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Wednesday 27 November 2013

मुहम्मद गोरी के आक्रमण

सालार मसूद पर लिखे अपने लेख में मैं लिख चुका हूँ कि सन् १९३४ ई. में बहराइच के पास घाघरा के किनारे महाराजा सुहेल देव पासी के नेतृत्व में 22 हिन्दू राजाओं की सेनाओं ने सालार मसूद की विशाल सेना का समूल नाश कर दिया था। इसके बाद पूरे 150 वर्षों तक किसी इस्लामी आक्रमणकारी की हिम्मत भारत की ओर आँख उठाकर देखने की नहीं हुई थी।

लेकिन समय कभी एक सा नहीं रहता। ईसा की बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में दिल्ली और अजमेर में सम्राट पृथ्वी राज चौहान का शासन था। उनके पिता सोमेश्वर चौहान अजमेर के शासक थे, जिनके साथ दिल्ली के शासक राजा अनंग पाल तोमर तृतीय की दूसरी पुत्री का विवाह हुआ था। अनंगपाल की पहली पुत्री का विवाह कन्नौज के राठौर राजा विजय पाल के साथ हुआ था, जिनका पुत्र जयचन्द था। इस प्रकार जयचन्द पृथ्वीराज चौहान के मौसेरे भाई लगते थे। दिल्ली के शासक अनंगपाल के कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उन्होंने योग्य जानकर पृथ्वीराज चौहान को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था। इस प्रकार पृथ्वीराज के पास दिल्ली और अजमेर दोनों का शासन आ गया।

स्वाभाविक रूप से जयचन्द को यह बात पसन्द नहीं आयी, इसलिए वह प्रारम्भ से ही पृथ्वीराज से द्वेष मानता था। अगर इतना ही होता, तो गनीमत थी, लेकिन गड़बड़ यह हो गयी कि पृथ्वीराज चौहान जयचन्द की पुत्री संयोगिता को लेकर भाग गये, जो उनको पसन्द करती थी। यहीं से जयचन्द के मन में पृथ्वीराज चौहान के प्रति घृणा उत्पन्न हो गयी और वह किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज को नीचा दिखाने लगा।

उस समय मुहम्मद शहाबुद्दीन गोरी 1173 में किसी तरह गजनी का सुलतान बन गया था। उसने कई तुर्क गुलाम पाल रखे थे, जिनको उसने अच्छी सैनिक और प्रशासनिक शिक्षा दिलायी थी। वह उन पर बहुत विश्वास करता था। उसके शासन में कई गुलाम सेना और प्रशासन में ऊँचे पदों पर पहुँच गये थे और वे सभी मुहम्मद गोरी के लिए प्राण तक देने को तैयार रहते थे। ऐसे गुलामों के सेनापतित्व में मुहम्मद गोरी ने अफगास्तिान के आसपास के राज्यों को जीत लिया और गजनी को राजधानी बनाकर अपना शासन चलाने लगा।

उसकी नजर शुरू से ही भारत की ओर थी। सबसे पहले उसने ११८६ में लाहौर को जीता और सियालकोट के किले पर कब्जा कर लिया। कहा जाता है कि इसमें उसे जम्मू के तत्कालीन हिन्दू शासक की भी सहायता मिली थी। लाहौर के बाद उसने गुजरात की ओर रुख किया, लेकिन गुजरात के राजा भीमदेव सोलंकी ने उसे बुरी तरह परास्त कर दिया। वहाँ से मुहम्मद गोरी जान बचाकर भागा और फिर कभी गुजरात की ओर मुख नहीं किया। लेकिन लाहौर को केन्द्र बनाकर भारत के विभिन्न भागों की ओर नजर गढ़ाये रहा।

कहा जाता है कि इसी समय कन्नौज के राजा जयचन्द ने गोरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने की सलाह दी और वायदा किया कि इसमें वह गोरी की पूरी सहायता करेगा। इसी धारणा के आधार पर यह माना जाता है कि जयचन्द ने गोरी को बुलाया था। आज भी ‘जयचन्द’ का नाम देशद्रोहिता का पर्याय बना हुआ है।

गोरी और पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं के बीच पहला युद्ध सन् 1191 ई. में थाणेश्वर के पास तराइन के मैदान में हुआ था। गोरी के पास 1 लाख 20 हजार सैनिकों की विशाल सेना थी, जिसमें हजारों की संख्या में घुड़सवार भी थे। उधर पृथ्वीराज चौहान की सेना भी एक लाख के लगभग थी और उनकी सेना में हजारों हाथी थे। इस युद्ध में गोरी की भारी पराजय हुई, क्योंकि उसकी घुड़सवार सेना हाथियों का मुकाबला नहीं कर सकी। गोरी की अधिकांश सेना मारी गयी और बचे-खुचे साथी गोरी का साथ छोड़कर इधर-उधर भाग गये। जयचन्द की सहायता भी उसके काम नही आयी। घायल अवस्था में गोरी पकड़ा गया।

