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Tuesday 22 January 2013

“तहलका” का तहलका


मार्च 2001 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के शासन में देश प्रगति की सीढि़यां चढ़ रहा था और कहीं भी भ्रष्टाचार का कोई संकेत तक नहीं था, तब एक ‘तहलका’ नाम के गुमनाम से समाचार पत्र ने एक सीडी जारी की, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को एक लाख रुपये की राशि स्वीकार करते हुए दिखाया गया था। ‘तहलका’ ने इस सीडी का बहुत प्रचार किया और यह सिद्ध करने की कोशिश की कि अटल जी की पार्टी और सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी। स्पष्ट रूप से यह प्रयास बुरी तरह असफल रहा।

वास्तव में ‘तहलका’ समाचार पत्र के सम्पादक और पत्रकार किसी विरोधी दल के इशारे पर स्टिंग आपरेशन करते घूम रहे थे कि कोई उनसे घूस लेना स्वीकार कर ले ताकि उस कार्य को वे भारी भ्रष्टाचार का नाम देकर अटल सरकार को बदनाम कर सकें। कुछ सैनिक अधिकारी और छुटभैये नेता उनके जाल में फँस भी गये, लेकिन शासक दल के अध्यक्ष को फँसाना उनकी एक बड़ी सफलता थी। विचार कीजिए कि हाल के अरबों-खरबों के घोटालों के सामने एक लाख जैसी राशि का क्या महत्व है?

वैसे भी बंगारू जी ने यह तुच्छ राशि केवल पार्टी के काम के लिए स्वीकार की थी और वह राशि पूरी की पूरी पार्टी फंड में जमा भी कर दी थी। लेकिन छिपे हुए कैमरे ने उनको यह करते हुए पकड़ लिया और उस वीडियो के टुकड़े ने बंगारू जी को बदनाम कर दिया। हालांकि पार्टी ने तत्काल उनको उनके पद से मुक्त कर दिया था, लेकिन जो बदनामी होनी थी वह हो गयी। बाद में बंगारू जी पर बाकायदा केस भी चला, जिसको प्रभावित करने की कोई कोशिश भी अटल जी की सरकार ने नहीं की। इसका परिणाम यह हुआ कि उनको तीन साल की सजा हो गयी और वे उस सजा को भुगत भी आये।

भ्रष्टाचार के प्राति अटल जी की सरकार के कठोर रवैये की तुलना जब हम आज की सरकार के रवैये से करते हैं तो पाते हैं कि अटल जी कितने महान् हैं। आज हम देखते हैं कि लाखों करोड़ रुपयों के घोटाले साबित हो जाने के बाद भी हमारे प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी की अध्यक्षा अन्तिम क्षण तक यही कहते रहते हैं कि वे पूरी तरह निर्दोष हैं, भले ही सारे सबूत उनके खिलाफ हों। वे भी पूरी निर्लज्जता से अपनी कुर्सी से तब तक चिपके रहते हैं जब तक सर्वोच्च न्यायालय ही उनको लात मारकर उतार नहीं देता और जेल नहीं पहुँचा देता।

अब जरा यह देख लिया जाये कि यह ‘तहलका’ आजकल कहाँ है। कहने को तो यह समाचारपत्र आज भी छप रहा है और उसकी वेबसाइट भी है, परन्तु लाखों करोड़ रुपयों के इतने घोटाले हो गये, क्या कभी किसी ने सुना है कि इस तहलका मचाने वाली टीम ने कभी एक भी नया रहस्योद्घाटन किया हो? वास्तव में यह समाचारपत्र बाकी सेकूलर मीडिया की तरह पूरी तरह बिका हुआ और चाटुकार बनकर रह गया है। यही कारण है कि अटल जी की सरकार जाने और मनमोहन सिंह-सोनिया की सरकार आने के बाद वह अपने हाथ-पैर बाँधकर और मुँह सिलकर बैठ गया है। कभी वह मुँह खोलता भी है तो येदीयुरप्पा के काल्पनिक भ्रष्टाचार की कहानियों को सत्य साबित करने के लिए या फिर बार-बार जीतने पर मोदी जी को कोसने के लिए। 

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