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Tuesday 19 March 2013

कुम्भ और रेलवे


कुम्भ के अवसर पर मौनी अमावस्या के दिन इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुई दुर्घटना के बारे में सभी जानते हैं। इस दुर्घटना के लिए रेलवे को बहुत आलोचनायें भी सहनी पडी हैं। हमें क्षीण सी यह आशा थी कि यह जो दुर्घटना हुई थी, वह अचानक ही हो गयी होगी और रेलवे ने अपनी ओर से पूरे प्रबंध किये होंगे। लेकिन विगत 7 मार्च को स्वयं इलाहाबाद जाने पर जब मैंने वे तथाकथित प्रबंध अपनी आँखों से देखे, तो यह स्पष्ट हो गया कि रेलवे की जो आलाचनायें की गयी हैं वे उसकी मूर्खताओं और नालायकियों की तुलना में बहुत कम हैं।

कुम्भ के अवसर पर रेलवे प्रत्येक रेल यात्री से प्रति सवारी 5 रुपये का मेला सरचार्ज वसूल करता है। हमें भी यह सरचार्ज देना पड़ा। लेकिन स्टेशन पर कोई भी ऐसा प्रबंध दिखाई नहीं पड़ा, जो रेलवे ने कुम्भ के लिए विशेष रूप से किया हो, बल्कि सामान्य प्रबंधों में भी घोर लापरवाही और मूर्खताओं के ही दर्शन हुए। यह जानना दिलचस्प होगा कि रेलवे ने सरचार्ज के नाम पर एकत्र की गयी करोडों की राशि का क्या उपयोग किया।

रेलवे का पहला काम होता है पर्याप्त नई गाडि़यां चलाना। लेकिन जिस तरह स्टेशन पर लाखों की भीड़ एकत्र हो गयी थी, उससे स्पष्ट है कि रेलवे अपने इस मुख्य कर्तव्य को निभाने में बुरी तरह असफल रहा। उसने केवल इतना किया कि एक-दो इंटरसिटी एक्सप्रेसों को रद्द करके उनको इलाहाबाद आने-जाने के लिए लगा दिया। होना यह चाहिए था कि इलाहाबाद से सभी चारों दिशाओं में जाने के लिए हर घंटे बाद एक शटल चलायी जाती, ताकि स्टेशन पर भीड़ लगातार कम होती रहे। ऐसी शटल चलाने के लिए किसी गाड़ी को रद्द करने की आवश्यकता नहीं थी, बल्कि प्रत्येक गाड़ी से केवल एक सामान्य बोगी कम करके उन बोगियों को जोड़कर नयी रेलगाडि़यों का रूप दिया जा सकता था। केवल इंजनों की व्यवस्था करनी पड़ती। इसके लिए रेलवे के पास पर्याप्त समय था। ऐसी गाडि़यों के लिए कुछ प्लेटफार्म सुरक्षित कर दिये जाने चाहिए थे। लेकिन लापरवाही के कारण इतना भी नहीं किया गया।

रेलवे का दूसरा काम होता है रेलवे स्टेशनों पर रेल यात्रियों का आवागमन सुविधाजनक बनाना। इलाहाबाद स्टेशन पर जाते ही स्पष्ट हो जाता है कि रेल विभाग इस कार्य में भी बुरी तरह असफल रहा। स्टेशन पर कुल मिलाकर दो पुल हैं, जो लाखों यात्रियों के लिए पूरी तरह अपर्याप्त हैं। वहाँ एक पुल जाने कब से टूटा हुआ पड़ा है। कुम्भ को देखते हुए उसकी मरम्मत प्राथमिकता के अनुसार करायी जानी थी, परन्तु वह भी नहीं करायी गयी। वास्तव में इलाहाबाद स्टेशन पर एक तीसरे पुल की अतीव आवश्यकता है, जो इतना चौड़ा और मजबूत होना चाहिए कि लाखों यात्रियों का बोझ झेल सके।

कभी प्रयाग रेलवे स्टेशन को संगम पर आने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए वैकल्पिक स्टेशन के रूप में विकसित किया गया होगा। परन्तु आज तक उस स्टेशन से संगम तक जाने का कोई सीधा मार्ग नहीं बना है। जो लोग वहां उतरते भी हैं, उन्हें काफी चक्कर काटकर इलाहाबाद शहर में होकर संगम तक जाना पड़ता है। इसी कारण अधिकांश यात्री प्रयाग के बजाय इलाहाबाद जंक्शन पर ही उतरते हैं। यह तो रेलवे की मूर्खता की पराकाष्ठा है कि प्रयाग स्टेशन का उचित उपयोग नहीं किया जा रहा है, वरना एक ही स्टेशन को सारी भीड़ नहीं झेलनी पड़ती।

रेलवे की इतनी मूर्खताओं को देखते हुए यह परमपिता की कृपा ही कही जायेगी कि केवल एक ही बार दुर्घटना हुई। वरना रेलवे के ‘इंतजाम’ तो ऐसे हैं कि यदि रोज दुर्घटना होती, तो भी आश्चर्य न होता। कुम्भ हर 12 साल बाद आता है और हर 6 साल बाद अर्धकुम्भ भी लगता है। इसलिए यदि इस बार जैसी दुर्घटनाओं से बचना है, तो रेलवे को अगले कुम्भ की तैयारी अभी से शुरू कर देनी चाहिए।

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