Pages

Tuesday 22 January 2013

आडवाणी की रथ यात्रा और वी.पी. सिंह का पतन


राम जन्मभूमि मन्दिर आन्दोलन 1981 से चल रहा था। 1988 तक यह पूरी तरह विश्व हिन्दू परिषद के हाथ में था। संघ परिवार के बहुत से कार्यकर्ताओं का इसको सक्रिय समर्थन था, भाजपा इसमें कहीं नहीं थी। लेकिन जब यह आन्दोलन जोर पकड़ गया और कार्यकर्ताओं का दबाव बढ़ा, तो भाजपा ने इसका राजनैतिक लाभ उठाने के लिए इस आन्दोलन को पूर्ण समर्थन देना तय कर लिया। भाजपा जैसी राष्ट्रवादी पार्टी का इससे अलग बने रहना लगभग असम्भव ही था। परन्तु अभी तक जो समर्थन पीछे से दिया जा रहा था, वह एकदम खुलकर सामने आ गया और एक प्रकार से इस आन्दोलन की कमान विश्व हिन्दू परिषद के साथ-साथ भाजपा ने अपने हाथ में ले ली।

राम मन्दिर के पक्ष में वातावरण बनाने और जन्मभूमि हेतु सरकार पर दबाव बनाने के लिए भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने 25 सितम्बर 1990 को सोमनाथ से अपनी ‘राम रथ यात्रा’ प्रारम्भ की, जिसे देशभर के अनेक भागों में घूमते हुए 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुँचना था, परन्तु लालू प्रसाद यादव ने बिहार में ही इसको रोक दिया। इस पर भाजपा ने वी.पी. सिंह की सरकार को दिया जा रहा समर्थन वापस ले लिया, क्योंकि लालू ने यह कार्यवाही वी.पी. सिंह की सलाह पर ही की थी।

उस समय वी.पी. सिंह को लोकसभा के बहुमत का समर्थन नहीं रह गया था, फिर भी उन्होंने अपना त्यागपत्र देने के बजाय लोकसभा में विश्वास मत लेने की कोशिश करना अधिक अच्छा समझा। विश्वास मत पर बहस के दौरान अडवाणी जी ने अपना ऐतिहासिक वक्तव्य दिया, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि वी.पी. सिंह किस प्रकार भाजपा के साथ दोहरा खेल खेल रहे थे। इस विश्वास मत में वी.पी. सिंह की बुरी तरह हार हुई। उनके पक्ष में जनता दल के गिने-चुने सदस्यों के अलावा केवल कम्यूनिस्ट पार्टियों ने वोट दिये थे, जिनको वी.पी. सिंह अपना ‘स्वाभाविक साथी’ बताया करते थे। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है, क्योंकि कम्यूनिस्ट ही उनके स्वाभाविक साथी हो सकते हैं।

इधर वी.पी. सिंह की सरकार गिर रही थी, उधर अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा था। देश भर के कारसेवक राम जन्मभूमि के उस भाग में कारसेवा करना चाहते थे, जो पहले ही उनके स्वामित्व में था और जहाँ पहले शिलान्यास भी हो चुका था। परन्तु उ.प्र. में उस समय मुल्ला-यम सिंह यादव की सरकार थी, जिसकी मुस्लिमपरस्ती जगजाहिर है। उसने गर्वोक्ति की थी कि ‘अयोध्या में परिन्दा भी पर नहीं मार सकता।’ लेकिन उसके तमाम इन्तजामों को धता बताते हुए लाखों कारसेवक चारों ओर से अयोध्या में प्रकट हो गये और उनमें से कुछ ने बाबरी ढाँचे पर भगवा ध्वज लहरा दिया।

अपनी खीझ मिटाने के लिए मुल्ला-यम की पुलिस ने 2 नवम्बर 1990 को उन निहत्थे रामभक्तों पर निर्दयता से गोलियाँ बरसाईं, जो कारसेवा करने के लिए चल पड़े थे। इस गोली वर्षा में सैकड़ों रामभक्तों ने अपने प्राण दे दिये, जिनमें ‘राम कोठारी’ और ‘शरद कोठारी’ नाम के दो सगे भाई भी शामिल थे। यह एक ऐसा जघन्य कृत्य था जिसकी जितनी भी निन्दा की जाये कम है। पूरे संसार के इतिहास में ऐसा और कोई उदाहरण नहीं मिलता। सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि यह क्रूर कार्य मुल्ला-यम ने केवल मुसलमानों को खुश करने के लिए किया था। कितनी बिडम्बना है कि एक अल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यक समुदाय के निहत्थे नागरिकों पर गोली वर्षा से प्रसन्न होता है। मुल्ला-यम के इस कृत्य ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की तमाम सम्भावनाओं को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया, भले ही हम उसको पुनर्जीवित करने  का कितना भी प्रयास कर लें।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अभी तक मुल्ला-यम की सरकार भाजपा के बाहरी समर्थन पर चल रही थी। लेकिन गोली वर्षा के बाद भाजपा ने भी अपना समर्थन वापस ले लिया और वह सरकार कांग्रेस के बाहरी समर्थन पर चलने लगी। लेकिन रामभक्तों की जघन्य हत्या के कारण मुल्ला-यम की सरकार इतनी बदनाम हो गयी थी कि कांग्रेस को भी अपना समर्थन वापस लेना पड़ा।

इधर केन्द्र में वी.पी. सिंह की सरकार गिरने के बाद जनता दल बिखर गया और उसके 64 सदस्यों ने अलग होकर समाजवादी जनता पार्टी बनायी, जिसके नेता चन्द्रशेखर थे। कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चन्द्रशेखर किस प्रकार प्रधानमंत्री बने और किस तरह गद्दी से उतरे, इसकी कहानी अलग लेख में।

पाद टीप - कुछ 'सज्जन' मेरे ब्लॉग की किसी बात पर पूरा ब्लॉग लिख डालते हैं और सवाल उठाते हैं, जिनमें कई बार फालतू किस्म के सवाल भी होते हैं. वे यह उम्मीद करते हैं कि मैं उनके ब्लॉग पर आकर उनके सवालों का जबाब दूंगा. ऐसे सज्जन नोट करें कि मैं केवल अपने ही ब्लॉग पर आये सवालों का जबाब दे सकता हूँ. जिनको जो पूछना हो यहाँ आकर पूछ सकते हैं. फालतू ब्लोगों पर जाकर जबाब देने का समय मेरे पास नहीं है. 

No comments:

Post a Comment