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Monday 21 January 2013

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद-2

यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण हैं कि बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने राम जन्मभूमि पर बने हुए मन्दिर को तोड़कर उसी के मलबे से आधी-अधूरी मस्जिद बनवायी थी, जिसको कालान्तर में बाबरी मस्जिद का नाम दिया गया। हालांकि किसी मस्जिद का नाम किसी व्यक्ति के नाम पर रखना गैर-इस्लामी है, लेकिन इसे मानता कोई नहीं। मस्जिद को आधी-अधूरी इसलिए कहा है कि वहाँ न तो कोई मीनार थी, जिस पर चढ़कर मुल्ला अजान देता है, और न वजू करने के लिए पानी का कोई इन्तजाम था। वहाँ तो केवल पश्चिमी दिशा में खिंची हुई एक दीवार और दालान था, जिसकी छत में तीन गुम्बद बने हुए थे। मस्जिद का आधी-अधूरी होना अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि वह तथाकथित मस्जिद जल्दबाजी में और बिना किसी योजना के बनायी गयी थी। हमलावर प्रायः ऐसा ही करते हैं।

वहाँ पहले मन्दिर था इसका दूसरा प्रमाण यह है कि उसके चारों ओर राम और उनके परिवार से सम्बंधित कई स्थान हैं, जैसे सीता रसोई, दशरथ का भवन, कैकेयी का भवन आदि। परन्तु राम जन्म स्थान कोई नहीं है। अब यह तो असम्भव है कि वहाँ तमाम धार्मिक स्थान बना दिये जायें और राम जन्मभूमि को छोड़ दिया जाये। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 1940 से पहले बाबरी मस्जिद को ‘मस्जिद-ए-जन्मस्थान’ कहा जाता था। यह इस बात का एक और पक्का प्रमाण है कि वह मस्जिद राम जन्मभूमि माने जाने वाले स्थान पर बनी हुई थी।

बाबरी वाले अपनी मस्जिद के पक्ष में तरह-तरह के तर्क देते हैं, उन तर्कों की समीक्षा नीचे की जा रही है-

तर्क 1 - वहाँ पहले कोई मन्दिर नहीं था, बल्कि खाली जमीन थी, जिस पर बाबर ने मस्जिद बनवाने का आदेश दिया।

उत्तर- यह तर्क हास्यास्पद है, क्योंकि इसका मतलब तो यह निकलता है कि हिन्दुओं ने उस स्थान के चारों ओर अपने कई धार्मिक स्थान बना लिये और बीच में खाली जगह इसलिए छोड़ दी कि बाबर वहाँ आकर मस्जिद बनवा सके। वहाँ आसपास मुसलमानों की कोई बस्ती न तो कभी थी और न आज है। फिर बाबर जी किसके लिए और क्यों वहाँ मस्जिद बनवायेंगे?

तर्क 2 - वहाँ पहले आस-पास कोई बस्ती नहीं थी, बल्कि जंगल था। हिन्दुओं ने मस्जिद के आस-पास मन्दिर बाद में बनाये हैं।

उत्तर- यह तर्क भी हास्यास्पद है। क्या घोर जंगल में बाबर जी ने मस्जिद इसलिए बनवायी थी कि जंगली जानवरों को नमाज पढ़ने की सुविधा हो जाये?

तर्क 3- बाबरनामा में ऐसा कोई जिक्र नहीं है कि उसने वहाँ मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनवायी।

उत्तर- बाबरनामा में तो इसका भी जिक्र नहीं है कि उसने अयोध्या में कोई मस्जिद बनवायी। फिर बाबरी मस्जिद कहाँ से आ गयी? वास्तव में जिन दिनों यह मस्जिद बनवायी गयी थी, उस अवधि के बारे में बाबरनामा में कुछ नहीं लिखा है, यानी उसके वे पन्ने गायब हैं।

तर्क 4- वहाँ मन्दिर टूटा हुआ पड़ा था। उसी जमीन पर बाबरी मस्जिद बनायी गयी।

उत्तर- क्या हिन्दू इतने मूर्ख हैं कि आस-पास के मन्दिरों तथा भवनों को बना लेंगे और अपना सबसे प्रमुख मन्दिर टूटी-फूटी हालत में छोड़ देंगे, ताकि कोई हमलावर आकर वहाँ मस्जिद बनवा सके?

तर्क 5- मस्जिद को हटाया नहीं जा सकता। एक मस्जिद कयामत तक मस्जिद ही रहती है।

उत्तर- यह बात मन्दिरों के बारे में भी कही जा सकती है। जब मन्दिरों को तोड़कर मस्जिद बनायी जा सकती है, तो किसी मस्जिद को तोड़कर मन्दिर क्यों  नहीं बनाया जा सकता?

इससे स्पष्ट है कि उस तथाकथित मस्जिद के पक्ष में दिये जाने वाले सारे तर्क बेकार हैं। वास्तव में सन् 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा पुरातात्विक और ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर दिये गये फैसले में तीनों न्यायाधीशों ने स्पष्ट कहा है कि बाबरी मस्जिद किसी भव्य मन्दिर के खंडहरों पर बनी थी। उनमें से दो न्यायाधीशों ने यह भी स्पष्ट लिखा है कि उस मस्जिद को बनाने के लिए मन्दिर को तोड़ा गया था, जबकि केवल एक न्यायाधीश ने ऐसा लिखा है कि मन्दिर पहले से टूटा हुआ पड़ा था।

विश्व हिन्दू परिषद ने प्रस्ताव रखा था कि यदि मुस्लिम समाज बाबरी मस्जिद के स्थान पर से अपना दावा स्वेच्छा से छोड़ दे, तो उसके बदले में वे मुसलमानों की किसी बस्ती के पास भव्य मस्जिद अपने खर्च पर बनाकर भेंट कर देंगे। यदि इस प्रस्ताव को मान लिया जाता, तो देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता का ऐसा वातावरण पैदा होता, जिसकी बराबरी दुनिया में कोई नहीं कर पाता। लेकिन मुसलमानों में इतनी समझदारी कहाँ कि वे देश और समाज के हित में इतनी दूर तक सोच सकें? अपनी मूर्खता से उन्होंने वह सुनहरा मौका गँवा दिया और फिर देश में वह सब हुआ, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। इस स्थिति को व्यक्त करने के लिए एक पंक्ति पर्याप्त होगी- लमहों ने ख़ता की थी, सदियों ने सजा पाई।

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