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Tuesday 22 January 2013

बिना दवा के इलाज


अलाउद्दीन खिलजी अपने सगे चाचा जलालुद्दीन खिलजी को धोखे से मारकर दिल्ली का बादशाह बना था। वह कट्टर जेहादी था। उसने हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए उसके प्रमुख मानबिन्दुओं और मन्दिरों को धूल-धूसरित करना शुरू किया। इसी क्रम में वह बनारस आया और यहाँ के काशी विश्वनाथ के मन्दिर को तोड़ दिया। वहाँ के पुस्तकालय को भी उसने जला दिया।

वहीं किसी कारण से वह बीमार हो गया। उसके साथ आये हकीम उसको ठीक नहीं कर पाये। तब किसी ने राय दी कि यहाँ के हिन्दू वैद्य बहुत योग्य हैं, उनकी दवा से आप जरूर ठीक हो जायेंगे। वह 'हिन्दू' शब्द से ही चिढ़ता था, इसलिए उनसे इलाज कराने को पहले राजी नहीं हुआ। लेकिन जब उसकी जान पर ही बन आयी, तो उसने एक वैद्य को बुला लिया। परन्तु वह किसी ‘काफि़र’ का अहसान लेना नहीं चाहता था, इसलिए वैद्य से बोला- ‘मैं तुम्हारी दी हुई कोई दवा नहीं खाऊँगा। और किसी भी तरीके से मुझे ठीक करो, नहीं तो मरने के लिए तैयार हो जाओ।’ यह सुनकर वैद्य चला गया।

अगले दिन वैद्य आया और उसको कुरान की एक प्रति देकर कहा- ‘आप इस कुरान के पृष्ठ संख्या इतने से इतने तक पूरा पढ़ डालिये। ठीक हो जाओगे।’ अलाउद्दीन यह करने को खुशी से तैयार हो गया। उसने उस कुरान के बताये गये सारे पृष्ठ पढ़ डाले और आश्चर्य कि पन्ने पूरे होते-न-होते वह ठीक हो गया। उसने इसके लिए कुरान का अहसान माना और खुदा को शुक्रिया कहा।

वह कुरान के वे पन्ने पढ़ने से कैसे ठीक हुआ, इसका रहस्य यह है कि जब मुसलमान कुरान पढ़ते हैं तो अपने अँगूठे पर थूक लगाकर पन्ने पलटते हैं। यह बात वैद्य जानता था। इसलिए उसने उन पन्नों के कोनों पर जहाँ से उनको पलटा जाता है वहाँ किसी अदृश्य दवा का लेप कर दिया था। पढ़ते-पढ़ते अलाउद्दीन थूक के साथ ही उस दवा को चाट गया और उसके प्रभाव से ठीक हो गया। वह यह नहीं समझ पाया कि थूक के साथ दवा उसके शरीर में जा रही है। उसने तो अपने ठीक होने को कुरान की करामात समझा था।

सभी ब्लॉगर और पाठक बंधुओं को अंग्रेजी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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