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Tuesday 22 January 2013

24 साल बाद बुद्ध फिर मुस्कराये


18 मई 1974 को इन्दिरा गाँधी की सरकार के समय में भारत ने राजस्थान के रेगिस्तान के पोखरण क्षेत्र में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था, जिसने दुनिया को दिखा दिया था कि भारतीय वैज्ञानिक भी प्रतिभा में किसी से कम नहीं हैं। उस समय देश की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर थी। हमारी अर्थ व्यवस्था विदेशी सहायता की मोहताज थी। इसलिए परमाणु परीक्षण होते ही सारी दुनिया भारत पर लानत भेजने और हमारी गरीबी का मजाक उड़ाने लगी। इसलिए इसके बाद किसी सरकार की हिम्मत दोबारा परमाणु परीक्षण करने की नहीं हुई, हालांकि देश के वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार प्रयास करते रहे और परमाणु ऊर्जा के लिए शोधकार्य भी चलते रहे। एक बार 1995 में नरसिंह राव की सरकार ने परमाणु परीक्षण करना तय कर लिया था, लेकिन उसकी तैयारियों की भनक अमेरिका के खोजी उपग्रहों को लग गयी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारी दबाब डालकर परमाणु परीक्षण रुकवा दिया।

1996 जब अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, तो उन्होंने परमाणु परीक्षण करने की संभावनाएँ टटोली थीं। उनको बताया गया कि न्यूनतम एक माह की तैयारी के बाद ये परीक्षण किये जा सकते हैं। परन्तृ अटल जी की पहली सरकार केवल 13 दिन रही, इसलिए वे कुछ नहीं कर पाये। लेकिन जब वे दूसरी बार 28 फरवरी 1998 को बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने, तो मार्च में उन्होंने अपने वैज्ञानिकों को आदेश दिया कि जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी यह परीक्षण कर लीजिए और किसी दबाब में मत आइए। धन्य हैं हमारे वैज्ञानिक कि उन्होंने दो माह से भी कम समय में सारी तैयारियाँ पूरी कर लीं और 11 मई को तीन सफल परमाणु परीक्षण कर डाले। यही नहीं दो दिन बाद 13 मई 1998 को उन्होंने फिर दो सफल परीक्षण किये।

ये परीक्षण भारत सरकार के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार और ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ के प्रमुख डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की देख-रेख में हुए थे, जिन्होंने आगे चलकर भारत के राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया। उनके साथ परमाणु ऊर्जा आयोग के चेयरमैन डा. आर. चिदम्बरम और भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डा. अनिल काकोडकर कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहे थे। उनकी टीम में अनेक समर्पित वैज्ञानिक थे।

1974 के परीक्षणों का कूट नाम ‘बुद्ध मुस्करा रहे हैं’ रखा गया था। उसके बाद बुद्ध को दोबारा मुस्कराने में पूरे 24 साल लग गये। हालांकि 1998 के परीक्षणों का कोड नाम ‘आपरेशन शक्ति’ रखा गया था। यह नाम भी इस बात का परिचायक था कि अपनी महान् सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार हम शक्ति के उपासक हैं। हमारे ऋषियों ने कहा है- ‘बलम् उपास्य’ अर्थात् ‘बल की उपासना करो’। यह दुनिया केवल शक्ति की भाषा समझती है। ‘वीर भोग्या वसुंधरा’ के अनुसार वीर लोग ही इस संसार में प्रतिष्ठापूर्वक रह सकते हैं। निर्बलों की अहिंसा का कोई महत्व नहीं है, वह कायरता है। ‘क्षमा सोहती उस भुजंग को जिसके पास गरल है।’

यह अटल जी की राष्ट्रवादी सरकार की दूरदर्शिता और कार्यकुशलता ही कही जायेगी कि पूरे 2 माह तक इस परीक्षण की तैयारियाँ खुले रेगिस्तान में चलती रहीं, लेकिन आसमान से गिद्ध दृष्टि लगाये हुए अमेरिका और चीन तक के जासूसी उपग्रहों को उनकी हवा तक नहीं लगी। जब इस परीक्षण का समाचार संसार को मिला, तो सारा संसार सकते में आ गया। वहीं समस्त भारतवासियों का सीना गर्व से फूल गया और विदेशों में रहने वाले भारतवंशी भी अपना सिर ऊँचा करके चलने लगे। कुख्यात सी.आई.ए. और के.जी.बी. जैसी जासूसी संस्थाएँ हाथ मलती रह गयीं। भारत में केवल इस्लामी आतंकवाद के समर्थकों और चीन के तलवे चाटने वाले कम्यूनिस्टों ने ही इन परीक्षणों की निन्दा की।

लेकिन भारत की परीक्षा की असली घड़ी इन परीक्षणों के बाद आयी। जहाँ कुछ देशों जैसे फ्रांस, रूस और इस्रायल ने भारत के इन परीक्षणों की प्रशंसा की, वहीं संसार के अनेक देशों ने, जिनमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जापान और यूरोपीय यूनियन के देश शामिल थे, भारत के साथ तकनीकी और आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग करने पर अनेक प्रतिबंध लगा दिये। इससे हमारे देश में विदेशी निवेश को गहरा झटका लगा और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भी बहुत कमी आयी, लेकिन अटल जी की सरकार की दृढ़ता के कारण भारत की अर्थव्यवस्था इन सारे झटकों को झेल गयी और देश उत्तरोत्तर प्रगति करता रहा।

इन परीक्षणों पर चीन की प्रतिक्रिया सबसे तीखी रही। हालांकि वह स्वयं दुनिया को धता बताते हुए समय-समय पर परमाणु परीक्षण करता रहता है, लेकिन भारत के परीक्षणों पर उसी ने सबसे अधिक हाय-तौबा मचाई और दो सप्ताह बाद पाकिस्तान में ऐसे ही परीक्षण कर डाले, हालांकि पाकिस्तान उनको अपनी स्वदेशी तकनीक पर आधारित बताता रहा। लेकिन चीन की हिम्मत इससे अधिक कुछ करने की नहीं हुई, क्योंकि उसकी कम्पनियों का बहुत सा माल भारत में बेचा जाता है और भारत से व्यापार सम्बंध तोड़ लेने पर उसका अपना भट्टा बैठ जाता।

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