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Tuesday 22 January 2013

सात्विक भोजन की कहानी


‘जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन’ और ‘जैसा पियोगे पानी, वैसी बनेगी बानी’ ये पुरानी कहावतें हैं और शत-प्रतिशत सत्य हैं। सात्विक भोजन न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी अमृत के समान है। तामसी और राजसी भोजन से ही तमाम तरह के शारीरिक और मानसिक रोग होते हैं। इस सत्य को सिद्ध करने वाली एक कहानी प्रस्तुत है-

एक बादशाह अपने भोजन में तरह-तरह की गरिष्ठ और तामसी चीजें खाता था। इसके परिणामस्वरूप वह बीमार सा बना रहता था। वह अपने वैद्यों पर नाराज भी होता था कि उसे ठीक क्यों नहीं कर पा रहे हैं। बेचारे वैद्यों में उससे यह कहने की हिम्मत नहीं थी कि वह भोजन में तामसी और भारी चीजें लेना बन्द कर दे, तभी ठीक हो पायेगा।

एक दिन एक वैद्य ने बहुत सोचकर एक उपाय निकाला। उसने बादशाह से कहा कि मैं आपके सामने एक प्रयोग करना चाहता हूँ। जब बादशाह ने मंजूरी दे दी, तो उसने भोजन की दो थालियाँ मँगायी, जिसमें से एक थाली में वह गरिष्ठ और तामसी भोजन था, जो बादशाह रोज खाता था और दूसरी थाली में साधारण रोटी, सब्जी, दाल, चावल आदि सात्विक वस्तुएँ थीं।

वैद्य ने दो बड़े आकार के घड़े भी मँगवाये। उसने एक घड़े में एक थाली का भोजन रख दिया और दूसरे घड़े में दूसरी थाली का भोजन रखा। फिर उसने बादशाह से कहा कि इन दोनों घड़ों को आप अपने हाथ से बन्द कर दीजिये। बादशाह ने उसके कहे अनुसार दोनों घड़ों के मुँह पर कपड़ा लपेटकर बाँध दिया और अपनी मोहर भी लगा दी। तब वैद्य ने उससे कहा कि इन घड़ों को हम एक सप्ताह बाद खोलेंगे।

एक सप्ताह बाद दोनों घड़े मँगवाये गये। दोनों पर लगी हुई सील सुरक्षित थी।

पहले सात्विक भोजन वाला घड़ा खोला गया। उसमें से थोड़ी बदबू आयी।

फिर तामसी और राजसी भोजन वाला घड़ा खोला गया। उसके खुलते ही बदबू का बहुत बड़ा झोंका आया, जिससे बादशाह को अपनी नाक बन्द करके पीछे हटना पड़ा।

वैद्य ने बादशाह को समझाया कि हुजूर, इसी प्रकार यह तामसी और राजसी भोजन शरीर में जाकर सड़न पैदा करता है, जिससे बीमारियाँ होती हैं, जबकि सात्विक भोजन से ऐसा कोई खतरा नहीं है। इस तरह समझाने पर बादशाह ने मान लिया कि उसके बीमार रहने का कारण तामसी भोजन ही था और आगे से उसने सात्विक भोजन करना ही तय किया।

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