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Tuesday 22 January 2013

ब्लॉग पर मेरा एक वर्ष


नभाटा में अपना ब्लॉग ‘खट्ठा-मीठा’ लिखते हुए मेरा एक वर्ष पूरा हो गया। इस ब्लॉग पर अब तक मेरे 110 लेख आ चुके हैं। इस अवसर पर मैं अपने कार्य की समीक्षा कर लेना चाहता हूँ।

मैंने अपने पहले ही लेख में यह स्पष्ट कर दिया था कि मेरे लेख लीक से हटकर होंगे और पाठक बंधु मेरे खट्ठे-मीठे विचारों को झेलने के लिए तैयार रहें। अपने लेखों की श्रृंखला का प्रारम्भ मैंने गाँधी और नेहरू की देशघातक नीतियों की समीक्षा से की। मैंने नेहरू को ‘पोंगा पंडित’ नाम दिया था, जिस पर कई कांग्रेसी मानसिकता के लोगों को आपत्ति थी, परन्तु अधिकांश पाठक इससे सहमत रहे। मैंने गाँधी को भी एक विशेषण दिया था, जिसका प्रयोग भाई रंजन माहेश्वरी जी के सुझाव पर मैंने बन्द कर दिया है। प्रारम्भ में मेरे लेखों की श्रृंखला स्वतंत्रता आन्दोलन में नेहरू और गाँधी की देशविरोधी नीतियों पर केन्द्रित रही, जिसे बहुत से पाठकों की सराहना मिली। नाथूराम गोडसे के कार्य पर भी मैंने लेख लिखे, जिनको सराहना और आलोचना दोनों मिलीं। बाद में स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस की देशघातक नीतियों और गलतियों पर भी मैंने अनेक लेख लिखे, जिनसे अधिकांश लोग सहमत लगे।

एक बार नेहरु को चरित्रहीन कहने पर नागर साहब ने नाराज होकर मेरे लेख रोक लिये और मुझसे सफाई मांगी। तब मैंने एक पूरा लेख लिखकर बताया कि मैं क्यों नेहरु को चरित्रहीन मानता हूँ। नागर जी को समाधान हुआ या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन उसके बाद फिर कभी मेरा कोई लेख नहीं रोका गया। आगे चलकर मुझे अपने लेख स्वयं लाइव करने का अधिकार भी मिल गया, जिसका मैं अभी तक उपयोग कर रहा हूँ। आप सभी साक्षी हैं कि मैंने कभी इस अधिकार का दुरूपयोग नहीं किया।

अपने लेखों में मुझे गाँधी, नेहरू और कांग्रेस की मुस्लिम समर्थक नीतियों और तुष्टीकरण की आलोचना करनी पड़ी, जिन पर (जैसा कि स्वाभाविक है) अनेक मुस्लिम बंधुओं ने घोर आपत्तियाँ कीं। मुझे कई अशोभनीय भाषा से भरे कमेंट भी प्राप्त हुए, जिनको मैंने ब्लॉग पर नहीं जाने दिया। कई मुस्लिम बंधुओं ने अपनी संतुलित प्रतिक्रियाएं भी दीं। मुझे इस बात का सन्तोष है कि मैंने अपने ब्लॉग को घटिया गाली-गलौच और व्यक्तिगत टिप्पणियों का केन्द्र नहीं बनने दिया। इसके लिए मुझे न केवल विरोधियों बल्कि समर्थकों के कमेंट भी हटाने पड़े।

मेरे कई लेखों की भाषा बहुत कठोर हो गयी थी। इस कारण विरोधियों ने ही नहीं बल्कि मेरे कई परिवारियों और घनिष्ठ मित्रों ने भी भाषा संयत रखने की सलाह दी। एक आलोचक ने तो यहाँ तक कह दिया कि मुझे अपने ब्लॉग का नाम ‘खट्ठा-मीठा’ नहीं वरन् ‘तीखा-कड़वा’ रखना चाहिए था। समय के साथ मैंने अपनी शैली में सुधार भी किया, परन्तु कई बार कठोर सत्य लिखने को बाध्य होना पड़ता है। मैं उन सब पाठकों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने मेरे लेखों पर अपने विचार व्यक्त किये। कई बार मुझे अपने तथ्यों को सुधारना पड़ा, जिनके लिए मैं सम्बंधित बंधुओं का आभारी हूँ।

