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Friday 5 July 2013

महाभारत का एक पात्र - युयुत्सु

यह बात तो सभी जानते हैं कि धृतराष्ट्र के गांधारी से सौ पुत्र थे। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि धतराष्ट्र का एक पुत्र और था, जो एक वणिक वर्ग की महिला दासी से उत्पन्न हुआ था। उसका नाम था- युयुत्सु। जिस प्रकार दासी से उत्पन्न होने पर भी विदुर जी को राजकुमारों का सा सम्मान दिया गया था, उसी प्रकार युयुत्सु को भी राजकुमारों जैसा सम्मान और अधिकार प्राप्त था, क्योंकि वह धृतराष्ट्र का पुत्र था।

राजकुमारों की तरह ही उसकी भी शिक्षा-दीक्षा हुई और वह काफी योग्य सिद्ध हुआ। वह एक धर्मात्मा था, इसलिए दुर्योधन की अनुचित चेष्टाओं को बिल्कुल पसन्द नहीं करता था और उनका विरोध भी करता था। इस कारण दुर्योधन और उसके अन्य भाई उसको महत्व नहीं देते थे और उसका मजाक भी उड़ाते थे। उसने युद्ध रोकने का अपने स्तर पर बहुत प्रयास किया था और दरबार में भी ऐसे ही विचार प्रकट करता था, लेकिन उसकी बात नक्कारखाने में तूती की तरह बनकर रह जाती थी।

जब महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने वाला था, तो वह भी मजबूरीवश दुर्योधन के पक्ष में लड़ने के लिए मैदान में उपस्थित हो गया था। उसी समय युद्ध प्रारम्भ होने से ठीक पहले महाराज युधिष्ठिर ने कौरव सेना को सुनाते हुए घोषणा की - ‘मेरा पक्ष धर्म का है। जो धर्म के लिए लड़ना चाहते हैं, वे अभी भी मेरे पक्ष में आ सकते हैं। मैं उसका स्वागत करूँगा।’ इस घोषणा को सुनकर केवल युयुत्सु कौरव पक्ष से निकलकर आया और पांडव पक्ष में शामिल हो गया। युधिष्ठिर ने गले लगाकर उसका स्वागत किया। कौरवों ने उसको बनिया-महिला का बेटा और कायर कहकर अपमानित किया। लेकिन उसने अपना निर्णय नहीं बदला।

महाभारत के युद्ध में युयुत्सु ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। युधिष्ठिर ने उसको सीधे युद्ध के मैदान में नहीं उतारा, बल्कि उसकी योग्यता को देखते हुए उसे योद्धाओं के लिए हथियारों और रसद की आपूर्ति व्यवस्था का प्रबंध देखने के लिए नियुक्त किया। उसने अपने इस दायित्व को बहुत जिम्मेदारी के साथ निभाया और अभावों के बावजूद पांडव पक्ष को हथियारों और रसद की कमी नहीं होने दी।

युद्ध के बाद भी उसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। महाराज युधिष्ठिर ने उसे अपना मंत्री बनाया। धृतराष्ट्र के लिए जो भूमिका विदुर जी ने निभाई थी, लगभग वही भूमिका युधिष्ठिर के लिए युयुत्सु ने निभाई थी। इतना ही नहीं, जब युधिष्ठिर महाप्रयाण करने लगे और उन्होंने परीक्षित को राजा बनाया, तो युयुत्सु को उसका संरक्षक बना दिया। इतिहास गवाह है कि युयुत्सु ने इस दायित्व को भी अपने जीवने के अंतिम क्षण तक पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया था।

यह माना जाता है कि आजकल के उत्तर प्रदेश के पश्चिमी और राजस्थान के पूर्वी भागों में रहने वाले जो जाट जाति के लोग हैं वे उन्हीं महात्मा युयुत्सु के वंशज हैं।

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