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Friday 23 August 2013

महाभारत का एक पात्र : घटोत्कच

महाभारत के युद्ध में जिन वीरों ने अपनी वीरता से चमत्कृत किया था, उनमें घटोत्कच का नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है। वह पांडवों में से एक भीम तथा राक्षस समुदाय की हिडिम्बा का पुत्र था। जब वारणावत में लाक्षागृह के षड्यंत्र से बचकर पांडव भागे थे, तो गुप्त रहने के लिए उन्होंने गंगा के पार राक्षसों के क्षेत्र में जाना उचित समझा था। वहाँ राक्षसों के राजा हिडिम्ब से भीम का युद्ध हुआ था, जिसमें हिडिम्ब की मृत्यु हुई।

भीम की वीरता से प्रभावित होकर हिडिम्ब की बहिन हिडिम्बा ने भीम से विवाह कर लिया और राक्षसों ने भीम को अपना राजा बना लिया। तभी घटोत्कच का जन्म हुआ था। उसका सिर घड़े जैसा चिकना था, इसलिए उसका ऐसा नाम रखा गया था। 2-3 वर्ष राक्षसों के क्षेत्र में रहने के बाद जब पांडव पांचाल नगरी की ओर चले, तो घटोत्कच और हिडिम्बा को राक्षस समुदाय के साथ ही रहने के लिए छोड़ दिया था, क्योंकि हिडिम्बा जाना नहीं चाहती थी।

हिडिम्बा ने अपने पुत्र को सभी युद्ध कलाओं की शिक्षा दिलवायी थी और उसे वीर बनाया था। कई वर्ष बाद जब महाभारत का युद्ध निश्चित हो गया, तो हिडिम्बा ने पांडवों की सहायता के लिए घटोत्कच को भेजा था और उसको आदेश दिया था कि पांडवों की रक्षा के लिए यदि उसे अपने प्राण भी देने पड़ें तो संकोच मत करना। घटोत्कच ने अपनी माता के इस आदेश का पूरा पालन किया था।

महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने से पहले कर्ण ने अर्जुन को मारने की प्रतिज्ञा की थी और उसके लिए इन्द्र से अपने कवच-कुंडलों के बदले अमोघ शक्ति प्राप्त कर ली थी, जिसका प्रयोग केवल एक बार किया जा सकता था। वह उस शक्ति का प्रयोग केवल अर्जुन पर करना चाहता था। इस शक्ति के कारण कृष्ण बहुत चिन्तित रहते थे और अर्जुन को सीधे कर्ण से भिड़ने से यथासम्भव बचाते थे।

पहले 10 दिन तो भीष्म पितामह के कारण कर्ण युद्ध क्षेत्र में नहीं आया, लेकिन जब भीष्म शरशैया पर पड़ गये और द्रोणाचार्य कौरवों के सेनापति बने, तो कर्ण युद्ध के मैदान में आ गया। अब कृष्ण घबराये कि अगर अर्जुन से कर्ण का मुकाबला हो गया, तो वह अपनी अमोघ शक्ति को चला देगा और अर्जुन के प्राण चले जायेंगे। इसलिए उन्होंने भीम के पुत्र घटोत्कच को कर्ण से भिड़ा दिया।

घटोत्कच बहुत बलवान था और सभी प्रकार के युद्धों में पारंगत था। राक्षसों से सम्बंधित होने के कारण उसे मायावी शक्तियाँ भी मिली हुई थीं। उसने इन शक्तियों का जमकर प्रयोग किया। वह गाजर-मूली की तरह कौरवों की सेना को काटने लगा। कौरवों के सभी हथियार उसके ऊपर बेकार हो रहे थे। उस दिन युद्ध सूर्यास्त के बाद भी चलता रहा। अंधेरे में राक्षसों की शक्तियाँ अधिक प्रबल हो जाती हैं और मनुष्यों की शक्तियाँ शिथिल हो जाती हैं। इसलिए घटोत्कच और भी अधिक घातक हो रहा था।

जब दुर्योधन ने देखा कि उसकी सेना का बुरी तरह संहार हो रहा है, तो उसने कर्ण से कहा कि तुम अपनी अमोघ शक्ति छोड़कर इसे खत्म करो। कर्ण ने कहा कि वह शक्ति तो अर्जुन के लिए रखी है, उसे फिर कैसे मारूँगा? दुर्योधन बोला- अभी तो तुम इससे पिण्ड छुड़ाओ, अर्जुन को बाद में देखा जाएगा, नहीं तो हम कल तक जीवित ही नहीं बचेंगे। मजबूर होकर कर्ण ने अपनी अमोघ शक्ति घटोत्कच पर चला दी। उससे घटोत्कच का प्राणांत हो गया।

कौरवों ने राहत की साँस ली और पांडवों के शिविर में शोक छा गया। लेकिन भगवान कृष्ण प्रसन्नता से मुस्करा रहे थे। युधिष्ठिर ने देखा, तो पूछ बैठे- ‘भगवन्, हमारा तो युवराज मारा गया है और आप मुस्करा रहे हैं, ऐसा क्यों?’ कृष्ण ने कहा- ‘घटोत्कच के मारे जाने का दुःख मुझे भी है, लेकिन मैं प्रसन्न इसलिए हूँ कि अर्जुन बच गया। अर्जुन के प्राण कहीं अधिक मूल्यवान हैं। अब उसको कोई नहीं मार सकता।’

घटोत्कच विवाहित था और उसको एक महाबलशाली पुत्र भी हुआ था- बर्बरीक। उसके बारे में विस्तार से अगली बार।

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