Pages

Wednesday 28 August 2013

यह है संस्कृतियों का अंतर

आस्ट्रेलिया के विरुद्ध एशेज टेस्ट श्रृंखला जीतने के बाद इंगलैंड के खिलाडियों ने पिच पर ही दारू पीते हुए जो जश्न मनाया और फिर नशे में टुन्न होकर पिच पर ही अपना पेशाब किया, उससे पाश्चात्य संस्कृति अपने नग्न रूप में सबके सामने प्रकट हो जाती है. उन्होंने यह जश्न मनाने के लिए होटल तक जाने का भी कष्ट नहीं किया, यहाँ तक कि मूत्र विसर्जित करने के लिए मूत्रालय जाने में भी तौहीन समझी.

जिस ओवल को क्रिकेट के क्षेत्र में अत्यंत सम्मान के साथ याद किया जाता है, जिस की पिच के आकार की अंडाकार आकृति को भी 'ओवल' कहकर पुकारा जाता है, उसी ओवल की पिच का यह अपमान सम्पूर्ण क्रिकेट जगत के लिए घोर शर्मनाक है. इसकी जितनी भर्त्सना की जाये, कम है.

दूसरी और जब हम अपने देश के खिलाडियों के व्यवहार की तुलना करते हैं, तो हमारी और उनकी संस्कृतियों का अंतर स्पष्ट हो जाता है. हमारे यहाँ जब कोई पहलवान अखाड़े में उतरता है, चाहे कुश्ती लड़ने के लिए या अभ्यास करने के लिए, तो सबसे पहले उस अखाड़े की मिट्टी को अपने मस्तक से लगाकर सम्मान देता है. इसी तरह कबड्डी खेलने वाला कोई खिलाड़ी कबड्डी के मैदान में घुसने से पहले उसकी मिट्टी को सर से लगाकर सम्मान प्रदर्शित करता है.

यह है दोनों संस्कृतियों का अंतर. भारतीय संस्कृति महान है और रहेगी.

No comments:

Post a Comment