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Tuesday 22 January 2013

गोधरा नरसंहार-2


पिछली कड़ी में मैं लिख चुका हूँ कि सेकूलर कहलानेवाले दलों और व्यक्तियों ने न केवल गोधरा नरसंहार को मामूली बताने की चेष्टा की, बल्कि उसे बाबरी मस्जिद गिराये जाने की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताकर उचित ठहराने की कोशिश भी की। यह हिन्दुओं के जले पर नमक छिड़कने की तरह था। इस मूर्खता का जो परिणाम होना था, वही हुआ। पूरे गुजरात में इसकी प्रतिक्रिया बहुत उग्र रूप में सामने आयी और प्रदेश भर में हुई हिंसक घटनाओं में लगभग 2000 व्यक्ति मारे गये।

इस नरसंहार और उसके बाद हुए दंगों के समय गुजरात में नरेन्द्र मोदी की सरकार थी, जो आज भी है। मोदी जी की सरकार ने अपने स्तर पर दंगों को रोकने की पूरी कोशिश की, परन्तु जन आक्रोश के आगे सरकार की शक्ति की भी सीमायें होती हैं। इसलिए दंगे समाप्त होते-होते दो हजार से अधिक व्यक्ति मारे गये, जिनमें अधिकांश मुसलमान और बहुत से हिन्दू भी थे।

दंगे हमारे देश में पहले भी होते आये हैं और आज भी होते हैं, लेकिन हर बार यह देखा जाता है कि दंगों की शुरूआत मुसलमानों की ओर से होती है, जिनमें हिन्दुओं की बहुत जन-धन की हानि होती है। बाद में पुलिस सक्रिय होती है और दंगाई मुसलमान मारे जाते हैं। स्वतंत्रता के बाद हुए लगभग हर दंगे की यही कहानी है। लेकिन गुजरात में पहली बार ऐसा हुआ कि दंगों की शुरूआत हिन्दुओं की तरफ से हुई और मुसलमानों की अधिक जन-धन की हानि हुई। जब पुलिस सक्रिय हो गयी, तो हिन्दू भी मारे गये। इसी कारण गुजरात के दंगों को अभूतपूर्व कहा जाता है।

परन्तु जो सेकूलर दल और नेता कभी मुसलमानों द्वारा दंगे प्रारम्भ करने से और हिन्दुओं की अधिक हानि से परेशान नहीं हुए, वे इस बार उल्टा होने से बहुत विचलित हो गये। उनकी दृष्टि में हिन्दू केवल मार खाने और सब्र करने के लिए होते हैं। यह उनके लिए अकल्पनीय था कि हिन्दू भी अब इस रूप में प्रतिक्रिया करने लगे हैं। गाँधी ने कभी कहा था कि आम मुसलमान गुंडा और आम हिन्दू कायर होता है। अगर दोनों की छवि इसी रूप में बनी रहती, तो वे तथाकथित गाँधीवादी संतुष्ट बने रहते, परन्तु इस छवि के विपरीत कुछ होना उनके लिए बड़ा आघात था।

उन्होंने इन दंगों का सारा दोष मोदी जी की सरकार पर डाल दिया। उनका कहना था कि मोदी जी की सरकार ने हिन्दू दंगाइयों को नहीं रोका जिससे मुसलमान अधिक मारे गये। यही वह अवसर था जब केन्द्र सरकार में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी जी को ‘राजधर्म’ निभाने की सलाह दी थी। हालांकि कभी अटल जी ने यह नहीं कहा कि मोदी जी ने अपना राजधर्म नहीं निभाया। ऐसा मानने का कोई कारण ही नहीं है। लेकिन सेकूलर सम्प्रदाय के लोग अटल जी की इस सलाह को ही पकड़कर बैठ गये और मोदी जी को बदनाम करने की भरसक कोशिश की और उसमें काफी हद तक सफल भी हुए।

वे यह भूल जाते हैं कि किसी भी सरकार के लिए दंगों को तत्काल रोकना असम्भव होता है। 1984 में सिख विरोधी दंगे हुए, जिनमें तीन दिनों में लगभग 5 हजार सिख भाई मारे गये। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने उनको यह कहकर सही ठहराने की कोशिश की कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। मोदी जी ने तो गुजरात दंगों को कभी सही ठहराने की कोशिश नहीं की। लेकिन किसी ने भी राजीव गाँधी को इसके लिए ‘मौत का सौदागर’ नहीं कहा, जैसा कि मोदी जी को कहा गया। कहावत है कि ‘बद अच्छा बदनाम बुरा।’ इसलिए मोदी जी की छवि को जो नुकसान होना था, वह हो गया।

मोदी जी की गलत छवि का 2004 के लोकसभा चुनावों में जमकर प्रचार किया गया, जिसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा। पूरे देश के मुसलमानों ने एक जुट होकर कांग्रेस को वोट दिया। उनके साथ ‘सेकूलर’ हिन्दुओं और बंगलादेशी घुसपैठियों के वोटों ने मिलकर भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया।

कांग्रेस की सरकार आने पर तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने एक पूर्व न्यायाधीश उमेश चन्द्र बनर्जी की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति ‘गोधरा में रेल डिब्बे में आग लगने’ की जाँच के लिए बैठायी और उस समिति ने बड़ी तेजी से ‘जाँच’ करके अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें कहा गया था कि आग दुर्घटनावश लगी थी यानी मुसलमानों की भीड़ ने नहीं लगायी थी। इस हास्यास्पद रिपोर्ट को बाद में गुजरात हाईकोर्ट ने पूरी तरह अस्वीकार्य बताया और उस समिति को भी असंवैधानिक ठहराया जिसने यह रिपोर्ट दी थी। इतना ही नहीं हाई कोर्ट ने इस समिति के गठन को भी गलत उद्देश्यों के लिए सत्ता का दुरुपयोग बताया। लेकिन सेकूलर सम्प्रदाय वाले इस बात की चर्चा भी नहीं करते।

गुजरात के दंगों की जाँच भी हुई है और कई लोगों को उन दंगों के लिए दंड भी दिया गया है। लेकिन हमारे देश के सेकूलर आज भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि ये दंगे गोधरा के नरसंहार की प्रतिक्रिया में स्वतःस्फूर्त थे। वे आज भी मोदी जी को इन दंगों का योजनाकार बताते हैं, हालांकि यही पैमाना वे अन्य राज्यों के उन मुख्यमंत्रियों पर लागू नहीं करते, जिनके राज्य में साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं।

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