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Saturday 9 February 2013

महाभारत के लिए दोषी - 2



7- कर्ण
कर्ण को भी किसी पाठक ने सर्वाधिक दोषी नहीं ठहराया है, लेकिन वह भी दोषमुक्त नहीं है। अपनी हीनभावना के कारण उसने ही दुर्योधन को यह सलाह दी थी कि द्रोपदी के वस्त्र उतरवा सकते हो। उसने द्रोपदी को वेश्या कहकर भी अपमानित किया। ये घटनायें ही पांडवों के रोष को प्रज्ज्वलित करने का मूल कारण बनीं। उसने एक बार भी दुर्योधन को युद्ध से रोकने का प्रयास नहीं किया, बल्कि हमेशा दुर्योधन को यह विश्वास दिलाता रहा कि युद्ध को तो मैं अकेला ही जीत लूँगा। यहाँ तक कि जब पांडवों ने गंधर्वों के चंगुल से दुर्योधन को बचाया था और ग्लानिवश दुर्योधन जलकर मर जाने को तैयार हो गया था, तो कर्ण ने ही उसे रोका था और यह वचन दिया था कि मैं पांडवों से तुम्हारे अपमान का बदला लूँगा। इसलिए कर्ण भी महाभारत के लिए दोषी था, हालांकि उसका दोष अन्य कई पात्रों की तुलना में कम था, जैसा कि हम आगे देखेंगे।

6- द्रोणाचार्य
दो पाठकों श्री सचिन सोनी और श्री विक्रम यादव ने द्रोणाचार्य को महाभारत युद्ध के लिए सर्वाधिक दोषी माना है, हालांकि चुन्नू जी ने उनके तर्कों को जमकर विरोध किया है। सचिन जी का कहना है कि द्रोणाचार्य दुर्योधन को सही शिक्षा देने में असफल रहे, इसलिए वे दोषी हैं। मेरे विचार से यह आरोप मूलतः गलत है। प्रत्येक शिक्षक अनेक छात्रों को पढ़ाता है, लेकिन सभी बराबर के योग्य नहीं होते। अपनी-अपनी प्रवृत्ति के अनुसार वे कम या अधिक योग्य बनते हैं। उन्होंने दुर्योधन को भी वही शिक्षा दी थी, जो कि युधिष्ठिर को दी थी। लेकिन उनकी शिक्षा को दुर्योधन का मामा शकुनि व्यर्थ कर देता था, वह लगातार अपने भांजे को पांडवों के प्रति भड़काता रहता था। एक वेतनभोगी शिक्षक के रूप में वे इससे अधिक कुछ नहीं कर सकते थे। इसलिए द्रोणाचार्य महाभारत युद्ध के लिए अधिक दोषी नहीं ठहराये जा सकते। उन्होंने भी युद्ध रोकने का प्रयास किया था, परन्तु जब बड़े-बड़ों के प्रयास बेकार हो गये, तो वे अकेले क्या कर सकते थे। फिर भी वे दोषी थे, क्योंकि उन्होंने केवल आजीविका के लिए असत्य का साथ दिया और इस भूल का मूल्य उन्हें अपने प्राण देकर चुकाना पड़ा।

5- द्रोपदी
यह मेरे लिए घोर आश्चर्यजनक है कि भीष्म के बाद सबसे अधिक संख्या में पाठकों ने द्रोपदी को महाभारत युद्ध के लिए सबसे ज्यादा दोषी माना है। उनको 5 व्यक्तियों चन्द्र प्रकाश जी, अर्जुन जी, गोपाल जी, विनोद शर्मा जी एवं रवि दत्त जी ने सबसे अधिक दोषी ठहराया है। इन सबकी राय इस धारणा पर आधारित है कि यदि द्रोपदी दुर्योधन को ‘अंधे की औलाद’ न कहती, तो यह युद्ध न होता। सबसे पहली बात तो यह है कि यह धारणा पूरी तरह गलत है। व्यास कृत महाभारत में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि द्रोपदी ने कभी इन शब्दों का प्रयोग या उच्चारण किया था। यह किसी धूर्त की अपनी कल्पना है। द्रोपदी जैसी सुशिक्षित और सुसंस्कृत नारी अपने वरिष्ठ ससुर के लिए ऐसे शब्द का प्रयोग करेगी, यह कदापि विश्वसनीय नहीं है।

यदि वादी-तोष न्याय से यह मान भी लिया जाये कि द्रोपदी ने दुर्योधन से ऐसे शब्द कभी कहे थे, तो भी महाभारत युद्ध का यह अकेला कारण नहीं हो सकता। इस तथाकथित अपमान से काफी पहले से ही दुर्योधन सभी पांडवों से द्वेष मानता था। उसने उनको वारणावत में जलाकर मार डालने का भी षड्यंत्र किया था, जिसमें से वे विदुर जी की सूझ-बूझ से ही जीवित निकल पाये थे। द्रोपदी स्वयंवर के समय से ही वह द्रोपदी से घृणा करता था। एक तो वह उसे पाने में असफल रहा था और दूसरे द्रोपदी ने उसके मित्र कर्ण को सूत-पुत्र होने के कारण वरण करने से इनकार कर दिया था। तीसरे, द्रोपदी का विवाह पांडवों के साथ हो गया था, जिनको वह अपना भाई नहीं शत्रु मानता था। इतने कारण दुर्योधन को उत्तेजित और पागल करने के लिए पर्याप्त थे। इसमें ‘अंधे का पुत्र’ जैसे शब्दों के होने या न होने से कोई अन्तर पड़ने वाला नहीं था। इसलिए द्रोपदी को दोषी नहीं माना जा सकता।

फिर भी मैंने इस सूची में द्रोपदी को अन्य कई पात्रों से ऊपर पाँचवें क्रम पर रखा है तो उसका कारण यह है कि अपने चीरहरण के बाद उसने कौरवों का समूल नाश करके अपने अपमान का बदला लेने का प्रण कर लिया था। उसने अपने बाल खोल लिये थे और वह अपने पतियों को लगातार याद दिलाती रहती थी कि उन्हें उसके अपमान का बदला लेना है। इसी कारण वह 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के समय अपने मायके में सुरक्षित रहने के बजाय अपने पतियों के साथ ही वन-वन भटकने को तैयार हुई थी। यदि पांडव उसके अपमान को बदला लेने को तैयार न होते, तो वह अपने पिता और भाइयों को कौरवों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए मजबूर कर देती। इसलिए द्रोपदी को महाभारत युद्ध के लिए बहुत सीमा तक दोषी ठहराया जा सकता है। लेकिन उसका दोष कुछ अन्य पात्रों की तुलना में फिर भी कम था, जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे।

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