अन्न उत्पादन कम हुआ है। इसका विश्लेषण करते हुए बताया गया था कि मेंढ़क फसलों को खराब करने वाले हानिकारक कीट-पतंगों को खा जाते हैं, जिससे फसलों में रोग नहीं फैलते। फिर मेंढ़क स्वयं साँपों का भोजन बनते हैं। मेंढ़कों के लालच में साँप खेतों में आ जाते हैं, जिनके डर से चूहे खेतों से भाग जाते हैं। इस तरह मेंढ़क फसल में अन्न का दाना आने से पहले हानिकारक कीट-पतंगों से और दाना आने के बाद उनको खा जाने वाले चूहों से भी फसल की रक्षा का कारण बनते हैं। जब मेंढ़कों का बड़ी संख्या में निर्यात किया गया, तो कीट-पतंग बड़ी संख्या में हो गये और साँप भी कम हो गये, जिससे चूहों की बन आयी। इन्हीं सब कारणों ने मिलकर फसल खराब कर दी।

यह रिपोर्ट पढ़कर लोगों की आँखें खुलीं और वेदों के इन गीतों का रहस्य स्पष्ट हो गया। यह भी स्पष्ट हो गया कि हमारे महान् पूर्वज कितने दूरदर्शी थे।

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