यह ब्लॉग लिखते हुए मुझे ऐसे कई नये मित्र प्राप्त हुए, जो स्वयं भी ब्लॉग लिखते हैं। उनके नामों का उल्लेख करके मैं उनके प्रति आभार प्रकट करना अपना कर्तव्य समझता हूँ- सर्वश्री विजय बाल्याण, केशव जी, कमल कुमार सिंह, काजल कुमार, रंजन माहेश्वरी, श्रीमती लीला तिवानी, विजय कुमार शुक्ल, मदनलाल जी फरीदाबाद वाले, रमेश कुमार मीणा, आचार्य विजेन्दर जी, जय कुमार राणा, चुन्नू दी ग्रेट आदि। यदि किसी बंधु का नाम छूट गया हो, तो मैं उनसे क्षमा चाहता हूँ।

इनके अतिरिक्त कुछ ब्लॉगर बंधु ऐसे भी हैं, जो प्रारम्भ में मेरे विरोधी थे, लेकिन आगे चलकर मेरे मित्र बन गये। उनमें सबसे पहला और सबसे ऊपर नाम है श्री बनवारी जी का, जो ‘बिरजू अकेला’ के नाम से ब्लॉग लिखते थे। वे मेरे लेखों के जबाब में पूरे-पूरे लेख ही लिख डालते थे। मुझे प्रसन्नता है कि अब वे मेरे घनिष्ठ मित्र बन गये हैं। इसी प्रकार आचार्य सचिन परदेसी और बंधु प्रसन्न प्रभाकर जी से भी मेरे मतभेद रहे, लेकिन अब वे भी मेरे मित्र हैं।

यदि मैं उन पाठकों को स्मरण न करूँ, तो कृतघ्नता ही कही जाएगी, जिन्होंने ब्लॉगर न होते हुए भी लगभग सभी विषयों पर मेरे विचारों से सहमति व्यक्त की। उनमें से कुछ के नाम हैं- सर्वश्री राज हैदराबादी, शरद जी नभाटा वाले, दशरथ दुबे, सौरभ श्रीवास्तव, पारस जैन, चन्द्र प्रकाश पंत, सचिन सोनी, रोमी जी, तपेश जी, हुकम शर्मा, कांता उज्जैन आदि। यदि कोई नाम छूट गया हो, तो क्षमाप्रार्थी हूँ।

अब जरा अपने विरोधियों की चर्चा भी कर ली जाये। इनमें सबसे ऊपर नाम है श्री शीराज का। रोमन लिपि में उनकी हिन्दी पढ़ना एक दुरूह कार्य होता है। इसके अलावा उनकी सभी टिप्पणियां विषय से हटकर फालतू बातें करके लेखक को भटकाने का प्रयास होती हैं। कई बार उनकी भाषा भी बहुत अशोभनीय होती है। इसलिए मैंने यह नियम बना लिया था कि उनके कमेंट पढ़ते ही हटा देता था। इनके अलावा कई मुस्लिम बंधु नकली हिन्दू नामों से इधर-उधर कमेंट मारते रहते हैं। ऐसे एक सज्जन शहबाज खाँ ‘जग्गी’ नाम से कमेंट किया करते थे। जब मैंने उनका असली नाम उजागर कर दिया, तो भाग खड़े हुए। ऐसे कई मामले हुए हैं।

अन्त में, मैं पुनः उन सभी बंधुओं को धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिन्होंने कई प्रकार से मुझे प्रोत्साहित किया। आगे भी उनके समर्थन की मैं आशा करता हूँ। मैं उन्हें विश्वास दिलाता हूँ कि जब तक सम्भव होगा मैं ब्लॉग लिखता रहूँगा और मेरी लेखनी से उन्हें कभी निराशा नहीं होगी।

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