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Monday 13 May 2013

पाकिस्तान में नवाज शरीफ की ताजपोशी


यों तो पाकिस्तान के आम चुनाव उनका अन्दरूनी मामला है, लेकिन पड़ोसी होने के नाते वहाँ की प्रमुख राजनैतिक घटनाओं का प्रभाव भारत पर पड़ना अवश्यम्भावी है. पाकिस्तान में संपन्न हुए इन चुनावों की कई विशेषताएं रहीं-

१. कई कट्टरपंथी ताकतों और आतंकवादी संगठनों ने इन चुनावों को गैर इस्लामी बताते हुए घोर विरोध किया. एक राज्य में तो महिलाओं को भी मतदान नहीं करने दिया गया. फिर भी लगभग ६०% मतदान हुआ, जितना आज तक कभी हुआ था. यह एक अच्छा लक्षण है और इस बात की पहचान है की अब पाकिस्तान की जनता भी लोकतंत्र का महत्त्व समझ गयी है.

२. चुनाव प्रचार में कई जगह हिंसा हुई, जिनमें ५० से अधिक लोगों की जान गयी, लेकिन फिर भी उम्मीदवारों और पार्टियों ने चुनाव प्रचार बंद नहीं किया. इसका अर्थ है कि वे अपनी जान हथेली पर रखकर भी पाकिस्तान में लोकतंत्र की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहते हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि मतदान लगभग शान्तिपूर्ण निबट गया.

३. इन चुनावों में धांधली की शिकायतें नहीं आयीं, इससे पता चलता है कि वहाँ के चुनाव आयोग ने अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाया. मीडिया ने भी अपना दायित्व बखूबी निभाया. यह भविष्य के लिए बहुत शुभ लक्षण है.

४. नवाज शरीफ की पार्टी लगभग पूरे बहुमत के साथ सत्ता में आई. मैं अपने लेख "लाहौर से कारगिल तक" (लिंक देखिये- http://khattha-meetha.blogspot.in/2013/01/blog-post_5687.html  ) में लिख चुका हूँ कि "यदि पाकिस्तान के किसी नेता पर विश्वास किया जा सकता है तो वे केवल नवाज शरीफ हैं।" यह प्रसन्नता की बात ही कही जायेगी कि वे ही नवाज शरीफ फिर से पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री के रूप में सत्ता में आ रहे हैं. वे भारत के साथ अपने देश के मधुर सम्बन्धों का महत्त्व जानते हैं और चुनाव प्रचार में भी उन्होंने इस बात को बार-बार दोहराया था. पाकिस्तान की जनता ने उनको बहुमत देकर यह सिद्ध किया है कि वह भी भारत के साथ मधुर सम्बन्ध बनाये रखना चाहती है, क्योंकि उसके देश की प्रगति के लिए यही एकमात्र रास्ता है.

५. इन चुनावों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भले ही पाकिस्तान में कट्टरपंथी और आतंकवादी अशांति फैलाते रहते हैं, लेकिन उनको आम जनता का समर्थन नहीं है और इस्लाम के नाम पर यह आतंकवाद अब आगे अधिक लम्बा नहीं खिंच सकता, भले ही पाकिस्तान की सेना उनको खाद-पानी देती रहे.

६. नवाज शरीफ ने यह संकेत दिया है कि वे अपने शासन में सेना पर लगाम लगाकर रखेंगे. यह एक अच्छी नीति है. अगर ऐसा होता है तो भारत यह उम्मीद कर सकता है कि अब कम से कम कश्मीर के मामले में सेना अपनी करतूतों से बाज आयेगी.

इतने शुभ लक्षणों के होते हुए भी भारत को पूरी तरह सावधान रहने की आवश्यकता है, क्योंकि कट्टरपंथी तत्व, आतंकवादी संगठन और सेना यों आसानी से पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत नहीं होने देंगे और देर-सवेर खुराफातें जरुर करेंगे.

अभी तो हम नवाज शरीफ और उनके देश पाकिस्तान को अपनी शुभकामनायें ही दे सकते हैं.

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