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Thursday 29 August 2013

भारतीय मुसलमान क्या करें? (भाग 2)

पिछली कड़ी में मैं लिख चुका हूँ कि जो भारतीय मुसलमान अपने पूर्वजों के पुराने धर्म में वापिस आना चाहते हैं, उनके सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह होता है कि घरवापसी के बाद हिन्दू समाज में उनकी क्या स्थिति होगी और क्या वर्तमान हिन्दू उनके साथ रोटी-बेटी का सम्बंध रखेंगे? यहाँ मैं इस प्रश्न का विस्तार से उत्तर दे रहा हूँ।

हिन्दुत्व में वापसी करने वाले भारतीय मुस्लिम मुख्य रूप से दो प्रकार के हो सकते हैं- एक, वे जिनको अपने हिन्दू पूर्वजों की जाति मालूम है और दूसरे, वे जिनको अपने हिन्दू पूर्वजों की जाति मालूम नहीं है। यहाँ जातियों की बात इसलिए की जा रही है कि जाति प्रथा हिन्दू समाज का अंग बन गयी है और आरक्षण की सुविधा ने इस प्रथा को स्थायी बना दिया है। अधिकांश भारतीय मुसलमान पहली श्रेणी में आते हैं, दूसरी श्रेणी के भारतीय मुसलमानों की संख्या बहुत कम है। इसलिए सबसे पहले हम पहली श्रेणी के मुसलमानों की चर्चा करेंगे।

जिन भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू पूर्वजों की जाति मालूम है, वे हिन्दुत्व में वापसी करने पर अपनी उन्हीं जातियों में शामिल हो जायेंगे। इनमें वे लोग भी हैं, जिनको अभी पिछड़ी जातियों के अन्तर्गत आरक्षण की सुविधा मिल रही है। हिन्दुत्व में वापसी के बाद भी उन्हें यह सुविधा पूर्ववत मिलती रहेगी और वे अपनी समकक्ष हिन्दू जातियों में शामिल माने जायेंगे। इनके अतिरिक्त जो भारतीय मुसलमान अनुसूचित जातियों से सम्बंध रखते हैं, उनको हिन्दुत्व में वापसी के बाद अनुसूचित जातियों को मिलने वाली सभी सुविधायें (आरक्षण सहित) मिलने लगेंगी। इनके लिए उनको केवल यह घोषणा करनी होगी कि उनके हिन्दू पूर्वज धर्मांतरण से पहले इन जातियों के थे।

जो भारतीय मुसलमान पिछड़ी या अनुसूचित जातियों में नहीं आते, यानी सवर्ण हैं, वे हिन्दुत्व में वापसी के बाद सवर्ण ही माने जायेंगे और अपनी समकक्ष हिन्दू जातियों के अंग बन जायेंगे। इसके लिए उन्हें कोई घोषणा करने की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि केवल अपनी पहचान बताना काफी होगा।

अब उन दूसरी श्रेणी के मुसलमानों की बात करें, जिनको अपने हिन्दू पूर्वजों की जाति ज्ञात नहीं है। ऐसे लोग हिन्दुत्व में वापसी के बाद या तो अपने पेशे के अनुसार अपनी समकक्ष हिन्दू जातियों में शामिल माने जा सकते हैं, जैसे बाल काटने वाले नाई जाति में, पानी भरने वाले कहार जाति में, चमड़े का काम करने वाले जाटव जाति में, कपड़े सिलने वाले दर्जी जाति में आदि या वे चाहें तो अपना एक नया वर्ग बना सकते हैं, जिन्हें हम नव बौद्धों की तर्ज पर ‘नव हिन्दू’ कह सकते हैं। इस वर्ग के हिन्दुओं को उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के अनुसार आरक्षण आदि की सुविधा दी जा सकती है या अगर वे स्वयं को सवर्ण हिन्दू मानना चाहें तो मान सकते हैं।

अब प्रश्न उठता है- रोटी-बेटी के सम्बंध का। इसमें रोटी का सम्बंध तो पहले ही दिन से हो जाएगा। जैसे ही उनकी घरवापसी होगी, वैसे ही उनके साथ सहभोज का आयोजन किया जाएगा, जिसमें सभी एक पंक्ति में बैठकर भोजन करेंगे। किसी भी तरह का छूआछूत इसमें नहीं चलेगा। समस्त हिन्दू समाज दोनों हाथ फैलाकर उनका स्वागत करेगा।

अब आती है बेटी के सम्बंध की बात। तो ऐसा सम्बंध होने में कुछ समय लगेगा। जैसे-जैसे घरवापसी करने वाले भारतीय मुसलमान सम्पूर्ण हिन्दू समाज के साथ समरस होते जायेंगे, वैसे-वैसे सभी बाधायें भी टूटने लगेंगी। यह कोई काल्पनिक बात नहीं है। हिन्दू समाज ने पहले भी शक, हूण आदि विदेशी जातियों-वर्गों के लोगों को आत्मसात किया है, जिनको आज अलग से पहचानना भी असम्भव है। यही बात घरवापसी करने वाले भारतीय मुसलमानों के साथ भी हो सकती है। लेकिन यह परिवर्तन एकदम से नहीं होगा, बल्कि धीरे-धीरे होगा।

मेरा अनुमान है एक पीढ़ी के अन्तराल में यह परिवर्तन अधिकांशतः हो जाएगा, दूसरी पीढ़ी में रहा-सहा परिवर्तन भी हो जाएगा और तीसरी पीढ़ी में यह पहचानना भी कठिन हो जाएगा कि कौन हमेशा से हिन्दू है और कौन घरवापसी करने वाला। एक पीढ़ी का समय लगभग 25 वर्ष होता है। इसलिए अधिकतम 50 वर्ष में घरवापसी करने वाले बन्धु हिन्दू समाज में पूरी तरह समरस हो जायेंगे और उनमें पूरी तरह रोटी-बेटी के सम्बंध हो जायेंगे।

अब कई लोग पूछेंगे कि तब तक यानी 25 या 50 वर्षों तक घरवापसी करने वाले हिन्दू कहाँ शादी-विवाह करेंगे? इसका सीधा सा उत्तर यह है कि तब तक वे आपस में ही शादियाँ करेंगे। यदि घरवापसी करने वाले परिवारों की संख्या अधिक होगी, तो इसमें कोई कठिनाई नहीं आयेगी यदि यह संख्या बहुत कम होगी, तो कठिनाई हो सकती है, लेकिन उसका भी समाधान निकाला जाएगा। इस तरह हर समस्या को हल किया जाएगा।

अब आवश्यकता केवल इस बात की है कि भारतीय मुसलमान सामूहिक रूप से घरवापसी का निश्चय करें और अपने आस-पास के हिन्दू कार्यकर्ताओं से मिलकर इसकी व्यवस्था करें। निश्चय ही कठमुल्ले इस पर बहुत शोर मचायेंगे और सम्भव है कि वे हिंसक भी हो जायें, लेकिन उनकी हिंसा का मुकाबला दृढ़ता के साथ समस्त हिन्दू समाज को करना होगा। तभी यह अभियान सफल होगा। 

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