जब गोरी को पकड़कर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सामने लाया गया, तो वह जान बख्शने के लिए गिड़गिड़ाने लगा और माफी माँगने लगा। उसने कुरान की कसम खायी कि अब कभी भारत की ओर नहीं आऊँगा। पृथ्वीराज के मंत्रियों और सलाहकारों ने उसे माफ न करने की सलाह दी, लेकिन पृथ्वीराज चौहान सूर्यवंशी थे, इसलिए अपनी पुरानी परम्परा पर डटे रहे कि शरण में आये व्यक्ति को माफ कर देना चाहिए। पृथ्वीराज चौहान की यह भूल आगे चलकर बहुत घातक हुई, जिससे देश सैकड़ों वर्षों के लिए विधर्मियों का गुलाम हो गया। कहा तो यह जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने 17 बार गोरी को माफ किया था। लेकिन इस दावे में विश्वसनीयता कम है।

जो भी हो, आजाद होकर अपने देश पहुँचते ही गोरी अपनी कसम को भूल गया और फिर से भारत पर हमला करने की तैयारियाँ करने लगा। लगभग एक वर्ष बाद ही सन् 1192 ई. में उसने अधिक बड़ी सेना लेकर फिर भारत पर हमला कर दिया। उसी तराइन के मैदान में उसका मुकाबला फिर पृथ्वीराज चौहान और उनके सहयोगियों की सेनाओं से हुआ। इसका परिणाम भी पहले जैसा ही रहने वाला था। लेकिन यहाँ गोरी ने एक चाल चली।

हिन्दू राजाओं का नियम था कि युद्ध हमेशा सूर्योंदय के बाद और सूर्यास्त से पहले लड़े जाते थे। सूर्यास्त होते ही युद्ध बन्द कर दिया जाता था। गोरी इस नियम को जानता तो था, लेकिन अपनी संस्कृति के अनुसार उसे मानता नहीं था। उसने एक दिन भोर में ही पृथ्वीराज की सेना पर आक्रमण कर दिया। तब तक उनकी सेना तैयार तो क्या जाग भी नहीं पायी थी। इसलिए थोड़े समय में ही पृथ्वीराज की सेना का बहुत बड़ा भाग नष्ट हो गया और बची हुई सेना बिखर गयी। जब तक पृथ्वीराज चौहान कुछ समझ पाते तब तक उनको गोरी के सैनिकों ने पकड़ लिया और बंदी बना लिया।

गोरी पिछली हार को भूला नहीं था और उसे अपनी कुरान की कसम भी याद थी। लेकिन उसने पृथ्वीराज को न केवल छोड़ने से इनकार कर दिया, बल्कि उनकी आँखें भी जलती सलाखों से फुड़वा दीं। इतिहासकारों ने तो लिखा है कि बाद में गोरी ने पृथ्वीराज को मरवा दिया और उनको अफगानिस्तान में ही एक कब्र में गढ़वा दिया।

लेकिन यह कथा प्रसिद्ध है कि पृथ्वीराज के साथी और दरबारी कवि चन्दबरदाई ने गोरी से कहा कि पृथ्वीराज में आवाज के अनुसार वाण छोड़ने की कला है, जो और किसी में नहीं है। गोरी इस कला का प्रदर्शन देखने को तैयार हो गया। उसने एक जगह घंटा लटकवा दिया और उसे दूर से बजाने का इंतजाम किया। वह भी एक अन्य मंच पर ऊपर बैठा था। तभी चन्दबरदाई ने एक दोहा कहा-
चार बाँस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुलतान है मत चूके चौहान ।।

जैसे ही घंटा बजाया गया, वैसे ही पृथ्वीराज ने वाण छोड़कर घंटे को गिरा दिया। इस पर गोरी आश्चर्य से ‘वाह ! वाह !!’ चिल्ला पड़ा। पृथ्वीराज ने इसे अच्छा मौका समझा। गोरी के बैठने के स्थान का कुछ संकेत तो चन्दबरदाई ने दे ही दिया था। जब उन्होंने गोरी की आवाज सुनी तो उसी दिशा में वाण छोड़ दिया। वाण सीधा गोरी के सीने में घुस गया और उसका प्राणान्त हो गया। इसके बाद चन्दबरदाई और पृथ्वीराज भी नहीं बचे। कहा तो यह जाता है कि चन्दबरदाई ने पहले पृथ्वीराज को मारा, फिर खुद भी मर गये। लेकिन ऐसा लगता है कि गोरी के सैनिकों ने ही उन दोनों को मार डाला।

