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Monday 2 September 2013

यह मीडिया शर्म-निरपेक्ष है

मेरा पिछला हास्य-व्यंग्य लेख 'मीडिया द्वारा बलात्कार' भारतीय मीडिया द्वारा अपनी शक्ति के दुरूपयोग को उजागर करता है. पिछले दिनों सरकारी की नालायकी, रुपये की इज्जत घटने, आतंकवाद, घोटालों, बलात्कारों आदि से ज्यादा चर्चा मीडिया द्वारा चरित्र-हनन और फिर उसकी पिटाई की हुई है. मैं यह तो नहीं कहूँगा कि मीडिया वालों की पिटाई करना उचित है, लेकिन यह जरुर कहूँगा कि जिस प्रकार मीडिया कुछ विशेष लोगों का चरित्र-हनन करती है, उसको देखते हुए इस प्रकार लोगों द्वारा अपना आक्रोश दिखाना स्वाभाविक है. वैसे गलती मीडिया-कर्मियों की बिलकुल नहीं है, यह तो ऊपर बैठे संपादकों-समाचार संपादकों और उनसे भी ऊपर उनके मालिकों की करतूत है, जो धन कमाने और अपने चैनल या अखबार का महत्त्व बढाने के लिए कुछ ख़ास लोगों को निशाने पर लेते हैं और शेष को छोड़ देते हैं. मीडिया कर्मी तो बेचारे उनके हुकुम के गुलाम हैं और अपनी रोटी कमा रहे हैं. उन पर गुस्सा उतारना ठीक नहीं.

लेकिन मीडिया वाले भारत में मिली हुई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो घोर दुरूपयोग कर रहे हैं, वह क्षमा करने योग्य नहीं है. इसको कुछ उदाहरणों द्वारा सिद्ध करूँगा.

एक समय था जब मीडिया ने कांची के शंकराचार्य के विरुद्ध हर प्रकार का घृणात्मक  प्रचार किया था, उनको चरित्रहीन सिद्ध करने कि कोशिश की गयी थी, जेल भिजवाया गया था. सारा मामला झूठा था और सत्ता के दुरूपयोग का घोर उदाहरण था. लेकिन मामला दर्ज होने को ही मीडिया ने उसे सिद्ध मान लिया और अपने आप सजा भी सुना दी. लेकिन कई महीने जेल में रहने के बाद जब वे बेदाग़ छूटे, तो किसी भी चैनल ने उनसे माफ़ी नहीं मांगी और न खेद व्यक्त किया. मीडिया ने इस समाचार को बड़ी सफाई से दबा दिया. 

इसी प्रकार मीडिया ने स्वामी राम देव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ बेहूदा प्रचार अभियान चलाया था, जो आगे चलकर टांय-टांय फिस्स हो गया. इस मामले पर सीबीआई ने बार-बार झूठ बोला था, लेकिन मीडिया ने इस झूठ पर सवाल उठाने के बजाय उस पर लीपा-पोती कर दी. इनसे मीडिया की चिढ़ का कारण यह है कि इन्होने बहुराष्ट्रीय ठंडा पेय कंपनियों का धंधा आधा कर दिया था, जिनसे मीडिया को करोड़ों-अरबों के विज्ञापन मिलते हैं.

लेकिन हिन्दू संतों-महात्माओं के पीछे हाथ धोकर पड़ जाने यही मीडिया मुस्लिम कठमुल्लों के बारे में एक शब्द भी नहीं बोलता. उदाहरण के लिए, दिल्ली कि जामा मस्जिद के इमाम बुखारी के खिलाफ देश भर की अदालतों से न जाने कितने जमानती और गैर-जमानती वारंट निकल चुके हैं, परन्तु यह तथाकथित सेकुलर मीडिया उसको गिरफ्तार करने की बात कभी नहीं करता. 

हिन्दुओं के प्रति चिढ़ और मुसलामानों के प्रति पक्षपात का यह अकेला उदाहरण नहीं है. अभी कुछ दिन पहले दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड में पकड़े गए अपराधियों में से एक राम सिंह का नाम मीडिया बार-बार ले रहा था. वे जिस प्रकार 'राम' शब्द पर जोर देते थे, उससे उनका काइयांपन उजागत हो जाता है. यही मीडिया उसी काण्ड में पकडे गए अपराधी मुहम्मद अफरोज, जो खुद को नाबालिग बताता है, का नाम एक बार भी नहीं ले रहा था, क्योंकि उसके नाम में 'मुहम्मद' शब्द जुड़ा हुआ है, जो बहुत पवित्र है. मीडिया के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि इस पवित्र नाम वाले अपराधी ने ही सबसे अधिक क्रूरता की थी.

इसी प्रकार पिछले आठ साल से आतंकवाद के आरोप में जेल में यातनाएं झेल रहे कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा सिंह के बारे में बोलने के लिए मीडिया की जबान को लकवा मार जाता है. मीडिया एक बार भी यह मांग नहीं करता कि या तो उनका दोष सिद्ध किया जाए या उनको रिहा कर दिया जाए. यह कार्य उसने सोशल नेटवर्किंग साइटों के ऊपर छोड़ दिया है.

इस तरह के अनगिनत उदाहरण हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि हमारे देश का मीडिया निर्लज्जता की हद तक हिन्दू-विरोधी और मुस्लिम-परस्त है. इसलिए मैं इसको शर्म-निरपेक्ष कहता हूँ, जिसका वास्तविक अर्थ है महा-बेशर्म. यदि कभी जनता का आक्रोश ऐसे मीडिया पर निकलता है तो उसे क्षम्य माना जा सकता है. 




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