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Friday 2 August 2013

श्री गुरुजी के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरुजी का सम्पूर्ण जीवन लाखों हिन्दू युवकों के लिए प्रेरणादायक था, जो उनकी एक आवाज पर अपना पूरा जीवन देश और समाज की सेवा में समर्पित करने को उद्यत हो गये। उनके बारे में कार्यकर्ताओं के अनेक प्रेरक प्रसंग हैं। उनमें से एक को मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिससे श्री गुरुजी के व्यक्तित्व के एक विशेष आयाम का पता चलता है।

एक बार एक जगह संघ शिविर लगा हुआ था। श्री गुरुजी शिविर में आये हुए थे। जब एक दिन जलपान का समय हुआ तो श्री गुरुजी भी अन्य स्वयंसेवकों के साथ जलपान के लिए बैठे। सामग्री वितरण का कार्य स्वयंसेवकों की टोलियों के हाथों में था। जब वितरण प्रारम्भ हुआ, तो श्री गुरुजी ने देखा कि टोली का एक स्वयंसेवक चुपचाप बैठा है। श्री गुरुजी ने उससे पूछा- ‘तू क्यों बैठा है? वितरण कर।’ पर वह दृष्टि नीची किये चुपचाप बैठा रहा, जैसे उसने कुछ सुना ही न हो।

तब श्री गुरुजी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उस टोली के एक अन्य स्वयंसेवक की ओर देखा, तो उसने बताया कि वह स्वयंसेवक अछूत समझी जाने वाली महार जाति का है, इसलिए जलपान वितरण में संकोच कर रहा है। यह जानकर श्री गुरुजी को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने उस स्वयंसेवक के पास जाकर डाँटकर कहा- ‘तूने संघ में यही सीखा है?’ यह कहते हुए उन्होंने जलेबी की थाली उस स्वयंसेवक के हाथों में लगभग जबर्दस्ती पकड़ायी और कहा- ‘सबसे पहले मेरी पत्तल में रख।’

वह बेचारा स्वयंसेवक रोता जाता था और वितरण करता जाता था। उसकी आँखों से गंगा-यमुना बह रही थीं, जैसे युगों-युगों का भेदभाव गलकर निकल रहा हो।

इस घटना के बाद संघ के किसी शिविर या कार्यक्रम में छूआछूत का कोई प्रसंग कभी उपस्थित नहीं हुआ। कार्य शब्दों से अधिक मुखर होते हैं (Actions speak louder than words), यह घटना इस सत्य को प्रकट करती है। श्री गुरुजी का पूरा जीवन अपने ही उदाहरण द्वारा समाज की बुराइयों को दूर करने की प्रेरक घटनाओं से भरा हुआ था। 

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