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Monday 23 September 2013

आतंकवाद का धर्म

‘आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता।’ यह बात हमें रोज सुबह-शाम दिन-रात गरज कि पाँचों वक्त याद दिलायी जाती है और उम्मीद की जाती है कि हम इसको सही मान लें और इस पर विश्वास कर लें। लेकिन यह बात कितनी खोखली है, इसका पता भी हमें रोज चल जाता है। कश्मीर से केन्या तक, पाकिस्तान से अमेरिका तक, चीन से यूरोप तक दुनिया में हर जगह आतंकवादी अपनी करतूतों से साबित कर देते हैं कि उनका एक ‘धर्म’ है और जो उस तथाकथित धर्म को नहीं मानता, उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। दुनिया का कोई कोना इन ‘धार्मिकों’ के असर से अछूता नहीं है।

भारत में भी इस बात के खोखलेपन के प्रमाण रोज सामने आ जाते हैं। कहीं किसी आतंकवादी को अदालत फाँसी की सजा सुनाती है, तो उसके ‘धर्म’ वालों के वोटों के सौदागर सामने आ जाते हैं और चीखने लगते हैं कि ‘न....न....न, इसको फाँसी मत दो, नहीं तो उस धर्म के मानने वाले नाराज हो जायेंगे।’ जब भी मुठभेड़ में कोई आतंकवादी मारा जाता है, उसको बेटा-बेटी या दामाद बताने वाले छातियाँ पीटने लगते हैं कि ‘हाय ! एक शांतिप्रिय निर्दोष बच्चे को मार डाला।’ वे चाहते हैं कि हम या तो आतंकवादियों को खुला घूमने दें या उनको दामाद बनाकर रोज बिरयानी खिलाते रहें।

इस धर्म के झंडाबरदार कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि क्या कारण है कि इस धर्म को मानने वाले आतंकवादी पूछ-पूछकर और छाँट-छाँटकर गैर-धर्मों को मानने वालों के सीने में गोलियाँ उतारकर आनन्द का अनुभव करते हैं? क्या कारण है कि इस धर्म को मानने वाला शान्तिप्रिय आदमी सैकड़ों गैर-धर्म वाले निर्दोष लोगों की जान लेने के लिए खुद को विस्फोट से उड़ाने में कोई संकोच नहीं करता?

केवल जन्नत जाने और वहाँ असीमित शराब के साथ 72 हूरें पाने का लालच इसका अकेला कारण नहीं हो सकता। अवश्य ही उस धर्म के चिन्तन और मान्यताओं में कोई मौलिक गलती है, जिसके कारण यह ‘शान्तिप्रिय धर्म’ सारे संसार में अशांति और रक्तपात का कारण बना हुआ है। इस चिन्तन में चूक कहाँ पर है? जब इस सवाल का जबाब मिल जायेगा, तो आतंकवाद भी समाप्त होने लगेगा, वरना इसी तरह आम लोगों की जानें जाती रहेंगी और हम ‘कड़ी  कार्यवाही करने’ की चेतावनी देते रहेंगे।

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