आज भी पृथ्वीराज चौहान की कब्र अफगानिस्तान में बनी हुई है। वहाँ के निवासी उस कब्र पर जूते मारकर उनका अपमान करते हैं, क्योंकि उन्होंने गोरी को मारा था। यह परम्परा ही इस बात का प्रमाण है कि पृथ्वीराज द्वारा गोरी को मारने की यह घटना सत्य है। इतिहासकारों द्वारा इसका उल्लेख न किया जाना स्वाभाविक है, क्योंकि कोई दरबारी इतिहासकार अपने मालिक को नीचा नहीं दिखाता।

जो भी हो। गोरी युद्ध जीतने के बाद तत्काल गजनी लौट गया था, क्योंकि वहाँ विद्रोह सिर उठाने लगा था। जाने से पहले उसने अपने एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का सुलतान बना दिया था। उसी से गुलाम वंश चला। तभी से दिल्ली और पूरे भारत में इस्लामी राज्य की शुरूआत हुई। उसकी कहानी आगे के लेखों में दी जायेगी।

1 comment:

  1. vijay सर,
    nbt blog par main is link ke bare batana chahta tha aur lagbhag har blogger ko bheja tha ye kament lekin prakashit nahi ho paya
    मुझे आज आचानक से एक पेज मिला है फसेबूक पर जिसे देख कर में हैरान हो गया की आप यहा पर इस्लाम की अच्छाइयो की बाते करते है,और कहते है की आतंकवादियो को सपोर्ट करने वाले और लादेन को अपना आदर्श मानने वेल सिर्फ 0.01 % है पर ए पेज तो कुछ और ही कह रहा है,
    मुझे इस ब्लॉग पर आपसे और जितने भी दिग्गज ब्लोग्गेर है इनसे इस पर विचार जानना है.खास कर के,मासूम सर,जमाल सर,शीराज,अफजल सर जिनकी बाते इस इस पेज की सच्चाइयो से गलत निकलती है
    लिंक है ..........
    https://www.facebook.com/pages/Ummahcommunitynet/1798697203602849

    आदरणीय ब्लोग्गेर्स,ए लिंक आपको हैरान कर देगा,की भारत मे भी अब खुलेआम ए पेज अभी तक चल रहा है और अभी तक बंद नही हुवा और ना ही किसी ने इस पर कोई कार्यवाही की,इस पेज के एडमिन सारे मुस्लिमो को कुछ बाते बताते है जो में यहा पर भी डाल रहा हु :-
    1)लादेन इस्लाम का सबसे बारह मसीहा था,जिसे कुछ काफ़ीरो ने शहीद कर दिया,बोलो अल्लाह- हो अकबर
    2)आज फिर हिन्दुस्तानी कुत्तो,जवानो ने कश्मीर मे जैश के कुछ इस्लाम पैबंद भाइयो को आतंकवादी करार देके शहीद कर दिया इन पे लानत भेजी जाये,अल्लाह- हो अकबर
    3)हम बाबरी मस्जिद वही बनायेंगे,चाहे कुछ भी हो जाये,जिन्होने उसे सरेआम शहीद किया उसे हम सबक सिखाएंगे,अल्लाह- हो अकबर
    4)और तो और मासूम सर,वो इस्लाम छोड़ के दूसरे मजहब वालो को लिन्डु(शायद उनका मतलब हिन्दू) कह कर उनके सफाये की बाते करते है.
    5)इनकी बाते सुन के तो कोई भी भयभीत हो जाये पता नही कब ए खून की नदिया बहा दे,
    6)और इनकी शंख्या तो दिनो दिन बढ़ती जा रही जोसच मे गंभीर है,भारत मे हीआतंकवादी ग्रूप या लव जेहादी तैयार किये जा रहे है.zऔर इस पेज को बनाने वाला मेकॅनिकल इंजिनियर है और इसके मेंबर और फॉलोवर्स जिनकी सांख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है,सारे एजुकेटेड है,आप इस पर क्या कहना चाहेंगे ?
    मासूम सर,या जितने इस्लाम के जानकर आदारणीय है जो यहा पर विचार विमर्श करते है मेरा उनसे निवेदन हैकी आप भी facebook par इनसे वार्तालाप कर के इन्हे इस्लाम की सही रोशनी दिखाएं और शान्तिप्रिया बनाये,जेसा की आप कहते है,नही तो वो दिन दूर नही जब भारत मे भी गृहयुद्ध हो जाये,
    में जानना चाहूंगा आपलोग इस लिंक पर क्या कदम उठाते है.लिन्क फिर से दे रहा हु
    https://www.facebook.com/pages/Ummahcommunitynet/1798697203602849

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