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Sunday 15 September 2013

मुज़फ्फर नगर के कुछ सबक

मुज़फ्फर नगर और आस-पास के दंगों के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा जा चूका है. मैं उसे दोहराकर अपना और आपका समय नष्ट नहीं करना चाहता, बल्कि इन घटनाओं से मिलने वाले कुछ सबकों की चर्चा करूँगा, ताकि ऐसी घटनाओं को दोहराने से रोका जा सके. बुद्धिमान वह है जो इतिहास से कुछ सीख ले ले, हालाँकि इतिहास हमें केवल यही सिखाता है कि इतिहास से आज तक किसी ने कुछ नहीं सीखा. फिर भी हम मुज़फ्फर नगर की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से निम्नलिखित बातें सीख सकते हैं- 

1. केवल एक समुदाय का तुष्टीकरण करने से वह समुदाय भले ही प्रसन्न हो जाये, लेकिन अन्य समुदायों में उसके प्रति अलगाव और ईष्र्या की भावना इतनी प्रबल हो जाती है कि उसका विस्फोट होने के लिए एक छोटी सी चिनगारी काफी है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार ने पूरी ताकत से मुस्लिम तुष्टीकरण किया है, वह भी अन्य समुदायों का हक मारकर। इसके बारे में मैं कई बार पहले भी लिख चुका हूँ और चेतावनी भी दे चुका हूँ। पर उनका कोई असर नहीं हुआ। अन्ततः वह हो गया, जो नहीं होना था।

2. देश में कुछ व्यक्ति और दल ऐसे हैं, जिनकी पूरी राजनीति ही दंगों और लाशों के आधार पर चलती है। वे भले ही दूसरों को दंगों पर राजनीति न करने के उपदेश देते हों, लेकिन वे स्वयं हमेशा ऐसा ही करते रहे हैं। उदाहरण के लिए, गुजरात के 2002 के दंगों को वे दिन-रात कोसते रहते हैं, लेकिन अपने शासन में हुए दंगों को मात्र जातीय संघर्ष कहकर तुच्छ बताने की कोशिश करते हैं। यदि ऐसे शासन में कानून-व्यवस्था चौपट है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

3. यह मात्र संयोग नहीं है कि उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद अब तक केवल तीन बार सेना को कानून-व्यवस्था बनाने के लिए बुलाना पड़ा है, 1990 में, 2005 में और 2013 में और तीनों बार प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार रही है। इससे यही सिद्ध होता है कि इस पार्टी के सत्ता में आते ही गुंडे-बदमाशों के हौसले बुलन्द हो जाते हैं और वे स्वच्छन्द हो जाते हैं। इस पार्टी की सरकार आते ही शासन का राजनीतिकरण हो जाता है, जिससे पक्षपात और संरक्षण के कारण कानून व्यवस्था बिगड़ जाती है। इसकी परिणिति अन्ततः कानून व्यवस्था की समाप्ति और दंगों में होती है।

4. मुस्लिम समुदाय आज तक अपने सच्चे हितैषी व्यक्तियों और दलों की पहचान नहीं कर सका है। इसलिए वे बहुत जल्दी उन लोगों से प्रभावित हो जाते हैं, जो उनके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करके कुछ टुकड़े डाल देते हैं। ऐसे लोग और दल न केवल उनके वोटों का सौदा करते हैं, बल्कि जानबूझकर उन्हें मौत के मुँह में ले जाते हैं और फिर बचाने का नाटक करके उनके हितैषी बनकर आ जाते हैं। ऐसे दल ही मुस्लिम समुदाय के विकास और मुख्य धारा में उनके शामिल होने में सबसे बड़ी बाधा हैं। जिस दिन मुसलमान इस बात को समझ लेंगे, उसी दिन देश से साम्प्रदायिकता की समस्या समाप्त हो जायेगी।

सबक और भी हो सकते हैं, पर अभी इतने ही।

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