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Tuesday 22 January 2013

अटल सरकार का सुशासन


कंधार कांड से निपटने के बाद अटल जी की सरकार का पूरा ध्यान देश की अर्थव्यवस्था और जनसुविधाओं को सुधारने पर लग रहा था। उन्होंने अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए नरसिंह राव सरकार की उन उदार आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाया, जो अल्पमत और जोड़-तोड़ की सरकारों के कारण पृष्ठभूमि में चली गयी थीं। उन्होंने निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कानूनों को सरल किया और बाधाओं को हटाया। कुछ क्षेत्रों में विदेशी निवेश को भी अनुमति दी। उन्होंने कुछ सरकारी निगमों के निजीकरण का रास्ता भी खोला, क्योंकि वे निगम अधिकारियों और कर्मचारियों की अकर्मण्यता के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बने हुए थे।

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उन्होंने कालाबाजारियों पर लगाम लगायी। इसका परिणाम यह हुआ कि आवश्यकता की लगभग सभी चीजें बाजार में उचित मूल्य पर मिलने लगीं। अटल जी सरकार के समय में महँगाई की कोई समस्या नहीं थी। बाजार का विकास सामान्य गति से हो रहा था। इससे धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था सुधरने लगी। इसका पता नित्य नई ऊंचाइयां छू रहे शेयर बाजार के सूचकांकों से मिलता था।

उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में शोध और विकास की गतिविधियों को बढ़ावा दिया और इन कार्यों के लिए बजट में विशेष प्रावधान किया। लाल बहादुर शास्त्री के “जय जवान, जय किसान” के नारे को विस्तार देकर उन्होंने “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान” का नारा दिया। इससे पहले किसी भी सरकार ने विज्ञान के क्षेत्र में शोध को इतना महत्व नहीं दिया था।

इसके अलावा अटल जी की सरकार का ध्यान देश की आधारभूत संरचनाओं को सुधारने की ओर लगा था। यह एक बिडम्बना ही कही जाएगी कि स्वतंत्रता के 50 से अधिक बीतने के बाद भी देश में बिजली और सड़क जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की हालत बहुत खराब थी। बिजली के अभाव में न तो उद्योग पनप पाते थे और न किसानों को अपने खेत के लिए पर्याप्त पानी मिल पाता था। इसलिए अटल जी की सरकार ने कई नई विद्युत् परियोजनायें प्रारम्भ कीं।

सड़कों की खराब हालत के कारण बहुत से ग्रामीण क्षेत्र अविकसित रह जाते थे। अटल जी की सरकार ने सड़कों के विकास पर अधिक जोर दिया। उन्होंने ‘स्वर्ण चतुर्भुज’ नामक राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना प्रारम्भ की, जिसका उद्देश्य देश के चारों कोनों को एक दूसरे से 8 लेन की सड़कों द्वारा सीधे जोड़ना था। इस परियोजना की देखरेख तत्कालीन शहरी विकास मंत्री कै. भुवन चन्द्र खंडूरी स्वयं कर रहे थे। परियोजना समय पर पूरी हो जाये और कोई भ्रष्टाचार न हो, इसलिए इस परियोजना का ठेका 1-1 किमी लम्बाई के टुकड़ों में बाँटकर अलग-अलग ठेकेदारों को दिया गया।

इसी के साथ ही सभी ग्राम पंचायतों को पक्की सड़क के जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना प्रारम्भ की गयी। प्राथमिकता के आधार पर सभी गाँवों तक सड़क बनायी गयी। इससे किसानों को पास के शहरों और कस्बों से खाद और बीज लाने तथा अपनी उपज मंडी तक पहुँचाने की सुविधा उपलब्ध हो गयी। इससे किसानों को बहुत लाभ हुआ। ये सड़कें भी अलग-अलग ठेकेदारों से माध्यम से बनवायी गयीं। इसका परिणाम यह हुआ कि सड़कें तेजी से बनने लगीं और भ्रष्टाचार का एक भी मामला नहीं हुआ। लेकिन खेद है कि जैसे ही अटल जी की सरकार गयी और काग-रेस की सरकार आयी, वैसे ही इस परियोजना की चाल कछुए जैसी हो गयी और भ्रष्टाचार के मामले सामने आने लगे।

अटल जी की सरकार ने अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के और भी कई उपाय किये जिनका यहाँ विस्तार से उल्लेख करना सम्भव नहीं है। ऐसे कदमों के कारण ही भारत एक आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ने लगा। प्रत्येक जागरूक भारतवासी को उनकी सरकार में अच्छा ही महसूस हो रहा था, जिसे अंग्रेजी में ‘फील गुड’ कहा जाता है। उस समय हड़तालों आदि का नामोनिशान भी नहीं था। इसी को ‘इंडिया शाइनिंग’ कहा जा रहा था।

लेकिन देश में कुछ तत्व ऐसे हैं, हमेशा रहे हैं, जिन्हें देश की प्रगति और आम जनता की खुशहाली फूटी आँखों नहीं सुहाती। ऐसे तत्व ही देश की जनता को बरगला रहे थे। खास तौर से काग-रेसी, कम्यूनिस्ट और उनके तथाकथित सेकूलर साथी। उनकी कहानी अगले लेखों में।

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