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Friday 23 August 2013

वृन्दावन में पण्डों की गुंडागिर्दी

इस रविवार मुझे वृन्दावन जाने का अवसर मिला. यूं मैं दर्शन-वर्शन नहीं करता, क्योंकि पक्का वैदिक धर्मी और आर्यसमाजी हूँ, पर परिवार के साथ घूमने-फिरने और तमाशा देखने चला जाता हूँ. वहाँ शाम को 5 बजे हम बांके बिहारी जी के मंदिर गये. भारी भीड़ थी, जैसा कि रविवार के दिन स्वाभाविक है.

किसी तरह भीतर पहुंचे, तो पण्डों की लूट-खसोट देखकर मन बहुत खट्टा हो गया. वे किसी भी भक्त को ठीक से दर्शन नहीं करने दे रहे थे और बांके बिहारी की मूर्ति के सामने खड़े हो जाते थे. इससे भी बड़ा आश्चर्य मुझे यह देखकर हुआ कि दक्षिणा के नाम पर पंडे दर्शकों को खूब लूट रहे थे और लगभग जबरदस्ती भारी दक्षिणा मांगते थे. एक पंडे ने तो हद ही कर दी. एक भक्त अपने रुपये निकाल रहा था और उनमें से कुछ पंडे को देना चाहता था. तभी पंडे ने उसके हाथ पर झपट्टा मारकर रुपये छीनने चाहे. इस पर भक्त को गुस्सा आ गया और वह उस पंडे की पिटाई करने तो उद्यत हो गया. शायद उसने हाथ चलाया भी.

तभी मैने क्या देखा की आस-पास से दूसरे 5-6 पंडे उस पंडे को बचाने पहुंच गये. वे शायद भक्त के साथ मार-पीट भी कर देते, लेकिन भक्त परिवार भी तेज था. उसमें महिलाएं भी थी. इसलिये पंडे कुछ नहीं कर पाये और किसी तरह उस भक्त को शांत कराया.

इससे पता चलता है कि इस पण्डों का पूरा गिरोह है, जो लूट-खसोट में लगा रहता है. शोर सुनकर 2 पुलिस वाले भी भीतर आ गये थे, पर पण्डों ने उनको वापस भेज दिया. यानी पुलिस वाले भी उनके साथ मिले हुए थे. अगर किसी यात्री की गलती होती, तो वे भी उसको लूटने में सहयोग करते.

इससे भी ज्यादा आश्चर्य मुझे यह सोचकर होता है की बांके बिहारी जी के सामने और उनके ही नाम पर यह लूट-खसोट और गुंडागिर्दी लगातार चलती रहती है, पर वे किसी को नहीं रोक पाते और न उनको कोई सजा दे पाते हैं. इससे यही सिद्ध होता है कि आर्यसमाजियों का यह कहना सही है कि मूर्तियों-मंदिरों में कोई ताकत नहीं होती. सब लोगों को लूटने के माध्यम हैं.

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