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Saturday 9 February 2013

महाभारत के लिए दोषी - 3


4- दुर्योधन
जो व्यक्ति युद्ध के लिए सबसे अधिक लालायित था और जिसने यह घोषणा की थी कि मैं बिना युद्ध के सुई की नोंक के बराबर भूमि भी नहीं दूँगा, उस दुर्योधन को महाभारत युद्ध के लिए केवल एक पाठक श्री चन्द्र प्रकाश ने सीधे जिम्मेदार ठहराया है। उसका पूरा जीवन केवल र्ष्या, द्वेष और प्रतिशोध से भरा हुआ था। उसने बचपन में ही भीम को विष देकर मार डालने का प्रयत्न किया था, जिससे वे नागों की सहायता से ही बच सके थे। थोड़ा बड़ा होने पर उसने वारणावत में पांडवों को जीवित जलाकर मार डालने का षड्यंत्र किया था, जिसे विदुर जी ने अपनी सूझ-बूझ से विफल कर दिया था। उसे पांडवों का अस्तित्व तक स्वीकार नहीं था। उसने अज्ञात कुल-गोत्र वाले कर्ण को अपना मित्र बनाकर अंग प्रदेश का राज्य दे दिया था, केवल इसलिए कि वह धनुष युद्ध में अर्जुन के समकक्ष था। वह परिवार के किसी भी वरिष्ठ व्यक्ति की कोई बात नहीं मानता था और कई बार उनके साथ उद्दंडता का व्यवहार कर देता था। वह केवल अपने मामा शकुनि के कहने पर चलता था और केवल उसको ही अपना हितैषी समझता था। वह अपनी माता का कहना भी नहीं मानता था और अपने अंधे पिता पर दबाब डालकर मनमाने निर्णय करा लेता था। उसने महायुद्ध रोकने के सभी प्रयत्नों को विफल कर दिया था। इसलिए दुर्योधन को महाभारत युद्ध के लिए दोषी पात्रों की सूची में इतना ऊपर रखा गया है।

3- शकुनि
केवल तीन पाठकों श्री राजीव गुप्ता, श्री अर्जुन और श्री लक्ष्मी कान्त ने शकुनि को महाभारत युद्ध के लिए सबसे अधिक दोषी ठहराया है। गांधार का यह राजकुमार समस्त कुरुवंश और विशेष रूप से भीष्म से इसलिए नाराज था कि उन्होंने उसकी सर्वगुण सम्पन्न सुन्दरी बहिन को एक जन्मांध से जबर्दस्ती ब्याह दिया। इससे क्षुब्ध होकर उसकी बहिन गांधारी ने अपनी आँखों पर स्वयं ही पट्टी बाँध ली। इसी का बदला लेने के लिए शकुनि ने  हस्तिनापुर में ही रहकर पांडवों और कौरवों के बीच वैमनस्य के बीज बोये, ताकि उस वंश का पूर्ण विनाश हो जाये। एक ओर तो वह धृतराष्ट्र को यह याद दिलाता रहा कि जन्मांध होने के कारण उनको राजसिंहासन से वंचित रखकर अन्याय किया गया है, तो दूसरी ओर वह दुर्योधन का हितैषी होने का नाटक करता रहा और उसे हमेशा भड़काता रहा, ताकि पांडु और धृतराष्ट्र की सन्तानों में कभी मेल न हो और वे आपस में लड़कर नष्ट हो जायें। वह अपने इस उद्देश्य में पूर्ण सफल रहा। उसने दुर्योधन को कभी भी पांडवों के प्रति कोमल नहीं होने दिया। वह दुर्योधन के सभी षड्यंत्रों में भागीदार ही नहीं, उनका मूल योजनाकार था। इसलिए यह उचित ही है कि उसे महाभारत युद्ध के लिए दोषी लोगों में काफी ऊपर रखा गया है।

2- धृतराष्ट्र
लगभग सभी विचारक धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार पात्रों में से एक मानते हैं। 5 ब्लागरों-पाठकों श्री प्रवीण शर्मा, श्री आर्यन, श्री प्रसन्न प्रभाकर, श्री गोपाल और श्री नरेश ने उनको सबसे अधिक दोषी माना है। धृतराष्ट्र कभी इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाये कि जन्मांध होने के कारण वे राजा बनने के अधिकारी नहीं थे। वे इसे अपने साथ किया गया अन्याय मानते रहे और पांडु के प्रतिनिधि के रूप में राजसिंहासन पाने पर भी उसे अपना ही समझते रहे। इतना ही नहीं उन्होंने पांडु के बड़े पुत्र युधिष्ठिर, जो न केवल वय में सबसे बड़े थे, बल्कि राजसिंहासन के लिए सर्वथा योग्य भी थे, के साथ हमेशा अन्याय किया।

युधिष्ठिर के वापस आते ही उन्हें राज्य सौंप देना चाहिए था, क्योंकि वे ही पांडु के सही उत्तराधिकारी थे। लेकिन धृतराष्ट्र सिंहासन से चिपके रहे। उन्होंने युधिष्ठिर के बजाय अपने अयोग्य पुत्र दुर्योधन को युवराज बना दिया और उसे राज्य सौंपने की योजनायें बनाते रहे। उनको भगवान वेदव्यास, विदुर जी, भीष्म और गांधारी तक ने बार-बार समझाया था कि वे जो कर रहे हैं, उससे कुरुवंश विनाश की ओर बढ़ रहा है। परन्तु वे न माने और पुत्र-मोह में वंश का सर्वनाश होते देखते रहे। वे केवल शकुनि और दुर्योधन की बातों पर विश्वास करते थे। वे अपने वास्तविक हितैषी विदुर जी की बातों से वे इतना चिढ़ते थे, मानो वे उनके महामंत्री न होकर शत्रु हों।

ऐसा लगता था कि उनकी बाहर की ही नहीं अन्दर की आँखें भी फूट गयी थीं। उनकी यही बुद्धिहीनता और पांडवों के प्रति आन्तरिक घृणा ही उनके वंश के विनाश का कारण बनी। एक राजा होने के नाते यह उनका दायित्व था कि वे हस्तिनापुर राज्य और अपनी प्रजा को विनाश से बचायें, परन्तु वे अपने इस दायित्व को निभाने में पूरी तरह असफल रहे। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि विदुर जी ने उनके अयोग्य होने का जो मत व्यक्त किया था, वह पूर्णतः सत्य था। यह जानते हुए भी कि उनके पुत्र दुर्योधन और साले शकुनि ने पांडवों को वारणावत में जलाकर मारने का षड्यंत्र किया था, उन्होंने उनको कोई दंड नहीं दिया। यदि वे केवल शकुनि को ही तत्काल हस्तिनापुर से निकाल देते, तो भी कुरुवंश विनाश से बच जाता। उन्होंने अपने पुत्र को राजा बनाने के लिए हस्तिनापुर राज्य के दो टुकड़े कर दिये और इस प्रकार गृहयुद्ध का बीज बो दिया। इसलिए यदि धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध के लिए बहुत अधिक जिम्मेदार माना जाता है, तो उचित ही है।

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