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Monday 21 January 2013

संजय गाँधी की रहस्यमय दुर्घटना


सभी जानते हैं कि नेहरू-गांधी परिवार के चारों ओर रहस्य का एक घेरा हमेशा मौजूद रहा है। उनकी वास्तविक वंशावली, जन्म, शिक्षा, धर्म, विवाह, सन्तानों, विदेश यात्राओं, आमदनी के स्रोत, बीमारी, चिकित्सा और मृत्यु तक की घटनाओं पर गोपनीयता का आवरण जानबूझकर डाल रखा गया है। इस सम्बंध में कोई सवाल उठाने पर या तो एकदम चुप्पी साध ली जाती है या सवाल पूछने पर ही गुस्सा जताया जाता है। आश्चर्य है कि इतने पर भी कांग्रेसी कार्यकर्ता और उसके मतदाता इस परिवार के प्रति अंधभक्ति रखते हैं और हर परिस्थिति में यह भक्ति बनी रहती है। इन्दिरा गाँधी के दूसरे पुत्र संजय गाँधी की मृत्यु भी उन अनेक घटनाओं में से एक है जिसकी वास्तविकता आज तक रहस्यों के घेरे में है।

मैं लिख चुका हूँ कि आपात्काल के दिनों में संजय गाँधी एक असंवैधानिक सत्ता केन्द्र के रूप में उभरे थे और वास्तविक सरकार प्रधानमंत्री कार्यालय के बजाय प्रधानमंत्री निवास से चलायी जा रही थी। दूसरे शब्दों में वे सुपर प्रधानमंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे। उनकी मनमानी के कारण ही 1977 के चुनावों में कांग्रेस की मिट्टी पलीत हुई थी। लेकिन चौधरी चरण सिंह की मूर्खता के कारण 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिर गई और 1980 में हुए चुनावों में कांग्रेस को फिर सत्ता में आने का मौका मिल गया। इस बार संजय गाँधी उसी अमेठी क्षेत्र से चुनाव जीतकर आ गये, जहाँ से वे 1977 में बुरी तरह हारे थे।

इन्दिरा गाँधी संजय को अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार कर रही थीं। इसलिए इस बार उन्हें पार्टी के महामंत्री पद पर रख दिया गया। इन्दिरा गाँधी स्वयं कांग्रेस की अध्यक्ष भी थीं, परन्तु सारे अधिकार वास्तव में संजय गाँधी के हाथ में थे। इतना ही नहीं पार्टी के अलावा सरकार के तमाम अधिकार भी अघोषित रूप में संजय गाँधी के हाथों में थे और वे मनचाहे तरीके से कार्यपालिका को चला रहे थे। विपक्ष बुरी तरह हताश था, जनता पार्टी टुकड़ों में टूट चुकी थी, इसलिए संजय गाँधी के अधिकारों को कोई प्रभावी चुनौती नहीं थी। वैसे भी वे पर्दे के पीछे रहकर सारी गतिविधियां चलाते थे, इसलिए किसी को सीधे उंगली उठाने का मौका नहीं मिलता था।

इसी समय संजय को हेलीकॉप्टर उड़ाने का शौक चर्राया। सफदरजंग हवाई अड्डे पर एक उड़ान क्लब है, उसकी सदस्यता लेने और हवाई जहाज उड़ाना सीखने में संजय गाँधी को कोई दिक्कत नहीं हुई, हालांकि वे हाईस्कूल की परीक्षा भी पास नहीं कर सके थे। इस क्लब के तमाम नियमों को धता बताते हुए वे अपनी मनमर्जी के कभी भी हेलीकॉप्टर उड़ाया करते थे और उसके साथ खेल किया करते थे। इनमें एक खेल यह होता था कि दूर से हेलीकॉप्टर उड़ाकर लाते हुए गोता लगाकर किसी ऊँचे पेड़ की सबसे ऊँची डाल के पत्तों को छूने की कोशिश करते थे। यह बहुत खतरनाक खेल था, पर संजय गाँधी को रोकने-समझाने वाला कोई नहीं था।

ऐसे ही एक दिन यह खेल करते हुए संजय गाँधी का हेलीकॉप्टर अनियंत्रित हो गया और वह पेड़ की डाल को छूने के बजाय जमीन से टकराया। कहने की आवश्यकता नहीं कि जमीन से टकराकर वह हेलीकॉप्टर चूर-चूर हो गया और उसको चला रहे संजय गाँधी तथा एक अन्य व्यक्ति बुरी तरह क्षत-विक्षत होकर मौत के मुँह में चले गये। वह दिन था 23 जून 1980 का।

जब इस दुर्घटना का समाचार फैला तो सब स्तब्ध रह गये। कांग्रेसियों की पहली प्रतिक्रिया यह थी कि इसमें अमेरिका गुप्तचर संस्था सी.आई.ए. का हाथ है। एक बड़े मंत्री ने तत्काल दुर्घटना की न्यायिक जाँच की घोषणा कर दी, जिससे सबने सोचा कि जो भी वास्तविकता होगी पता चल जायेगी। लेकिन जैसे ही इन्दिरा गाँधी को  इसका पता चला, उन्होंने तुरन्त न्यायिक जाँच की घोषणा को रद्द कर दिया, हालांकि कानूनन यह जाँच आवश्यक थी। कहा जाता है कि दुर्घटना की खबर मिलते ही सबसे पहले इन्दिरा गाँधी स्वयं कार से दुर्घटना स्थल पर पहुँची और वहाँ से एक चाबी का गुच्छा और संजय गाँधी की एक डायरी लेकर चली गयीं। उसके बाद ही पुलिस को वहाँ जाने दिया गया।

अगर इस दुर्घटना की जाँच होती, तो कई सवाल उठाये जाते, जैसे- संजय को हेलीकॉप्टर क्लब की सदस्यता किस आधार पर दी गयी, उनको हेलीकॉप्टर उड़ाने का लाइसेंस किस आधार पर दिया गया, वे कब-कब क्लब जाते थे और कितनी देर तक हेलीकॉप्टर उड़ाया करते थे, उनकी उड़ानों का खर्च कौन उठाता था आदि-आदि। हालांकि ये सारे सवाल अखबारों और विपक्षी दलों ने उठाये भी, परन्तु उनका कोई जबाब नहीं दिया गया और मामले को रफा-दफा कर दिया गया। आज भी कोई नहीं जानता कि यह दुर्घटना क्यों और कैसे हुई। मात्र 33 वर्ष 6 माह की उम्र में देश का एक ‘भावी प्रधानमंत्री’ अपनी मूर्खता का शिकार बन गया।

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