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Friday 9 August 2013

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार

लेखक कँवल भारती की गिरफ़्तारी सिर्फ इसलिए होना कि उन्होंने आई.ए.एस. अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन का विरोध किया था, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के लिए बेहद शर्मनाक है. उनके ऊपर इस्लाम का अपमान करने और सांप्रदायिक घृणा फ़ैलाने के आरोप लगाए गए हैं. जिस वाक्य के आधार पर ये आरोप लगाये गए हैं, उसको पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि इस सरकार की पुलिस और अधिकारियों की बुद्धि भी भ्रष्ट हो गयी है.

वह वाक्य इस प्रकार है- "आजम खान को यह काम करने से खुदा भी नहीं रोक सकता." इस वाक्य में इस्लाम का क्या अपमान हो गया? सभी लोग बोलचाल में कहा करते हैं- 'इसे तो भगवान् भी नहीं कर सकता', 'अब तुम्हें भगवान् भी नहीं बचा सकता', 'देश की हालत खुदा भी नहीं सुधार सकता' आदि-आदि. इसमें ईश्वर के सर्वशक्तिमान होने पर कोई प्रश्न चिह्न नहीं लगाया जाता है, बल्कि मानव की अपनी विवशता को बताया जाता है. ऐसे वाक्य को खुदा का अपमान मानना मूर्खता की हद है.

फिर अगर यह मान भी लिया जाए कि इसमें खुदा या भगवान की शक्ति पर संदेह किया गया है, तो उसमें इस्लाम का अपमान करने और सांप्रदायिक घृणा फ़ैलाने की बात कहाँ से आ गयी? यदि किसी आदमी ने लेखक के ऊपर ऐसा आरोप लगाया भी था, तो पुलिस अधिकारियों को चाहिए था कि उस पर साधारण मामला दर्ज करते और आगे जांच करते. पर शिकायत मिलते ही लेखक को सीधे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस बल भेज देना क्या अपने अधिकारों का दुरूपयोग नहीं? क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि पुलिस अधिकारियों की बुद्धि भी भ्रष्ट हो चुकी है?

इससे स्पष्ट है कि बात केवल इतनी नहीं है. खनन माफिया इतना बौखला गया है कि उस पर उंगली उठाने वाले किसी भी व्यक्ति की आवाज बंद करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है. उसका स्वार्थ तो समझ में आता है, लेकिन हमारे देश के नेताओं और प्रशासन को क्या हो गया है कि वे खनन माफिया के हाथों में खेलते हैं? ऐसे नेताओं और नौकरशाहों के हाथों में देश-प्रदेश का भविष्य सुरक्षित नहीं रह सकता. 

यदि उत्तर प्रदेश की सरकार इसी प्रकार माफियाओं और कठमुल्लों की कठपुतली बनी रही, तो यह निश्चित है कि अगली बार कोई भी देशभक्त नागरिक इस पार्टी को वोट देने से पहले हज़ार बार सोचेगा. अगर अखिलेश यादव की सरकार ने अपनी मुस्लिमपरस्ती में निर्लज्जता की सीमायें पार कर दीं, तो उन लोगों का कहना सच हो जायेगा, जो इस सरकार को "नमाजवादी" पार्टी की सरकार कहते हैं. अखिलेश जी, अभी समय है, संभल जाइए, वर्ना फिर पछताने के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा.

अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतांत्रिक परम्पराओं में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति को लेखक कँवल भारती और उन जैसे तमाम लेखकों के घटित और संभावित उत्पीड़न के विरुद्ध जमकर आवाज उठानी चाहिए और हर स्तर पर इसका विरोध करना चाहिए।

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