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Wednesday 27 November 2013

अस्वीकृत करने का अधिकार

काफी कहने-सुनने और इंतजार के बाद चुनाव आयोग ने मतदाताओं को अपने चुनाव क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों को अस्वीकृत करने का अधिकार दिया है। इस अधिकार को 'None Of The Above' अर्थात् ‘उपरोक्त में किसी को नहीं’ अथवा ‘कोई नहीं’ और संक्षेप में ‘नोटा’ कहा जा रहा है। आगे होने वाले सभी चुनावों में सभी प्रत्याशियों के बटनों के अलावा एक ‘नोटा’ का बटन भी इलैक्ट्रानिक मतदान मशीनों में होगा, जिसे दबाकर मतदाता सभी प्रत्याशियों को अस्वीकृत कर सकता है।

यह अधिकार देकर चुनाव आयोग ने 'सभी प्रत्याशियों को अस्वीकृत करने' की अवधारणा को मान्यता प्रदान की, इसके लिए उसे धन्यवाद दिया जाना चाहिए। लेकिन खेद है कि अभी भी यह अधिकार अधूरा और लगभग निरर्थक है। इसका कारण यह है कि मतगणना में ऐसे मतों को पूरी तरह उपेक्षित या निरस्त कर दिया जाएगा। इसका प्रभाव ठीक उतना ही होगा, जितना किसी मतदाता द्वारा अपना वोट न डालने का होता है। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि अभी भी चुनाव आयोग ऐसे मतदाताओं के मत को कोई महत्व देने को तैयार नहीं है, जो सभी प्रत्याशियों को अयोग्य मानते हैं।

पिछले चुनावों में कई ऐसे समाचार पढ़ने को मिले थे, कि कुछ मतदाताओं ने किसी प्रत्याशी को वोट देने के बजाय ऐसी बातें लिखकर मतपेटी में डाल दी थीं- ‘सभी चोर हैं’, ‘सभी खून चूसने वाले हैं’ आदि। ऐसे मतों को गणना के समय निरस्त कर दिया जाता था। यदि किसी क्षेत्र में सभी अयोग्य प्रत्याशी खड़े हो जाते हैं, तो प्रबुद्ध मतदाता वोट डालने के लिए घर से न निकलना ही ठीक समझता है। सभी को अस्वीकृत करने का अधिकार मिल जाने से यह आशा की जा रही थी कि अब ऐसे प्रबुद्ध मतदाताओं को अपनी भावनायें व्यक्त करने का कानूनी मार्ग मिल जाएगा। लेकिन ‘नोटा’ से यह आशा पूरी नहीं होती।

वर्तमान रूप में ‘नोटा’ का अधिकार चुनाव आयोग द्वारा प्रबुद्ध मतदाताओं के साथ किया गया एक भद्दा मजाक है। यदि चुनाव आयोग ‘नोटा’ बटन को दबाने की गिनती भी नहीं करना चाहता, तो फिर इस अधिकार का कोई अर्थ नहीं है। यदि मतदाता को यह पता होगा कि उसका मत रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाएगा, तो वह मतदान करने जाने का कष्ट ही क्यों करेगा। अगर वर्तमान ‘नोटा’ से यह आशा की जा रही है कि इससे मतदान प्रतिशत बढ़ जाएगा, तो वह आशा कभी पूरी नहीं होगी, बल्कि मतदान प्रतिशत गिरने की पूरी संभावना है।

इसलिए चुनाव आयोग को चाहिए कि ‘नोटा’ को भी सामान्य मतगणना में शामिल करे और यदि ‘नोटा’ को मिलने वाले मत सबसे अधिक मत पाने वाले प्रत्याशी से भी अधिक हों, तो उस क्षेत्र में किसी को विजयी घोषित नहीं करना चाहिए और वहाँ फिर से चुनाव होना चाहिए, चाहे कितना भी खर्चा हो।

इसके साथ ही अस्वीकृत किये गये सभी प्रत्याशियों को अगले 5 साल तक किसी भी चुनाव, जिनमें विधान सभा, विधान परिषद और राज्यसभा भी शामिल हैं, में खड़े होने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। ऐसा प्रावधान करने पर ही सबको अस्वीकृत करने का अधिकार सार्थक और प्रभावी होगा।

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