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Wednesday 11 September 2013

महाभारत का एक पात्र : बर्बरीक

यह महाभारत का ऐसा पात्र है, जिसने युद्ध में भाग लेने की तीव्र इच्छा होते हुए भी मजबूरीवश युद्ध में कोई भाग नहीं लिया था। बताया जाता है कि वह भीम और हिडिम्बा का पौत्र तथा घटोत्कच का पुत्र था। वह युद्ध में शायद पांडवों की सहायता करने के लिए आ रहा था। उसकी माता ने उससे कहा था कि जो कमजोर पक्ष हो, उसकी ओर से लड़ना। उसकी माता ने सोचा होगा कि पांडवों के पास सेना कम है और उनका पक्ष कमजोर है, इसलिए वह पांडवों की ओर से ही लड़ेगा।

कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने उसके मन की थाह लेने के लिए ब्राह्मण का रूप बनाया और उससे पूछा कि वह कितना बलवान है। उसने बताया कि मैं एक ही वाण से समस्त सृष्टि का विनाश कर सकता हूँ। उसकी परीक्षा लेने के लिए भगवान ने उससे कहा कि वह एक ही वाण से एक पेड़ के सभी पत्तों को बींध कर दिखाए। उसने वैसा ही कर दिखाया, तो कृष्ण की आँखें आश्चर्य से फटी रह गयीं। उन्होंने पूछा कि तुम किसकी ओर से लड़ोगे? तो बर्बरीक ने कहा कि अपनी माता के आदेश के अनुसार जो पक्ष हार रहा होगा, मैं उसकी ओर से लड़ूँगा। तब भगवान ने सोचा कि यह तो बड़ा खतरनाक है, यह कभी पांडवों को जीतने नहीं देगा। इसलिए उन्होंने तत्काल सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया।

सिर कट जाने पर उसे पता चला कि ब्राह्मण के वेष में ये स्वयं भगवान कृष्ण हैं, तो वह प्रसन्न हो गया। भगवान ने उसकी इच्छा पूछी, तो उसने बताया कि मैं महाभारत युद्ध को देखना चाहता हूँ। इस पर भगवान ने उसके कटे हुए सिर को एक पेड़ या पहाड़ी के ऊपर ऐसे सुरक्षित स्थान पर रख दिया, जहाँ से वह पूरे कुरुक्षेत्र को देख सकता था। उसके सिर ने वहीं से पूरा युद्ध देखा।

युद्ध के बाद किसी ने उससे पूछा कि युद्ध में सबसे अधिक वीरता किसने दिखायी थी, तो उसने बताया कि मैंने तो सब तरफ केवल कृष्ण के सुदर्शन चक्र को ही चलते देखा है।

बर्बरीक की इस कहानी में विश्वसनीयता कम है। यह कहानी मूल महाभारत का अंग नहीं है, बल्कि बाद में मिलाई गयी और किंवदन्तियों का रूप लगती है। ऐसा सन्देह करने के कई कारण हैं। पहली बात तो यह है कि यदि उसकी माता ने उसे पांडवों की सहायता के लिए भेजा था, तो वह गोल-मोल बात क्यों करेगी? वह तो साफ-साफ कहेगी कि तुम्हें अपने पितामह पांडवों की ओर से ही लड़ना है, जैसे कि उसका पिता घटोत्कच लड़ा था।

दूसरी बात, यह कहीं स्पष्ट नहीं है कि उसने धनुर्वेद की शिक्षा किससे प्राप्त की और ऐसी दिव्य शक्तियाँ उसके पास कहाँ से आयीं, जो उसके पिता घटोत्कच और पितामह अर्जुन के पास भी नहीं थीं। तीसरी बात, जब उसने पूरा युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की, तो भगवान कृष्ण ने उसके साथ धोखा क्यों किया और केवल अपना सुदर्शन चक्र चलते हुए क्यों दिखाया? इससे यही लगता है कि बर्बरीक की सारी कहानी कपोल-कल्पित है।

वैसे बर्बरीक को भारतीय समाज में आज भी याद किया जाता है। ब्रज के गाँवों में शारदेय नवरात्रियों में तीन तिलंगों से बने टेसू के रूप में उसकी पूजा की जाती है। उसे कृष्ण का रूप माना जाता है और खाटू वाले श्याम जी के नाम से उसकी पूजा प्रायः सम्पूर्ण उत्तर भारत में की जाती है। वह हारने वाले पक्ष की सहायता को आया था, इसलिए उसे ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है, अर्थात् जिसका कोई सहारा न हो, वह खाटू वाले श्याम जी को अपना सहारा मान सकता है। 

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