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Monday 21 January 2013

देश का दुश्मन है सेकूलर सम्प्रदाय -2


4. गोधरा का हत्याकांड सेकूलर सम्प्रदाय के दोमुँहेपन का सबसे जीवन्त उदाहरण है। अयोध्या से लौट रहे निर्दोष रामभक्तों, जिनमें महिलायें और बच्चे भी शामिल थे, को गोधरा के निकट रेलगाड़ी रोककर मुसलमानों की भीड़ ने पेट्रोल डालकर जिन्दा जला दिया था और डिब्बे के दरवाजों को सब ओर से बन्द कर दिया था, ताकि वे निकलकर भाग न सकें। इस लोमहर्षक हत्याकांड में 58 स्त्री-पुरुष-बच्चे जीवित जला दिये गये थे। सेकूलर सम्प्रदाय के लोगों ने इस हत्याकांड की कभी निन्दा नहीं की, बल्कि उसे अयोध्या के बाबरी ढाँचे के गिराने की प्रतिक्रिया बताकर उचित साबित करने की कोशिश की। इतना ही नहीं, कुछ महासेकूलर तो इस सुनियोजित हत्याकांड को मात्र दुर्घटना बताकर हत्यारों को बचाने का प्रयास भी कर रहे थे। इस मूर्खता का जो परिणाम होना था, वही हुआ। जब प्रतिक्रिया में गुजरात में हिन्दू समुदाय के उत्साही तत्वों ने मुसलमानों को मारा और जमकर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए, तो वे ही सेकूलर कुबुद्धिजीवी इन दंगों की भत्र्सना में दिन-रात एक करने लगे, जिनके मुँह से गोधरा हत्याकांड की निन्दा में एक शब्द भी नहीं निकला था। ये बुद्धि राक्षस इतने निर्लज्ज हैं कि आज भी गुजरात दंगों की बात करते समय गोधरा के सामूहिक हत्याकांड को भूल जाते हैं, जैसे वहाँ कुछ हुआ ही नहीं हो। मेरा यह स्पष्ट मत है कि गोधरा के हत्यारे केवल वे नहीं थे, जिन्होंने रेलगाड़ी रोकी, पेट्रोल डाला और आग लगायी, बल्कि उनमें वे भी शामिल माने जाने चाहिए, जिन्होंने इस हत्याकांड को उचित ठहराने और अपराधियों को बचाने की कोशिश की। यदि उन हत्यारों के पीछे सेकूलर सम्प्रदाय का मुखर समर्थन न होता, तो क्या उनकी हिम्मत हो सकती थी कि इस तरह सरेआम पेट्रोल डालकर रेलगाड़ी के डिब्बे में भरे हुए रामभक्तों को जिन्दा जला देते? उन प्रत्यक्ष हत्यारों को तो अदालत से सजा मिली और मिल रही है, लेकिन इन अप्रत्यक्ष हत्यारों को आज तक कोई सजा नहीं मिली, यह हमारे कानून की बड़ी खामी है।

5. जब एक चित्रकार एम.एफ. हुसैन ने अपनी गलीज मानसिकता के कारण हिन्दुओं की आराध्य देवियों लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा आदि के नग्न और अपमानजनक चित्र बनाये, तो सेकूलर सम्प्रदाय के लोग उसकी इस नीच हरकत को कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सही ठहराने लगे। उनके पास इस बात का जबाब नहीं था कि कलाकारी केवल हिन्दुओं के देवी-देवताओं को अपमानित करने से ही हो सकती है? क्यों नहीं उस चित्रकार की दुम ने मुसलमानों की पूज्य नारियों फातिमा या आयेशा अथवा ईसाइयों की कुमारी मरियम या मेरी के नग्न चित्र बनाये? क्या हिन्दू समाज को अपमानित करने में ही उसकी कला की सार्थकता सिद्ध होती है? अगर कोई हिन्दू चित्रकार फातिमा, आयेशा या मरियम के ऐसे ही नग्न और अपमानजनक चित्र बना दे, तो क्या तब भी वे कला के नाम पर उसकी प्रशंसा करेंगे? ऐसे अनेक सवाल हैं जिनके जबाब सेकूलर सम्प्रदाय के बुद्धिराक्षसों के पास नहीं हैं। देखा तो यह गया है कि मुहम्मद का मात्र एक कार्टून बनाने पर सारा सेकूलर सम्प्रदाय डेनमार्क के उस कार्टूनिस्ट की भत्र्सना में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगा और मुस्लिम कठमुल्लों के स्वर में स्वर मिलाने लगा। क्या इस दोगलेपन की कोई सीमा है?

6. इसी से मिलता-जुलता मामला सलमान रुशदी और तस्लीमा नसरीन का है। रुशदी ने कुरान की कुछ आयतों को आधार बनाकर एक उपन्यास लिखा है, जिसमें इस्लाम की कमियों को उजागर किया गया है। उनके इस कार्य को इस्लाम का अपमान मानकर पूरी दुनिया के मुसलमान उनकी जान के पीछे पड़ गये। ईरान ने उसकी हत्या के लिए इनाम तक घोषित कर दिया। पर किसी सेकूलर ने इस कठमुल्लेपन की निन्दा नहीं की। उनके लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल हिन्दू धर्म को अपमानित करने के लिए होती है। तस्लीमा ने तो इस्लाम का अपमान भी नहीं किया है, बल्कि बंगलादेश के मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को आधार बनाकर उपन्यास लिखे हैं। लेकिन इतने पर भी सारे कठमुल्ले और उनके पिछलग्गू सेकूलर बुद्धिराक्षस तसलीमा के पीछे पड़े हुए हैं। अपने देश से निर्वासित होकर उसने भारत में शरण चाही थी, पर सेकूलर सम्प्रदाय के खुले विरोध के कारण आज तक उसे शरण नहीं मिल सकी है और वह दुनिया में मारी-मारी फिर रही है। यह है सेकूलर सम्प्रदाय की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नग्न रूप।

(जारी)

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