नवभारत टाइम्स के श्री नीरेन्द्र नागर ने मेरे एक लेख
में नेहरू के लिए प्रयुक्त किये गये इन दोनों विशेषणों ‘क्रूर’ और
‘चरित्रहीन’ पर आपत्ति की थी और इनका कारण बताने को कहा था। हालांकि इन
शब्दों को मैंने हटा दिया, लेकिन नागर जी संतुष्ट नहीं हुए। इसलिए मैं अब
विस्तार से बता रहा हूँ कि इन विशेषणों का उपयोग नेहरू के लिए क्यों किया
जा सकता है।
पहले ‘चरित्रहीन’ को लिया जाये। इसके लिए चरित्र को
परिभाषित करना होगा। मेरे विचार से जो व्यक्ति धर्म के दस लक्षणों का पालन
करता है, वह चरित्रवान कहा जाएगा। ये दस लक्षण हैं- धैर्य, क्षमा, संयम,
चोरी-बेईमानी न करना, आन्तरिक और बाह्य पवित्रता, इन्द्रियों पर नियंत्रण
रखना, बुद्धि-विवेक, ज्ञान, सत्य और क्रोध न करना। वैसे तो कोई भी व्यक्ति
पूरी तरह चरित्रवान मिलना कठिन ही है, लेकिन नेहरू के बारे में कहा जा सकता
है कि इन दस लक्षणों में से दो-तीन के दर्शन ही उनमें होते थे। विशेष रूप
से इन्द्रियों पर नियंत्रण न रखने के कारण नेहरू को चरित्रवान नहीं कहा जा
सकता।
कहा जाता है कि नेहरू का सम्बंध अनेक महिलाओं से रहा था, जिनमें
से लेडी एडविना माउंटबेटन, पद्मजा नायडू, मृदुला साराभाई और श्रद्धा माता
के नाम सबको ज्ञात हैं। श्रद्धा माता नाम की महिला को नेहरू ने गर्भवती भी
किया था, ऐसा उनके निजी सचिव मथाई ने अपनी पुस्तक में लिखा है। मैं नहीं
जानता कि नागर साहब की परिभाषा के अनुसार ये कार्य चरित्रहीनता की श्रेणी
में आते हैं या नहीं। परन्तु मैं तो इन्हें गलत ही मानता हूं। ठीक है कि
नेहरू की पत्नी कमला नेहरू टी.बी. की मरीज थीं और मृत्युशैया पर थीं या मर
चुकी थीं। ऐसी स्थिति में यदि नेहरू अपनी शारीरिक और पारिवारिक आवश्यकताओं
की पूर्ति के लिए दूसरा विवाह कर लेते, तो किसी को आपत्ति न होती। परन्तु
उन्होंने ऐसा नहीं किया और तमाम महिलाओं से अनुचित सम्बंध बनाते रहे।
अपने
वचन का पालन न करना भी चरित्रहीनता ही है। ऐसे कई उदाहरण नेहरू के जीवन
में मिलते हैं। एक बार कांग्रेस की किसी सभा में ध्वज फहराते समय झंडा अटक
गया था। सब परेशान हो गये थे। तभी एक किशोर लड़का ध्वजदंड पर चढ़ गया और
ऊपर जाकर ध्वज को ठीक कर दिया। नेहरू ने अपने भाषण में उसकी बहुत प्रशंसा
की और कहा कि हम उस लड़के को पुरस्कृत करेंगे। लेकिन जब उनको पता चला कि वह
लड़का संघ का स्वयंसेवक है, तो वे अपने वचन से फिर गये। नेहरू की
क्षुद्रता सभी के सामने निर्वस्त्र हो गयी।
इसी तरह उन्होंने गाँधी
हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ के तत्कालीन सर संघचालक श्री गुरुजी को बन्दी
बना लिया था। लेकिन 10-15 दिन की जाँच में ही यह स्पष्ट हो गया था कि इस
हत्या में संघ या उसके किसी स्वयंसेवक का कोई हाथ नहीं है। फिर भी नेहरू ने
अपनी क्षुद्रता का परिचय देते हुए श्रीगुरुजी को रिहा नहीं किया। अब
उन्होंने संघ के ऊपर आरोप लगाया कि वह बिना किसी संविधान के कार्य करता है।
वाह! वाह!! क्या बुद्धि और विवेक है!!! क्या यह नेहरू की चरित्रहीनता नहीं
है?
अब आइये ‘क्रूरता’ पर। उन्होंने सबसे पहले अपनी क्रूरता का परिचय
तब दिया था, जब पाकिस्तान में हिन्दुओं की रक्षा करने और उनको वहाँ से
सुरक्षित लाने का कोई उपाय नहीं किया। उनकी दृष्टि में हिन्दुओं की जान की
कोई कीमत नहीं थी। इसी प्रकार 1946 के नौसैनिक विद्रोह के समय नेहरू ने
ब्रिटिश सेना द्वारा भारतीय नाविकों के ऊपर गोली वर्षा करने की सलाह दी थी।
कश्मीर पर कबाइलियों की आड़ में पाकिस्तान के आक्रमण के समय उन्होंने
कश्मीरी नागरिकों की प्राण रक्षा के लिए कोई उपाय करने से तब तक इनकार कर
दिया था, जब तक कि वहाँ के महाराजा नेहरू के मित्र शेख अब्दुल्ला को सत्ता
नहीं सौंप देते। क्या यह क्रूरता नहीं है? तिब्बत पर चीन के अतिक्रमण के
समय भी नेहरू ने ऐसा ही किया। दलाई लामा की तमाम दलीलों को ठुकराते हुए
उन्होंने कोई भी सहायता करने से इनकार कर दिया और तिब्बत के सीधे-साधे
लोगों को चीनी भेड़ियों के सामने फेंक दिया। इस तरह के अनेक उदाहरण दिये जा
सकते हैं।
आशा है नागर जी समझ गये होंगे कि इन विशेषणों का उपयोग मैंने क्यों किया था?
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